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________________ । १७९) विद्याध्ययनके पांच अंतरंग और पांच बाह्य कारणोंका निरूपण संस्कृत प्राकृत आदि अनेक भाषाओंके व्याकरण तथा साहित्य तर्क, गणित, धर्म-शास्त्र, __ ज्योतिष और वंद्यक शास्त्रके भी पढ़नेका विधान वैद्यकके आठों अङ्गोंका निरूपण वात्स्यायन शास्त्र और नाट्य शास्त्रके भी सोखनेका विधान क्रूर मंत्रोंको छोड़कर उत्तम मंत्रोंके साधनेका विधान जङ्गम विषके विषयमें काल-अकालका विचार कुपित, उन्मत्त, क्षभित और पूर्व बैरी सर्प प्राणियोंको डंसते हैं जो उनकी रक्षा करते हैं वे पुरुष धन्य हैं सर्प-दष्ट पुरुषके बचाने वाले वैद्यको वार तिथि और नक्षत्र आदिका विचार करना आव श्यक है पंचमी अष्टमी और चतुर्दशी आदि तिथियों में तथा मीन कुम्भ, वृष आदि राशियों में सर्प दष्ट पुरुषके जीवनमें संशयका वर्णन मूल आश्लेषा आदि नक्षत्रोंमें और नैऋत्य आग्नेय तथा दक्षिण दिशाको छोड़कर अन्य ___दिशाओंसे आये हुए सर्प-दष्ट जीवके जीनेमें संशय रहता है सर्प-दष्ट स्थान काकपद आकारवाला श्यामवर्ण और शुष्क हो तो वह प्राण-संहारक __ होता है सर्प-दष्ट पुरुषके समाचार लाने वाले दूत की शुभ-अशुभ आकृतियोंसे सर्पदष्ट व्यक्तिके जीवन ___ मरणका विचार दूतके अपने अंगके स्पर्शसे सर्प दष्ट व्यक्तिके अङ्गका परिज्ञान दूतके आनेपर नासिकाके स्वरसे, दूत द्वारा कहे गये वर्गों की संख्यासे और उसके मुख विकार ___ आदिसे सर्प दष्ट व्यक्तिके जीवन-मरणका परिज्ञान कण्ठ, वक्षस्थल आदि मर्म स्थानों में सांपके द्वारा काटने पर मरणका निश्चय सिरके केश टूटने आदि बाह्य चिह्नोंसे सांपके द्वारा डसनेका निर्णय शरीर छेदन करने पर भी रक्तके नहीं निकलने आदि चिह्नोंसे सर्प दंशका निश्चय सर्पोकी आठ जातियोंका वर्णन । किस जातिका सर्प किस दिन और किस समय डसता है और किस सर्पका विष साध्य, असाध्य और कष्ट साध्य होता है इसका विस्तृत निरूपण किस दिन किस नक्षत्र और विधिके योगमें सर्प-विष कितने समय तक प्रभावी रहता है इसका विस्तृत निरूपण विभिन्न जातिके सों द्वारा काटे जाने पर व्यक्तिकी विभिन्न चेष्टाओंका निरूपण रस, रक्त, मांस आदि सप्त धातुओंके ऊपर सर्प विषके प्रभावका वर्णन तीन प्रकारके विषोंके लक्षण व्यक्तिके अमृत-स्थान और विष-स्थानपर सर्प दंशके प्रभावका वर्णन आत्म-साधना रूप अतरंग उपाय और जीभ तालुके संयोगसे झरने वाले रसके द्वारा विषके दूर करनेके उपाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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