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________________ प्रशस्तिः भव्यः पितव्यो वरभव्यबन्धर्भव्येश्वरो भव्यगणाग्रणी यः । इन्द्रत्वया (?) इन्द्रतरो विधिज्ञ आमई कोष्ठियशोधराख्यः ॥१ स एव वक्ता स च राज्यपूज्यः स एव वैद्यः स च वैद्यनाथः । स एव जैनागमतत्त्ववेत्ता स एव शास्त्राभयदानदाता ॥२ यशोधरकवेः सूक्तं सप्ततत्त्वनिरूपणम् । वसति विधिना प्रोक्तं दृष्ट्वा तं हि मया कृतम् ॥३ लोलया हि यशो येन व्याख्यातं कथितं जने । तेन बोधेन बुद्धानां कवित्वं च प्रजायते ॥४ तस्य प्रसादेन महापुराणं रामायणं भारतवीरकाव्यम् । सुदर्शनं सुन्दरकाव्ययुक्तं यशोषरं नागकुमारकाव्यम् ॥५ चरित्रं वसुपालस्य चन्द्रप्रभजिनस्य च । चक्रिणः शान्तिनाथस्य वर्धमानप्रभस्य च ॥६ चरित्रं च वराङ्गस्य ह्यागमं ज्ञानमार्णवम् । आत्मानुशासनं नाम समाधिशतकं तथा ॥७ पाहुडत्रयविख्यातं संग्रहं द्रव्य-भावयोः । कलापं सुप्रतिष्ठायाः क्रियायाः समुदाहृतम् ।।८ एतानि धन्यानि मया श्रतानि यशोषरवेष्ठिप्रभाषितानि । तद-बोषबुद्धन कृतो मयाऽयं तं शोधनीयं मुनिभिश्च भव्यैः ॥९ धेयान्ससोमप्रभवंशजातश्चक्रेश्वरः शान्तिजिनस्वरूपः । कुन्थुजिनो चक्रघरो ह्यनङ्गोऽनङ्गो तथाऽरो जिनचक्रपाणिः ॥१० यशोधर नामक आमद्दक नगरका जो सेठ है, वह भव्य है, पितृव्य (ग्रन्थकारके पिताका भाई) है, उत्तम भव्यजनोंका बन्धु है, भव्योंका स्वामी है, भव्यजनोंमें अग्रणी है, और इन्द्रत्वरूपसे इन्द्रसे भी श्रेष्ठ है और श्रावककी सर्व विधिका वेत्ता है ॥१।। वह वक्ता है, वह राज्य-पूज्य है, वह वैद्य है और वैद्योंका स्वामी है, वह जैनागमके तत्त्वोंका वेत्ता है और वही शास्त्रदान और अभयदानका दाता भी है ।।२।। यशोधर कविके जो सूक्त और सात तत्त्वोंका निरूपण यशस्तिलकचम्पूमें किया गया है उसे देखकर मैंने यह श्रावकाचार का वर्णन विधिपूर्वक इस ग्रन्थमें कहा है ॥३॥ लीला मात्रसे जिसने यशोधर चरितका लोगोंमें व्याख्यान किया, उस बोधसे प्रबुद्ध जनोंके कविपना प्रकट हो जाता है ॥४॥ उस यशोधर सेठके प्रसादसे मैंने महापुराण, रामायण और भारतके वीरोंका काव्य महाभारत (पांडवपुराण), सुन्दरकाव्ययुक्त सुदर्शन चरित यशोधर चरित, नागकुमार काव्य, वसुपाल चरित्र, चन्द्रप्रभजिनका चरित्र, शान्तिनाथ तीर्थंकर और चक्रवर्तीका चरित्र, वर्धमान चरित्र, वराङ्गचरित्र, ज्ञानार्णव, आगम, आत्मानुशासन, समाधि शतक, पाहुड त्रय नामसे विख्यात समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय ये तीनों पाहुड ग्रन्थ, द्रव्यसंग्रह, भावसंग्रह, प्रतिष्ठाकलाप और क्रियाकलाप नामसे जो प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं, इन ग्रन्थोंको तथा यशोधर सेठसे कहे गये अन्य भी ग्रन्थोंको मैंने सुना । उन शास्त्रोंके ज्ञानसे प्रकट हुए बोध से मैंने यह शास्त्र रचा है। मुनिजन और भव्य पुरुष इसमें रही हुई भूलोंको शुद्ध करें, यह मेरी प्रार्थना है ॥५-९॥ श्रेयान्स और सोमप्रभके वंशमें श्री शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ ये तीन तीर्थकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001553
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages574
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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