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________________ धर्मका वर्णन है, वही प्रस्तुत संग्रहमें संकलित किया गया है। पूरा ग्रन्थ भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली या जीवराज-ग्रन्थमालासे प्रकाशित होनेके योग्य है। २३. कुन्दकुन्द श्रावकाचार--इसकी एक मात्र प्रति सरस्वती भवन ब्यावरसे प्राप्त हुई है, जिसका क्रमांक ४१४ है । इसका आकार ११ ४ ४।। इंच है। पत्र संख्या ५० है । प्रति पृष्ठ पंक्ति-संख्या १३ है और प्रति पंक्ति अक्षर-संख्या ४०-४१ है। पुष्ट कागजपर सुवाच्य अक्षरोंमें यह वि० सं० १९७० के माघ सूदी २ की लिखी हई है, जिसे व्यास वनसीधर मच्छारामने लिखा है। प्रति जितनी सुवाच्य है, उतनी ही अशद्ध है । इसके पाठोंका अधिकांश संशोधन अर्थको ध्यानमें रखकर किय या गया है। फिर भी अनेक पाठ संदिग्ध रह गये हैं, उनके आगे (?) प्रश्नवाचक चिह्न लगाया गया है । इसका संकलन प्रस्तुत संग्राहके इसी चौथे भागमें किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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