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श्रीवकांचार-संग्रह
सौरभ्योद्गारसाराणि पुष्पाच्यामलकानि च ।
क्षीरमिक्षुविकारांश्च शरखङ्गस्य पुष्टये ॥२३ ( शरदः )
हेमन्ते शीतबाहुल्याद रजनोदोघंतस्तथा । वह्निः स्यादधिकस्तस्माद् युक्तं पूर्वाह्णभोजनम् ॥२४ अम्लस्वादृष्णसुस्निग्धमग्नं क्षीरं च युज्यते । नैवोचितं पुनः किञ्चिद् वस्तु जाड्यविधायकम् ॥ २५ कुर्यादभ्यङ्गमङ्गस्य तैलेनातिसुगन्धिना । कुङ्कुमोद्वर्तनं चात्र व्यायामो वसोति (?) च ॥ २६ सेवनीयं च निर्वातं कर्पूरागुरुधूपितम् । मन्दिरं भासुराङ्गारशकटोसुन्दरं नरैः ॥२७ युवती साङ्गरागात्र पीनोन्नतपयोधरा । शीतं हरति शय्या च मृदूष्णस्पर्शशालिनी ॥२८ उत्तराशानिलाद् रूक्षं शीतमत्र प्रवर्तते ।
शिशिरेऽप्यखिलं ज्ञेयं कृत्यं हेमन्तवबुधैः ॥ २९ ॥ ( हेमन्त - शिशिरौ )
ऋतुगतमिति सर्वं कृत्यमेतन्मयोक्तं निखिलजनशरीरक्षेमसिद्धघथं मुच्चैः । निपुणमतिरिदं यः सेवते तस्य न स्याद् वपुषि गवसमूहः सर्वदा वयंवर्ती ॥३०
इति श्रीकुन्दकुन्दस्वामिविरचिते श्रावकाचारे ऋतुचर्यावर्णनो नाम षष्ठोल्लासः ।
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रस और तेलका जितेन्द्रिय पुरुष यत्नसे परित्याग करे ||२२|| सुगन्धके उद्गार सारवाले पुष्प, आँवला, दूध, और इक्षुका रस आदि शरद् ऋतुमें शरीरकी पुष्टिके लिए होते हैं ।
हेमन्त ऋतु (मार्गशीर्ष पौष में ) शीतकी अधिकतासे, तथा रात्रियोंकी दीर्घतासे उदरकी अग्नि अधिक प्रज्वलित हो जाती है, इसलिए इस ऋतु में पूर्वाह्न भोजन करना योग्य है ||२४|| तथा आम्ल रसवाले, स्वादिष्ट, उत्तम स्निग्धरसयुक्त अन्नका भोजन और दुग्धपान करना योग्य है । किन्तु शरीरमें जड़ता उत्पन्न करनेवाली किसी भी वस्तुका सेवन उचित नहीं है ||२५|| इस ऋतु में अति सुगन्धित तेलसे शरीरका मर्दन करना चाहिए। कुंकुमका उवटन और व्यायामका करना भी हितकारक है ||२६|| रात्रि के समय निर्वात, कपूर अगुरुसे धूपित और धधकते हुए अंगारोंवाली सिगड़ीसे सुन्दर मन्दिरका भाग्यशाली पुरुषोंको सेवन करना चाहिए ||२७||
इस ऋतु अंगराग से युक्त, पुष्ट और उन्नत स्तनोंको धारण करनेवाली युवती तथा कोमल, उष्ण स्पर्शशालिनी शय्या मनुष्योंके शीतको दूर करती है ||२८|| इस समय उत्तर दिशाके पवनसे रूक्ष शीत प्रवर्तता है, इसलिए उससे अपनी रक्षा करनी चाहिए। शिशिर ऋतु (माघफाल्गुन मास में) भी सभी करनेके योग्य कार्य बुद्धिमानोंको हेमन्त ऋतुके समान जानना चाहिए ||२९||
- इस प्रकार मैंने सर्वजनोंके शारीरिक कल्याणकी सिद्धिके लिए विस्तारके साथ छहों ऋतुसम्बन्धी सर्व करने योग्य कार्यों को कहा । जो निपुण बुद्धिवाला पुरुष इन कर्तव्योंका सर्वदा पालन करता है उसके शरीरमें कभी भी शारीरिक रोगों का समूह नहीं होता है ॥ ३०॥
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इस प्रकार कुन्दकुन्दस्वामि-विरचित श्रावकाचारमें ऋतुचर्याका वर्णन करनेवाला छठा उल्लास समाप्त हुआ ।
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