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श्रावकाचार-संग्रह अनुदिन जे जन पालसे, व्रत सामायिक सार, जिन सेवक पक्षमो कहे, ते जासे भव-पार ॥१०१ .
अथ ढाल सहेलीनी कही सामायिकसार, भेद त्रीजी प्रतिमा तणों, साहेलड़ी० कहूँ प्रोषध उपवास. प्रतिमा चतुर्थी सुणों, साहेलड़ी० ॥१ मास एक मझार, चार उपवास कीजिए, साहेलड़ी० आठम चौदस पर्व, पोसासहित सदा लोजिए, साहेलड़ी० ॥२ सातमि तेरसें जाणि, अष्टविध जिन पूजा करी, साहेलड़ी० पूजे जिनवर पाय, सुर पद पूजा अनुसरी, साहेलड़ी ॥३ त्रिविध मिले जो पात्र, प्रासुक आहार तस दीजिए, साहेलड़ी० सफल करी निज गात्र, अतिथि संविभाग भाव कीजिए, साहेलड़ी० ॥४ निज स्वजन-सहित आपण पें, एक स्थान करीइए, साहेलड़ी. तुष्टि तप एक भक्त, नीर-सहित नित पालीइए, साहेलड़ी ॥५ असन पान खादि स्वादि, चतुर्विध आहार करो, साहेलड़ी० पछे करी मुखि-शुद्धि, बुद्धि निज आहार संचरी, साहेलड़ी ॥६ पछे जई जिनगेह, पाय पवित्र करी, साहेलड़ी. सोधी ईर्यापन्थ, निसही निसही अणि उच्चरी, साहेलड़ी ॥७ देइ प्रदक्षिणा त्रण, जिन पूजि स्तवन भणी, साहेलड़ो० करी साष्टांग प्रणाम, नीसरवां कही आवसही त्रणी, साहेलड़ी० ॥८ पूजी सहि गुरु वाणि, पंचांग प्रणाम विनय करी, साहेलड़ी० गुरु उपदेशे उपवास, विधि सहित पोसह धरी, साहेलड़ी० ॥९ रही निरन्तर स्थान, जिन प्रासाद शून्य गेह, साहेलड़ी० गिरि-गुफा उद्यान, समसान भूमि रही तेह, साहेलड़ी ॥१० छांडी घर व्यापार. आरम्भ षट्कर्म परिहरी, साहेलड़ी० त्रण दिन ब्रह्मचर्य, धरे वस्त्र एक ऊजलो, साहेलड़ी० ॥११ वाली दृढ़ पद्मासन्न, अथवा कायोत्सर्ग धरी, साहेलड़ी० कीजे शुभ धर्मध्यान, आतरौद्र दूरें करी, साहेलड़ी० ॥१२ क्रोध मान माया लोभ, राग द्वेष मद वेगलो, साहेलड़ी० त्रण दिन ब्रह्मचर्य, धरे वस्त्र एक ऊजलो, साहेलड़ी० ॥१३ भणिये जिनवर-वाणि, विनय व्याख्यान करो, साहेलड़ी० छोड़ी विकथावाद, धर्म चर्चा ते अनुसरो, साहेलड़ी० ॥१४ कीजे दोय प्रतिक्रमण, कीजे सामायिक त्रण काल, साहेलड़ी० लीजे स्वाध्याय चार योग भक्ति वे गुणमाल, साहेलड़ी० ॥१५ यतितणों आचार, पोसह तणे दिन पालिये, साहेलड़ी० जेहवो मुनिवर धीर, वीर विद्याग्रह सम्भालिये, साहेलड़ी० ॥१६ पंच परमेष्ठी गुण, षद्रव्य पंचास्तिकाय, साहेलड़ी० सप्त तत्त्व अष्टकर्म, नवपदार्थ विधि न्याय, साहेलड़ी० ॥१७
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