________________
१००
१०४
१०४
१०५
( १८० ) विष दूर करनेके बाह्य उपायोंका वर्णन जैन मीमांसक आदि षट् दर्शनोंका विचार जैन दर्शनका वर्णन मीमांसक मतका निरूपण बौद्ध मतका वर्णन सांख्य मतका निरूपण शव मतका वर्णन वैशेशिक-मत संमत द्रव्य गुण आदि पदार्थोंका निरूपण नास्तिक मतका निरूपण
१०२ विवेक-पूर्वक वचन उच्चारणका विधान
१०३ अपनी और परायी गुप्त बात न कहनेका उपदेश स्व-पर और धर्म-साधक हित मित प्रिय वचन बोलनेका उपदेश
१०४ रे, अरे आदि सम्बोधन-वचन बोलनेका निषेध बिना पूछे किसीको शिक्षा देनेका निषेध
१०४ स्वजन-परिजनोंके साथ वचन-कलह नहीं करने वाला जगत्को जीतता है अपूर्व तीर्थ और नवोन वस्तुओंको देखनेका विधान
१०५ सूर्य चन्द्र ग्रहण आदि देखनेका निषेध तेल, जल, अस्त्र और मूत्र आदिमें अपने मुखको देखनेका निषेध
१०५ प्रसन्न, क्रोधी और षोतरागी पुरुषकी दृष्टिका वर्णन कामी, उन्मत्त, चोर और निद्रालु व्यक्तिको दृष्टिका वर्णन
१०५ विभिन्न वर्ण वाले नेत्रोंसे व्यक्तिकी विशेषताओंका विस्तृत निरूपण
१०६ ईर्या समितिसे गमनका विधान
१०७ गर्दभ और ऊँट आदिकी चालसे चलनेका निषेध
१०७ रोगी वृद्ध और अंधे मनुष्य आदिको मार्ग देकर गमन करनेका विधान
१०७ रात्रिमें वृक्षके मूलमें सोनेका निषेध सूतक-शुद्धिके नहीं होने तक वाहिर जानेका निषेध बिना मार्ग-भोजन लिए गमनका और अपरिचित मनुष्यक विश्वास करनेका निषेध १०८ हाथी और सींग वाले जानवरोंसे दूर रहकर चलनेका उपदेश
१०८ जीर्ण शीर्ण नावके द्वारा नदी पार करनेका, दुर्गम जल स्थलमें प्रवेश करनेका, क्रूर स्वभावी चुगलखोर और खोटे मित्रों आदिके साथ गोष्ठी करनेका निषेध
१०८ द्यूत-स्थान, अन्य पुरुषके भंडार और रनवासमें जानेका निषेध
१०८ खुले मैदान आदि स्थानों में गुप्त मंत्रणाका निषेध
१०९ विजयेच्छुक पुरुषको अपनी सामर्थ्य और अभिप्रायके प्रकट करने का निषेध
१०९ पाखण्डी, क्रूर, धूर्त और असत्य-भाषी आदि मनुष्योंके विश्वास करनेका निषेध
११० अपने कुल, विद्या, बल, वचन, शक्ति, शरीर सामर्थ्य और आय-व्ययका मनुष्यको सदा विचार करना चाहिए
११०
१०५
१०७
१०७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org..