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( ३४ ) उपयोगी न होनेसे नहीं दिये गये हैं और चौथे अधिकारको प्रथम मानकर आगेके सब अधिकार दिये गये हैं । ग्रन्थकी प्रशस्ति बहुत विस्तृत होनेसे इस भागके परिशिष्टमें दी गई है।
यद्यपि इस श्रावकाचारका प्रारम्भ गौतम गणधरसे कराया गया है, तो भी पं० मेधावी उसका अन्त तक निर्वाह नहीं कर सके हैं, यह बात बीच-बीच में दिये गये 'यथोक्तं पूर्वसूरिभिः' (अ० ४ श्लो० ७३) 'आशाधरोदित' (अ० ४ श्लो० १३१) 'एतद्ग्रन्थानुसारेण' (अ० ५ श्लो० ४) आदि वाक्योंसे सिद्ध है।
. इसके प्रथम अधिकारमें सम्यक्त्व और उसके महत्त्वका वर्णन है। दूसरे अधिकारमें प्रथम दर्शन प्रतिमाका वर्णन और अष्टमूल गुणोंका निरूपण तथा काक-मांस-त्यागी खदिरसारका कथानक है। तीसरेमें पंच अणुव्रतोंका, चौथेमें गुणव्रत और शिक्षाव्रतोंका वर्णन कर आशाधर-प्रतिपादित दिनचर्याका निर्देश किया गया है।
पांचवें अधिकारमें सामायिक प्रतिमासे लेकर ग्यारहवीं प्रतिमाका वर्णन है। छठे अधिकारमें अणुव्रतोंके रक्षणार्थ समितियोंका, चार आश्रमोंका इज्या, वार्तादि षट्कर्मोंका, पूजनके नाम-स्थानादि छहप्रकारोंका और दत्ति आदिका विस्तृत वर्णन है । सातवें अधिकारमें सल्लेखनाका वर्णन है।
सूतक-पातकका वर्णन सर्वप्रथम इसीमें मिलता है ।
अन्तिम प्रशस्तिमें पंच परमेष्ठीका स्तवन और शान्ति-मंगल-पाठ बहुत सुन्दर एवं नित्य पठनीय हैं।
प्रशस्तिसे ज्ञात होता है कि ये अग्रवाल जातिके से उद्धरण और उनकी पत्नी भीषुहीके पुत्र तथा श्रीजिनचन्द्रसूरिके शिष्य थे। पं० मेधावीने इस श्रावकाचारका प्रारम्भ हिसारमें किया और समापन नागपुर ( नागौर राजस्थान ) में वि० सं० १५४१ की कात्तिककृष्णा १३ के दिन किया। अतः विक्रमकी सोलहवीं शताब्दीका पूर्वार्ध इनका समय जानना चाहिए ।
इन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थके सिवाय किसी अन्य ग्रन्थकी रचना की, यह इनकी प्रशस्तिसे ज्ञात नहीं होता है।
१८. प्रश्नोत्तर भावकाचार-श्री सकलकोत्ति आचार्य सकलकीत्ति संस्कृत भाषाके प्रौढ विद्वान् थे। इनके द्वारा संस्कृत में रचित २९ ग्रन्थ और राजस्थानीमें रचित ८ ग्रन्थ उपलब्ध हैं। मूलाचार प्रदीपमें मुनिधर्मका और प्रस्तुत श्रावकाचारमें श्रावक धर्मका विस्तारसे वर्णन किया गया है, जिससे ज्ञात होता है कि ये आचार शास्त्रके महान् विद्वान् थे। सिद्धान्तसारदीपक, तत्त्वार्थसारदीपक, कर्मविपाक और आगमसार आदि करणानुयोग और द्रव्यानुयोगके ग्रन्थ हैं । शान्तिनाथ, मल्लिनाथ और वर्धमानचरित आदि प्रथमानुयोगके ग्रन्थ हैं। इनके अतिरिक्त पचपरमेष्ठिपूजा, गणधर वलयपूजा आदि अनेक पूजाएँ और समाधिमरणोत्साहदीपक आदिकी रचनाओंको करके इन्होंने अपनी बहुश्रुतज्ञताका परिचय दिया है।
प्रस्तुत श्रावकाचार संग्रहके द्वितीय भागमें इनका प्रश्नोत्तर श्रावकाचार संकलित है। इसकी श्लोक संख्या २८८० है और यह सभी श्रावकाचारोंसे बड़ा है। शिष्यके प्रश्न करनेपर उत्तर देनेके रूपमें इसकी रचना की गई है। इसके २४ परिच्छेद हैं। प्रथम परिच्छेदमें धर्मको
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