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________________ ( १२० ) भिषेकका कोई निर्देश नहीं है। केवल एक श्लोकमें त्रिकाल प्रतिमार्चन-संयुक्त वन्दन करनेका निर्देश मात्र है । (भा० ३ पृ. २०५ श्लोक १५) १९. व्रतोद्योतनश्रावकाचारमें श्री अभ्रदेवने पञ्चामृताभिषेकका कोई वर्णन नहीं किया है। केवल इतना ही कहा है कि जो भावपूर्वक जिनेन्द्रदेवका स्नपन करता है वह सिद्धालयके परम सुखको प्राप्त होता है । (भा० ३ पृ० २२८ श्लोक १९८) २०. श्रावकाचारसारोद्धारमें श्री पद्मनन्दिने जिनपूजनका विधान प्रोषधोपवासके दिन केवल आधे श्लोकमें किया है, जबकि यह ११५९ श्लोक-प्रमाण है । (भा० ३ पृ० ३६२ श्लोक ३१३) २१. भव्य धर्मोपदेश उपासकाध्ययनमें जिनदेवने सोमदेव और वसुनन्दीके समान पञ्चामताभिषेकका विधान किया है ( भा०३ पृ० ३९६ श्लोक ३४९-३५३)। तत्पश्चात् पूर्व आहत देवोंके विसर्जनका विधान किया है ( श्लोक ३५६ ) । यहाँ यह ज्ञातव्य है कि उक्त विधान चौथी प्रतिमाके अन्तर्गत किया गया है और सबसे अधिक विचारणीय बात तो यह है कि इस श्रावकाचारके रचयिताने उक्त सर्व कथन श्रेणिकको सम्बोधित करते हुए इन्द्रभूतिगणधरके मुखसे कराया है। (देखो-भाग, ३ पृ० ३७३ श्लोक ५३) २२ उपासक संस्कारमें आ० पद्मनन्दीने श्रावकके देवपूजादि षट् आवश्यकोंका विस्तृत वर्णन करते हुए भी पञ्चामृताभिषेकका कोई उल्लेख नहीं किया है (भा० ३ पृ० ४२८ श्लोक २३. देशव्रतोद्योतनमें आ० पद्मनन्दीने जिनबिम्ब और जिनालय बनवा करके श्रावकको नित्य ही स्नपन और पूजनादि करके पुण्योपार्जनका विधान किया है। ( भाग ३ पृ० ४३८ श्लोक २२-२३) २४. प्राकृत भावसंग्रहमें आचार्य देवसे नने देव-पूजनकी महत्ता बताकर जिनदेवके समीप पद्मासनसे बैठकर पिण्डस्थ-पदस्थादिरूपसे धर्मध्यान करनेका विधान किया है। पुनः अपनेको इन्द्र मान कर, सिंहासनको सुमेरु और जिनबिम्बको साक्षात् जिनेन्द्रदेव मानकर जल, घो, दूध और दहीसे भरे कलशोंसे स्नपन कर पूजन करनेका विधान किया है। (भा० ३ पृ० ४४८ गा० ८७-९३) २५. संस्कृत भावसंग्रहमें पण्डित वामदेवने प्रा० भावसंग्रहका अनुसरण करते हुए अधिक विस्तारसे पञ्चामृताभिषेकका वर्णन किया है। (भा० ३ पृ० ४६७-४६८, श्लोक २८-५८) यहाँ इतनी विशेषता है कि जहाँ देवसेनने अभिषेक-पूजनादि करनेके स्थानका स्पष्ट निर्देश नहीं किया है, वहाँ वामदेवने उक्त पञ्चामृताभिषेक और पूजन घर पर करके पीछे जिनचैत्यालय जाकर पूजन करनेका भी विधान किया है । (भा० ३ पृ० ४६९ श्लोक ६०-६१) २६. रयणसारमें दान और पूजाको गृहस्थोंका मुख्य कर्तव्य बतलाने पर भी पञ्चामृताभिषेक या पूजनका कोई वर्णन नहीं है । (भा० ३ पृ० ४८० गा० ९९३) २७. पुरुषार्थानुशासन-गत श्रावकाचारमें सामायिक प्रतिमाके अन्तर्गत नित्य पूजन करनेका निर्देश करके भी अभिषेकका कोई निर्देश नहीं है । हाँ, जिनसंहितादि ग्रन्थोंसे स्फुट अर्चाविधि जाननेकी सूचना अवश्य की गई है । (भा० ३ पृ० ५२३ श्लोक ९७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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