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श्रावकाचार-संग्रह
निजकाय चंचल करिए, सुण सुन्दरे, चलण हस्त संचार, मालंतडा० मुखे नेत्र संज्ञा करिए, सुण सुन्दरे, ते अंग दूषणकार, मालंतडा० ||६७ प्रमादपणे पाठ जे भणें ए, सुण सुन्दरे, अनादर दूषण तेह, मालंतडा० स्मृति तणों अन्तर करि ए, सुण सुन्दरे, संभारे पाठ नहीं जेह, मालंतडा० ॥ ६८ इणि परे पंच विधि ए, सुण सुन्दरे, त्यजो सामायिक अतीचार, मालंतडा० मन बचन काया एकरी ए, सुण सुन्दरे, धरो समता भवतार, मालंतडा० ॥६९ सामायिक सूत्रण ए, सुण सुन्दरे, सुणो दोष बत्रीस नाम, मालंतडा० संक्षेपे कहूं जुजुआए, सुण सुन्दरे, जे कह्या जिन स्वामि, मालंतडा० ||७० मालंतडा० अनादर स्तब्ध प्रविष्ट ए, सुण सुन्दरे, प्रतिपीडित दोलायित नाम, अंकुश कच्छपरिंगित ए, सुण सुन्दरे, मच्छ उद्वतं दोष भाम, मालंतडा० ॥७१ मनोदुष्ट वेदिकावंध ए, सुण सुन्दरे, भय दोष विभक्ति ऋद्धि होइ, मालंतडा ० गाव स्तनित प्रत्यनीक ए, सुण सुन्दरे, प्रदुष्ट तजिस दोष जोइ, मालंतडा० ॥७२ शब्द हेलित त्रैवलित ए, सुण सुन्दरे, संकुचित दृष्ट अदृष्ट, मालंतडा० संघ कर मोचन आलब्ध ए, सुण सुन्दरे, अनालब्ध दोषते दुष्ट, मालंतडा० ॥ ७३ हीन उत्तर चूलिका नाम ए, सुण सुन्दरे, मूक दर्दुर दोष जाणि, मालं तडा ० चुल्ललित चरम नाम ए, सुण सुन्दरे, दोष बत्रीस पाप खाणि, मालंतडा० ॥७४ कृतकर्मज आलस करे ए, सुण सुन्दरे, अनादर नाम दोष, मालंतडा ० विद्या अहंकार जे करे ए, सुण सुन्दरे, स्तव्ध आकारि ते सेस, मालंतडा० ॥७५ पंच परमेष्ठी पासें,भणी ए, सुण सुन्दरे, ते कहिये दोष प्रविष्ट, मालंतडा० । निज हस्ते जानु सुग धरी ए, सुण सुन्दरे, ते पर पीडित निकृष्ट, मालंतडा० ॥७६ निज तनु मन चंचल करि ए, सुण सुन्दरे, दोष दोलायित तेह, मालंतडा० । निज निलाडे अंगुष्ठ धरी ए, सुण सुन्दरे, वंदनांकुश दोष एह, मालंतडा० ॥७७ कटि चंचल कच्छप नीयरे चंचल ए, सुण सुन्दरे, मच्छ उद्वर्तित ते भाम, मालंतडा । मालंतडा ॥७८
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सूरी आदि संक्लेश पन ए, सुण सुन्दरे, ते दुष्ट मन दोष, माल डा. कर युग्ये जानु बिहि जोड़ी ए, सुण सुन्दरे, वेदिका नाम ते दोष, मालंतडा० ॥ ७९ भय पामी मरण तणों. ए, सुण सुन्दरे, ते सामायिक भय होइ, मालंडता • गुरु त भय जे भणि ए, सुण सुन्दरे े विभक्ति दोष नुं जोइ, मालंतडा० ॥८० पूजा वांछे जे संघतणी ए, सुण सुन्दरे, गौरघ पणें ऋद्धि दोष, मालं तडा • माहात्म्य प्रकाशे जे आप तणों ए, सुण सुन्दरे, भणें गारव ते शोष, मालंतडा० ॥ ८१ थी प्रच्छन्न पर्णे भणें ए, सुण सुन्दरे, ते चोरी दोष वखाणि, मालंतडा०
ने
गुरु
देव शास्त्र थी परान्मुख भणें ए, सुण सुन्दरे, ते प्रत्यनीक दोष जाणि, मालंत डा० ॥८२ पर साधें द्वेष क्लेश करी ए, सुण सुन्दरे, वंदना ते दोष प्रदुष्ट, मालंतडा० परने भय करतो जे भणी ए, सुण सुन्दरे, तर्जित दोष निकृष्ट, मालंतडा० ॥८३ मौन विना पाठ जे भणि ए, सुण सुन्दरे, ते कहिये वचन दूषण, मालंतडा० आचार्य आदें पराभव करि ए, सुण सुन्दरे, ते हेलित दोष लक्षण, मालंतडा० ॥८४
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