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जोगपरिमुक्कदेहा पण्डितमरणट्ठिदा जिसीहीओ । तिविहे पण्डितमरणे चिट्ठति महामुणी समाहीए ॥ ४ ॥ एदाओ अण्णाओ णिसीहिमाओ सया वंदे |
अर्थात् - कृत्रिम और अकृत्रिम जिनबिम्ब, सिद्धप्रतिबिम्ब, जिनालय, सिद्धालय, ऋद्धिसम्पन्नसाधु, तत्सेवित क्षेत्र, अवधिमन:पर्यय और केवलज्ञानके धारक मुनिप्रवर, इन ज्ञानोंके उत्पन्न होनेके प्रदेश, उक्त ज्ञानियों से आश्रित क्षेत्र, सिद्ध भगवान् के निर्वाणक्षेत्र, सिद्धोंसे समाश्रित सिद्धालय, सम्यक्त्वादि चार आराधनाओंसे युक्त तपस्वी, उक्त आराधकोंसे आश्रित क्षेत्र, आराधक या क्षपकके द्वारा छोड़े गये शरीर के आश्रयवर्ती प्रदेश, योगस्थित तपस्वी, तदाश्रित क्षेत्र, योगियोंके द्वारा उन्मुक्त शरीरके आश्रित प्रदेश और भक्त प्रत्याख्यान, इंगिनी और प्रायोपगमन इन तीन प्रकारके पण्डितमरणमें स्थित साधु तथा पण्डितमरण जहाँ पर हुआ है, ऐसे क्षेत्र : ये सब निषीधिकापेदके वाच्य हैं ।
fatधिक पदके इतने अर्थ करनेके अनन्तर आचार्य प्रभाचन्द्र लिखते हैंअन्ये तु 'णिसोधियाए' इत्यस्यार्थमित्थं व्याख्यानयन्ति
'णिति णियहि जुत्तो सित्ति य सिद्धि तहा अहिग्गामी धित्तिय बिद्धकओ एत्ति य जिणसासणो भत्तो ॥ १ ॥
अर्थात् कुछ लोग 'निसीधिया' पदकी निरुक्ति करके उसका इस प्रकार अर्थ करते हैं : नि—जो व्रतादिकके नियमसे युक्त हो, सि--जो सिद्धिको प्राप्त हो या सिद्धिको पानेको अभिमुख हो, धि- जो घृति अर्थात् धैर्यसे बद्ध-कक्ष हो, और या-अर्थात् जिनशासनको धारण करनेवाला हो, उसका भक्त हो । इन गुणोंसे युक्त पुरुष 'निसीधिया' पदका वाच्य है ।
साधुओं के देवसिक - रात्रिकप्रतिक्रमणमें 'निषिद्धिकादंडक' नामसे एक पाठ है। उसमें णिसीहिया या निषिद्धकाकी वंदना की गई है । 'निसीहिया' किसका नाम है और उसका मूलमें क्या रूप रहा है इसपर उससे बहुत कुछ प्रकाश पड़ता है। पाठकोंकी जानकारीके लिए उसका कुछ आवश्यक अंश यहाँ दिया जाता है
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'णमो जिणाणां ३ | णमो णिसीहियाए ३ । णमोत्थु दे अरहंत, सिद्ध बुद्ध, णीरय, णिम्मल, .... गुणरयण, सीलसायर, अनंत, अप्पमेय, महादिमहावीर वड्ढमाण, बुद्धिरिसिणो चेदि णमोत्यु दे मोत्यु दे । (क्रियाकलाप पृष्ठ ५५ )
...सिद्धिणिसीहियाओ अट्ठावयपव्वए सम्मेदे उज्जते चंपाए पावाए मज्झिमाए हत्थि - वालियसहाए जाओ अण्णाओ काओ वि णिसीहियाओ जीवलोयम्मि, इसिप भारतलग्गयाणं सिद्धाणं बुद्धाणं कम्मचक्कमुक्काणं परियाणं णिम्मलाणं गुरु आइरिय उवज्झायाणं पवत्ति-थेर-कुलयराणं चाउव्वण्णे य समणसंघो य भरहेरावएसु दससु पंचसु महाविदेहेसु ।' (क्रियाकलाप पृष्ठ ५६) ।
अर्थात् जिनोंको नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो । निषीधिकाको नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो । अरहंत, सिद्ध, बुद्ध आदि अनेक विशेषण - विशिष्ट महतिमहावीरवर्धमान बुद्धिऋषिको नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो ।
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अष्टापद, सम्मेदाचल, उर्जयन्त, चंपापुरी, पावापुरी, मायापुरी और हस्तिपालितसभा में तथा जीवलोक में जितनी भी निषीधिकाएँ हैं, तथा ईषत्प्राग्भारनामक अष्टम पृथ्वीतलके अग्र भाग
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