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खाकर रात्रिमें दूध, फलादिका सेवन करना, दूसरोंको खिलाना-पिलाना, रात्रिमें भोजनादि बनाना या रात्रिमें बने
पदार्थ खाना आदि। ५. जल-गालनके अतीचार-दो मुहुर्त के बाद बिना छना पानी पीना, पतले और जीर्ण
वस्त्रसे गालना, जिवानी यथास्थान नहीं डालना आदि ।
( सागार० भाग २, पृ० २४, श्लोक १६ )
१९. निदान एवं उसका फल आचार्योंने दो स्थलों पर निदानका वर्णन किया है। एक तो "निःशल्यो व्रती" कहकर इसे शल्योंमें परिगणित किया है और दूसरे सल्लेखनाके अतिचारोंमें इसे गिना है । धर्म सेवन करके उसके फलस्वरूप आगामी भवमें भोगोंकी आकांक्षा करना, इन्द्रादिके अथवा नारायण चक्रवर्ती आदि पदोंके पानेकी इच्छा करना निदान कहलाता है। अन्य श्रावकाचार रचयिताओंने इसके भेदोंका वर्णन नहीं किया है, किन्तु अमितगतिने इसके मूलमें दो भेद किये हैं-प्रशस्त निदान और अप्रशस्त निदान । पुनः प्रशस्त निदानके भी मुक्ति और संसारके निमित्तसे दो भेद किये हैं।
हम कर्म-बन्धनसे कब मुक्त हों, हमारे सांसारिक दुःखोंका कब विनाश हो, हमें बोधि और समाधि कब प्राप्त हो । इस प्रकारकी वांछाको मुक्ति-हेतुक प्रशस्त निदान कहते हैं।
जिनधर्मको भली-भांतिसे पालन कर सकें इसलिए हमारा जन्म आगामी भवमें बड़े कुटुम्बमें न हो क्योंकि कुटुम्बकी विडम्बनासे धर्म-साधनमें बाधा होती है । धनिकके महारंभी परिग्रही होनेसे धर्म-साधनके भाव नहीं होते, इसलिए आगे मेरा जन्म उत्तम कुल जातिवाले गरीब घरमें हो, इस प्रकारका निदान संसार निमित्त प्रशस्त निदान है।
अप्रशस्त निदान भी भोग-निमित्त और मान-निमित्तसे दो प्रकारका है- .
जो सांसारिक भोगोंकी प्राप्तिके लिए निदान किया जाता है, वह भोग-निमित्तिक अप्रशस्त निदान है।
जो संसारमें मान-सम्मान प्राप्तिके लिए निदान किया जाता है, वह मान-निमित्तक अप्रशस्त निदान है।
ये दोनों ही प्रकारके निदान संसार पतनके कारण हैं। (देखो-श्रावकाचार सं० भाग १, १० ३२५ श्लोक २०-३३)
दिगम्बर-परम्परामें अमितगतिके सिवाय किसी अन्य आचार्यने निदानके और भेद-प्रभेदोंका वर्णन किया हो, यह हमारे दृष्टिगोचर नहीं हुआ है। हां, श्वेताम्बरीय दशाश्रुत-स्कन्धकी दशवीं "आयति ठाण दसा" में निदानके नौ प्रकारोंका विस्तृत वर्णन दिया है जिसे यहाँ पाठकोंकी जानकारीके लिए संक्षेपसे दिया जाता है।
१. किसी राजा-महाराजाको सांसारिक सुखोंका उपभोग करते हुए देखकर कोई साधु या श्रावक यह इच्छा करे कि यदि मेरे तप, नियम एवं ब्रह्मचर्य-पालनका फल हो तो में भी ऐसे मानुष्य काम-भोग भोगू? इस प्रकारका निदान करनेवाला व्रत संयमके फलसे देवलोकमें उत्पन्न
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