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________________ अथ तृतीयः परिच्छेदः यत्कृतं हि पुरा सूत्र वक्ष्ये पूर्व यथाक्रमम् । आयुर्मानं च तन्मानं कुलं योनि च मार्गणाम् ॥२०० द्वाविंशतिसहस्राणि द्वादशानि तथा ध्रुवम् । खरपृथ्वीमृदुपृथ्वीकायिकानां जिनागमे ॥२०१ संवत्सरसहस्राणां सप्त संख्या च जीवनम् । जलकायिकजन्तूनां कथितं पूर्वसूरिभिः ॥२०॥ अहोरात्रत्रयमायुस्तेजःकायेषु कथ्यते । वातकायिकजन्तूनां सहस्रत्रयवर्षकम् ।।२०३ दशसहस्रवर्षायुर्वनराजिभवेद् ध्रुवम् । द्वादशैव तु वर्षाणि द्वीन्द्रियाणां च जीवनम् ॥२०४ एकोनपञ्चाशतमवेहि रात्रं षण्मासमात्र चतुरिन्द्रियाणाम् । पञ्चेन्द्रिये कर्मभुजां नराणां सुकोटिपूर्व परमायुः दृष्टम् ॥२०५ नरेषु मत्स्येषु समायुषं च सर्पेषु ह्यायुढिचतुःसहस्रम् । नवैव पूर्वाणि परीतसर्पो द्विसप्ततिवर्षसहस्रपक्षिणः ॥२०६ भोगभूमौ त्रिपल्यायुरुत्कृष्टायां प्रचक्षते । मध्यमायां द्विपल्यं च कनिष्ठायां तु पल्यकम् ॥२०७ सप्ताधो भूमिजानां च क्रमेण परमायुषम् । कथितं जिनचन्द्रेण सागरैकं त्रिसप्तकम् ॥२०८ वश सप्तदशं प्राविंशतिस्तु सागराः । त्रयस्त्रिंशत्तथा प्रोक्ता जिनचन्द्रेण सूरिणा ॥२०९ असुराणां सागरैकमायुर्नागे त्रिपल्यकम् । सार्धद्वयं च सौपणे द्वीपानां च द्विपल्यकम् ॥२१० शेषाणां सार्धपल्यायुध्यन्तराणां च पल्यकम् । वर्षलक्षाधिकं पल्यं चन्द्रस्यायुश्च कथ्यते ॥२११ पूर्वसूरिक्रमेणोक्तं सूर्यायुष्यं जिनागमे । सहस्राधिकपल्यैकं शुक्र पल्यं शताधिकम् ॥२१२ पल्यायुषं समुद्दिष्टं जीवे जीवदयान्वितैः । शेषाणां च ग्रहाणां च भवत्यर्धपल्यकम् ॥२१३ जो दूसरे परिच्छेदमें सूत्ररूपसे जीवोंके आयुप्रमाण, देह-प्रमाण, कुल, योनि, और मागंणाके कहनेकी प्रतिज्ञा की थी, उसे अब यथा क्रमसे कहेंगे ॥२००॥ खर पृथिवीको उत्कृष्ट आयु बाईस हजार वर्ष और मृदु पृथिवीकी बारह हजार वर्ष जिनागममें कहीं गई है।।२०१।। जलकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु पूर्वाचार्योंने सात हजार वर्ष कही है ॥२०२।। अग्निकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु तीन दिन-रात कही है, वायुकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु तीन हजार वर्ष 'कही है ॥२०३॥ वनराजि (वनस्पति)की उत्कृष्ट आयु निश्चयसे दश हजार वर्ष होती है। द्वीन्द्रिय जोवोंका उत्कृष्ट जीवन बारह वर्ष प्रमाण है ॥२०४॥त्रीन्द्रिय जीवोंकी उत्कृष्ट आयु उनचास दिन है, चतुरिन्द्रिय कृष्ट आयु छह मास होती है। पंचेन्द्रिय जीवोंमें कर्मभूमिज मनुष्योंकी उत्कृष्ट आय एक पूर्वकोटि वर्ष-प्रमाण कही गई है ॥२०५।। मत्स्योंकी भी उत्कृष्ट आयु मनुष्योंके समान ही पूर्वकोटि वर्ष है । सोकी उत्कृष्ट आयु बयालिस हजार वर्षकी, परिसॉंकी नौ पूर्व और पक्षियों को बहत्तर हजार वर्षको उत्कृष्ट आयु होती है ॥२०६॥ मनुष्य और तिर्यचोंकी उत्कृष्ट भोगभूमिमें तीन पल्यकी, मध्यम भोगभूमिमें दो पल्यकी और जघन्य भोगभूमिमें एक पल्यकी होती है ॥२०७।। नीचे सातों नरकभूमियोंमें क्रमसे एक, तीन, सात, दश, सत्तरह, बाईस और तेतीस सागरकी उत्कृष्ट आयु जिनचन्द्र सूरिने कही है ॥२०८-२०९।। भवनवासी देवोंकी असुरकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु एक सागरोपम, नागकुमारोंकी तीन पल्य, सुपर्ण कुमारोंको अढ़ाई पल्य, द्वीप कुमारोंकी दो पल्य और शेष भवनवासी देवोंकी डेढ़ पल्य कही गई है। व्यन्तरोंकी उत्कृष्ट आयु एक पल्य, और चन्द्रकी उत्कृष्ट आयु एक लाख वर्ष अधिक एक पल्य कही है ॥२१०-२११॥ सूर्यको उत्कृष्ट आयु जिनागममें पूर्वाचार्योंने एक हजार वर्ष अधिक एक पल्यकी और शुक्रकी सौ वर्ष अधिक एक पल्यकी कही है ॥२१२।। जीव दयासे युक्त आचार्योंने बृहस्पतिको उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001553
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages574
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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