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________________ ( १०५ ) भावना रखता हुआ निरतिचार सम्यग्दर्शनको धारण करता है वह जघन्य दर्शन प्रतिमाका धारक है। (धर्मरत्ना० पृ० २३५-२३६ श्लोक ६२-६४) २. जो केवल अणुव्रतोंका ही पालन करता है वह जघन्य व्रत प्रतिमाधारक है । जो मूलगुणोंका पालन करता है वह मध्यम है। तथा जो निर्मल सम्यग्दर्शनके साथ निरतिचार अणुव्रत और गुणव्रतोंका पालन करता है वह उत्तम व्रत प्रतिमाधारी है। (धर्मर० पृ० २९७ श्लोक ३५-३६) ३. जो सामायिकको सव दोष और अतिचारोंसे रहित तीनों सन्ध्याओंमें नियत समय पर नियत काल तक करता है, वह उत्तम सामायिक प्रतिमाधारी है। जो अणुव्रतों और गुणवतोंको निरतिचार पालन करते हुए भी सामायिकको निर्दोष पालन नहीं करता है, वह मध्यम है और जो अणुव्रतों गुणवतोंको भी निरतिचार नहीं पालन करते हुए सामायिक भी सदोष या सातिचार करता है, वह जघन्य सामायिक प्रतिमाधारी है। (धर्मर० पृ० ३२३ श्लोक ७६-७७) ४. जो प्रारम्भकी तीनों प्रतिमाओंको यथाविधि निर्दोष पालन करते हुए प्रत्येक मासके चारों पर्योंमें १६ प्रहरका निर्दोष उपवास करता है और पर्वके दिनकी रात्रिमें प्रतिमायोग धारण कर कार्योत्सगेसे अवस्थित रहता हुआ भयंकर भी उपसर्गोसे भयभीत या चलायमान नहीं होता है वह उत्तम प्रोषध प्रतिमाधारी है। जो पूर्वोक्त प्रतिमाओंको निर्दोष पालन करते हुए १२ या ८ प्रहर वाले उपवासको करता है और रातमें प्रतिमायोगको धारण नहीं करता वह मध्यम है। जो पूर्वोक्त प्रतिमाओंको और उपवासको जिस किसी प्रकारसे यथाकथंचित् धारण करता है वह जघन्य प्रोषधप्रतिमाधारी है। (धर्मर० पृ० ३३६ श्लोक ३२-३३) ५. जो श्रावक पूर्व प्रतिमाओंका निर्दोष पालन करते हुए मन, वचन, काय और कृत कारित अनुमोदना, सचित्त वस्तुके खान-पानका यावज्जीवनके लिए त्याग करता है, वह उत्तम सचित्त त्याग प्रतिमाका धारक है। जो पूर्वोक्त प्रतिमाओंको भली भाँतिसे धारण करते हुए भी प्रोषधोपवासके दिन ही सचित्त वस्तुओंका त्यागी है, वह मध्यम है। तथा जो पूर्व प्रतिमाओंको भी यथा कथंचित् पालता है और सचित्त वस्तुओंका यथा कथंचित् त्याग करता है, वह जघन्य सचित्तत्याग प्रतिमाधारी है। (धर्मर० पृ० ३४२ श्लोक ९.१०) ६. जो व्यक्ति पूर्वकी सर्व प्रतिमाओंके साथ दिनमें पूर्णरूपसे ब्रह्मचर्यका पालन करता है और अपनी स्त्रीकी ओर भी रागभावसे नहीं देखता है वह दिवामैथुनत्याग प्रतिमाधारियोंमें उत्तम है । जो पूर्व प्रतिमाओंका पालन करते हुए भी इस प्रतिमाका यथा कथंचित् विरलतासे पालन करता है, अर्थात् क्वचित् कदाचित् अपनी स्त्रीके साथ हँसी मजाक आदि करता है, वह मध्यम है । और जो पूर्व प्रतिमाओंको भी और इस प्रतिमाको भी यथा कथंचित् पालता है, वह जघन्य दिवामैथुनत्याग प्रतिमाका धारक है । (धर्मर० पृ० ३४४ श्लोक १७) ७. जो मनुष्य पूर्व प्रतिमाओंके साथ निर्मल ब्रह्मचर्यको मन वचन कायसे धारण करते हैं, वे उत्तम ब्रह्मचर्य प्रतिमाके धारक हैं। जो उक्त व्रतोंके साथ मनसे कायसे ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए भी मनसे निर्मल ब्रह्मचर्यका पालन नहीं कर पाते हैं, वे मध्यम ब्रह्मचर्यप्रतिमाके धारक हैं। जो न पूर्व प्रतिमाओंका निर्दोष पालन करते हैं और न ब्रह्मचर्यका भी यथा कथंचित् पालन करते हैं वे जघन्य ब्रह्मचर्यप्रतिमाके धारक हैं। (धर्मरः पृ० ३४८ श्लोक २५) १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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