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पदम-कृत श्रावकाचार
इष्ट वियोगे दुःख नहीं ए. मुण सुन्दरे, अनिष्ट संयोगे नहीं रोष । मालतडा. रोग पीडा चितन त्यजो ए, सुण सुन्दरे. निदान त्यजो धगे संतोष, मालतडा० ॥१३ आत ध्याने पाप उपजे ए, सुण सुन्दरे. पापें पशगति होय । मालंतडा० इम जाणिय आत्ति परिहरो ए, सुण सुन्दरे, धरो सामायिक सोय, मालंतडा० ॥१४ गैद्र ध्यान चार सुणो ए, सुण मुन्दरे, हिंसा मृषा स्तेय आनन्द । मालतडा० । विषय संरक्षणा आनन्द ए, सुण सन्दरे, रौद्र ध्याने पाप वृन्द, मालंतडा० ॥१५ जीव हिंसा झूठे वचन त्यजो ए, मग सुन्दरे, चोरिये नहीं पर धन्न । मालंतडा. विषय भोग भावे त्यजो ए, सुण सुन्दरे, भजो सामायिक भविजन्न मालतडा० ॥१६ रौद्र ध्याने तीव्र पाप ए. मण सुन्दरे. पापें नारक दुःख होय । मालंतडा० कर परिणाम टालीइ ए, मुण मुन्दरें. पालोये ममभाव सोय, मालंतडा० ॥१७ दुर्ध्यान दूरे करा ए, मुण सुन्दरे, चागे धगे वर्म ध्यान । मालतडा० आज्ञा उपाय विपाक विचय ए, सण मन्दरे, चौथो त्रिलोक संस्थान, मालतडा० ॥१८ आज्ञा मानो श्री जिन तणो ए, सुण सुन्दरे, चतुः कर्म-विनाश उपाय । मालंतडा० कर्म-विपाक फल चितवो ए, सुण सुन्दरे. लोक-संस्थान ते ध्याय, मालंतडा० ॥१९ वर्मध्याने पुण्य उपजे ए, सुण सुन्दरे, पुण्ये नर-सुर-सौख्य । मालंतडा. शुक्ल ध्यान धरो भावना ए, सुण सुन्दरे, भावनाए होइ मोक्ष, मालंतडा० ॥२० त्रिविध वैराग्य ते चिन्तवो ए सुण सुन्दरे, भवते भोग शरीर । मालंतडा० अनुप्रेक्षा वार चिन्तन ए, सुण सुन्दरे निश्चल करि मन धीर, मालंतडा० ॥२१ कुड्मल कर-युग कीजीड ए, सुण सुन्दरे, नासा अनि निज दृष्टि। हीन दीर्घ स्वर नहीं ए, सुण सुन्दरे, छ राग भास नहीं धिष्ट, मालंतडा० ॥२२ निज करणे सुणीड जिह ए, सुण सुन्दरे, तिम भणो सामायिक सूत्र । मालंडा. वचनें अक्षर उच्चरो ए, सुण सुन्दरे, निज मनि अर्थ पवित्र, मालंतडा० ॥२३ भणतां पाठ जो आवे नहीं ए. मुण सुन्दरे, तो पंच गुरु नमस्कार । मालंतडा० पंच शत ध्याओ जपो ए, सुण सुन्दरे सामायिक पुण्य साधार, मालंतडा० ॥२४ मन वचन काया पवित्र करी ए, सुण सुन्दरे, पहरी निमल एक चीर । मालंतडा. ईर्यापथ-शोधन करी ए, सुण सुन्दरे, कायोत्सर्ग धरि एक धीर, मालंतडा० ॥२५ ॐ नमः सिद्धेभ्यः इम कही ए, सुण सुन्दरे, भणीए सामायिक शास्त्र । मालंतडा. नव वन्दन देव करो ए, सुण सुन्दरे. तेह भेद सुणो छात्र, मालंतडा० ॥२६ पंच परमेष्ठी जिन गेह ए, सुण सुन्दरे, जिनप्रतिमा जिनधर्म । जिन-चयण ए नय देव ए, सुण सुन्दरे, वंदना करो अनुकर्म, मालंतडा० ॥२७ चैत्य भक्ति पंच गुरु भक्ति ए, सुण सुन्दरे शान्तिभक्ति जिनसार । मालंतडा. त्रण भक्ति दंडक तणो ए, सुण सुन्दरे, विधि कहूँ सुणो सजन्न, मालंतडा० ॥२८ चैत्य भक्ति आदि पंचांग प्रणाम ए, सुण सुन्दरे, त्रण आवर्त शिर नुति । मालंतडा. एक दंडक मध्य कायोत्सर्ग आदि ए, सुण सुन्दरे, त्रण आवर्त शिर नति एक, माल०॥२९ कायोत्सर्गे नवकार नव ए, सुण सुन्दरे ए, नवकार-प्रति त्रणे उच्छ्वास । मालतडा. सत्तावीस शुभ दीजीइ ए, सुण सुन्दरे, होन अधिक न वि श्वास, मालंतडा० ॥३०
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