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________________ ( ११९ ) पूर्वक ही नित्य-पूजन करनेका विधान करते। किन्तु यतः महापुराणकार जिनसेनने चारों प्रकारको पूजाओंका वर्णन करते हुए भी उसके पूर्व या पश्चात् पंचामृताभिषेकका कोई वर्णन नहीं किया है और न गर्भाधानादि क्रियाओंका वर्णन करते हुए पञ्चामृताभिषेकका कोई निर्देश किया है, अतः उक्त स्थलपर आशाधरने पञ्चामृताभिषेकका वर्णन करना उचित नहीं समझा। ११. धर्मसंग्रह श्रावकाचारमें पं० मेधावीने प्रातः या मध्याह्न-पूजनके समय पञ्चामृताभिषेकका कोई वर्णन नहीं किया है। केवल 'काल-पूजा' के वर्णनमें वसुनन्दीके समान ही इक्षुः घृतादि रसोंके द्वारा स्तपनकर जिनपूजन करनेका निर्देश किया है । (भा० २ पृ० १६० श्लोक ९६) १२. प्रश्नोत्तर श्रावकाचारमें आचार्य सकलकोत्तिने बीसवें अध्यायमें जिन-पूजनका विस्तृत वर्णन करते हुए भी पञ्चामृताभिषेकका कोई वर्णन नहीं किया है। अभिषेकके विषयमें केवल इतना ही लिखा है जिनाङ्गं स्वच्छनीरेण क्षालयन्ति सुभावतः। येऽतिपापमलं तेषां क्षयं गच्छति धर्मतः ॥ (भा० २ पृ० १७८ श्लोक १९६) अर्थात्-जो उत्तम भावसे स्वच्छ जलके द्वारा जिनदेवके अंगका प्रक्षालन करते हैं, उस धर्मसे उनका महापाप-मल क्षय हो जाता है। ___इससे सिद्ध है कि आचार्य सकलकीत्ति पञ्चामृताभिषेकके पक्षमें नहीं थे, जबकि वे स्वयं प्रतिष्ठाएँ कराते थे। १३. गुणभूषण श्रावकाचारमें श्री गुणभूषणने तीसरे उद्देशमें नामादि छह प्रकारके पूजनका विस्तारसे वर्णन करते हुए भी जलाभिषेक या पञ्चामृताभिषेकका कोई वर्णन नहीं किया है। (भा० २ पृ० ४५६-४५९) १४. धर्मोपदेशपीयूषवर्ष श्रावकाचारमें श्री नेमिदत्तने चौथे अध्यायमें पञ्चामृताभिषेक करनेका केवल एक श्लोकमें विधान किया है । (भा० २ पृ. ४९२ श्लोक २०६) । १५. लाटीसंहितामें राजमल्लजीने दो स्थानपर पूजन करनेका विधान किया है-प्रथम तो दूसरे सर्गके १६३-१६४ वें श्लोकों द्वारा, और दूसरे सामायिक शिक्षाव्रतका वर्णन करते हुए पंचम सर्गमें श्लोक १७० से १७७ तक आठ श्लोकों द्वारा। परन्तु इन दोनों ही स्थलोंपर न जलाभिषेकका निर्देश किया है और न पञ्चामृताभिषेकका ही। १६. उमास्वामि श्रावकाचारमें उसके रचयिताने प्रातःकालीन पूजनके समय जिनालयोंमें पञ्चामृताभिषेक करनेका स्पष्ट विधान किया है और यहाँ तक लिखा है कि दूधके लिए गायको रखनेवाला, जलके लिए कूपको बनवानेवाला और पुष्पोंके लिए बगीची लगवानेवाला पुरुष अधिक दोषका भागी नहीं है। (भा० ३ पृ. १६३ श्लोक १३३-१३४) १७. पूज्यपाद श्रावकाचारमें उसके रचयिताने स्वर्ण, चन्दन और पाषाणसे जिन-बिम्बनिर्माण कराके प्रतिदिन पूजन करनेका विधान किया है, पर अभिषेकका कोई निर्देश नहीं किया है । (भा० ३ पृ० १९७ श्लोक ७४) १८. व्रतसार श्रावकाचार-इस अज्ञात-कर्तृक २२ श्लोक-प्रमित श्रावकाचारमें पञ्चामृता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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