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श्रावकाचार-संग्रह इत्येकावश सम्प्रोक्ताः प्रतिमाः श्रीजिनागमे । सम्यक्त्वेन समायुक्ताः पालनीयाः सुश्रावकैः ॥३६५
इति भव्यमार्गोपदेशोपासकाध्ययने भट्टारकश्रीजिनचन्द्रनामाङ्किते जिनदेव
विरचिते धर्मशास्त्रे एकादशप्रतिमाविधानकं नाम षष्ठः परिच्छेदः।
व्रतमें धारण करना चाहिए ।।३६३-३६४।। इस प्रकार ये ग्यारह प्रतिमाएँ भी जिनागममें कही गई हैं । इनका उत्तम श्रावकोंको सम्यक्त्वके साथ पालन करना चाहिए ॥३६५।। इति श्रीभट्टारक जिनचन्द्र-नामाङ्कित, जिनदेव-विरचित भव्यमार्गोपदेश-उपासकाध्ययन नामक धर्मशास्त्रमें ग्यारह प्रतिमाओंका वर्णन करनेवाला छठा
परिच्छेद समाप्त हुआ।
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