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श्रावकाचार-संग्रह
कायोत्सर्ग अन्ते आवर्त त्रण ए, सुण सुन्दरे, एक शिर नमस्कार । मालंतडा. दंडक अन्ते पंचांग प्रणाम ए, सुण सुन्दरे, त्रण आवर्त शिर नति सार, मालतडा० ॥३१ एणी परे दंडक प्रति ए, सुण सुन्दरे, दोइ पंचांग नमस्कार । मालंतडा. वार आवर्त चार शिर नमी ए, सुण सुन्दरे, एक कायोत्सर्ग धार. मालंतडा० ॥३२ पछे चैत्य भक्ति भणों ए, सुण सुन्दरे, वली पंच गुरु तणी भक्ति । मालंतडा. शान्ति भक्ति शुभ भणों ए, सुण सुन्दरे, करी सामायिक सदा युक्ति, मालंतडा०॥ त्रण काल सदा कीजीइ ए, सुण सुन्दरे, पूर्व मध्य अपराहण । मालतडा० चार घड़ी माहें सही ए. सुण सुन्दरे. रखेउ लंघे तमें मान. मालतडा० ॥३४ मागारी सामायिकवन्त ए. सुण सुन्दरे. सर्व सावद्य-रहित । मालंतडा० वस्त्रे वेढ्यो जेहबु मुनिवरु ए, सुण सुन्दरे. तेर चारित्र सहित. मालंतडा० ॥३५ सागारी सामायिक बली ए. सुण सुन्दरे. सोल स्वर्ग-पर्यन्त । मालंतडा० । सुर नर वर सख भोगवो ए. सुण सुन्दरे, अनुक्रमें होइ मुक्तिकन्त. मालंतडा० ॥३६ जिनमुद्रा तप श्रुतवन्त ए. सुण सुन्दरे. मदा सामायिक धरे जेह । मालंतडा० नव वेयक लगों ऊपजे. सुण सुन्दरे अभव्य प्राणी वली तेह. मालतडा० ॥३७ आसन्न भव्य जिनमुद्रा धरी ए, सुण सुन्दरे. लेइ सामायिक सार । मालंतडा. दुर्द्धर कर्म सह निर्जरी ए. सुण सुन्दरे, होइ मुक्ति भक्तार. मालंतडा० ॥३८ सामायिक महिमा घणी ए, सुण सुन्दरे, क्रूर जीव वश थाइ । मालंतडा० व्याघ्र सिंह सर्प आदि ए. सुण सुन्दरे, विषम विष तस जाइ. मालंतडा० ॥३९ सुर नर महु सेवा करी ए. सुण सुन्दरे, शत्रु सबै मित्र होइ । मालंतडा० मन वांछित फल पामाइ ए. सण सन्दरें. सामायिक प्रभाव जोइ, मालंतडा० ॥४० इमि जाणि सदा कीजिइ ए, सुण सुन्दरे. सामायिक गुणवार । निज गति प्रगट करि ए. सुण सुन्दरे. घणु सुं कहिये बारम्बार. मालतडा० ॥४१ प्रमादपणे जे करे नहीं ए. सुण सुन्दरे. तृष्णा करि व्यापार । मालंतडा० अष्ट पहर पाप करि ए. मुण सुन्दरे. भमे ते बहु संसार. मालंतडा० ॥४२ विपयारम्भ जे जीवडा ए. सुण सुन्दरे. गमें वृथा बहु काल । मालंतडा०
हा हा करता होंडे सदा ए. मुण मुन्दरे. धर्म थी भला ते वाल. मालंतडा० ॥४३ धर्म-सामग्री दोहिली ए. सुण सुन्दरे, जिम चिन्तामणि ग्न्न । मालंतडा विषय प्रमा का गमा ए, मुण मुन्दरे करो सामायिक यन्न, मालंनडा०॥४४ काल कला घड़ी मुहर्त लगे ए. सुण सुन्दरे, निज शक्ति अनुसार । मालंतडा. धर्म ध्यान दिन जे गमिए. मृण सुन्दरे. ते सार्थक अवतार मालंतडा० ॥४५ मामायिक विण नर जाण वा ए, सुण मुन्दरे, गेह ग्थ्यावेल समान । मालतडा. जाव जीव ते भार वही ए, सुण मुन्दरे, पामे नरक अवतार, मालंतडा० ॥४६ सामायिक पाठ आवे नहीं ए, सुण सुन्दरे तो सदा गिणों नमोकार । मालंतडा. पंच परमेष्ठो पद निर्मला ए, सुण सुन्दरे चौदह पूर्व माहे मार, मालंतडा० ॥४७ वाल नवे सूत सुतता ए, सुण सुन्दरे, मंत्र जपो नमोकार । मालंतडा. सर्व मंत्र तणों नायक ए. मुण सुन्दरे, भवोदधिताग्ण हार, मालतडा० ॥४८
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