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________________ श्रावकाचार-संग्रह निषिद्ध मन्नमात्रादिस्थूलभोज्यं व्रते दृशः । न निषिद्ध जलाधन ताम्बूलाद्यपि वा निशि ॥४२ तत्र ताम्बूलतोयादिनिषिद्धं यावदासा । प्राणान्तेऽपि न भोक्तव्यमौषधादि मनीषिणा ॥४३ न वाच्यं भोजयेदन्नं कश्चिद्दर्शनिको निशि । अवतित्वादशक्यत्वात्पक्षमात्रात्सपाक्षिकः ॥४४ अस्ति तत्र कुलाचारः सैषा नाम्ना कुलक्रिया। तां विना दर्शनिको न स्यान्न स्यान्नामतस्तथा ॥४५ मांसमात्रपरित्यागादनस्तमितभोजनम् । व्रतं सर्वजघन्यं स्यात्तदधस्तात्स्यादक्रियाः ॥४६ नेत्थं यः पाक्षिकः कश्चिद् वताभावादस्त्यवती । पक्षमात्रावलम्बी स्याहृतमात्रं न चाचरेत् ॥४७ यतोऽस्य पक्षग्राहित्वमसिद्धं बाधसम्भवात् । लोपात्सर्वविदाज्ञायाः साध्या पाक्षिकता कुतः ॥४८ त्याग है वह अतिचार सहित है । उसमें अतिचारोंका त्याग शामिल नहीं है और छठी प्रतिमामें जो रात्रि भोजनका त्याग है वह अतिचार रहित है उसमें रात्रि भोजनके सब अतिचारोंका त्याग है ॥४१॥ इस व्रतमें रात्रिमें केवल अन्नादिक स्थूल भोजनोंका त्याग है इसमें पान जल तथा आदि शब्दसे औषधिका त्याग नहीं है ॥४२॥ तथा छठी प्रतिमा में पानी, पान, सुपारी, इलायची, औषधि आदि समस्त पदार्थोंका सर्वथा त्याग बतलाया है इसलिये छठी प्रतिमा धारण करनेवाले बुद्धिमान् मनुष्यको औषधि या जल आदि पदार्थ प्राणोंके नाश होनेका समय आनेपर भी रात्रि में कभी नहीं खाने चाहिये ॥४३॥ कदाचित् यहाँपर कोई यह शंका करे कि दर्शन प्रतिमाको धारण करनेवाला (दर्शन प्रतिमामें भी मूलगुणोंका धारण करनेवाला) अव्रती है-उसके कोई व्रत नहीं है इसलिये वह रात्रिमें अन्नादिक भोजनोंका भी त्याग नहीं कर सकता-वह रात्रिमें अन्नादिक भोजन खा सकता है अथवा वह अभी अव्रती है इसलिए वह रात्रि भोजनके त्यागमें असमर्थ है-शक्ति रहित है इसलिए भी वह रात्रिमें अन्नादिक भोजन खा सकता है। अथवा वह पाक्षिक है-व्रतादिकों के धारण करनेका केवल पक्ष रखता है। व्रतादिकोंको धारण नहीं करता इसलिए भी वह रात्रि भोजनका त्याग नहीं कर सकता। परन्तु ऐसी शंका करना ठीक नहीं है क्योंकि इस दर्शन प्रतिमा में अथवा दर्शन प्रतिमाके अन्तर्गत मूलगुणोंके धारण करने में एक कुलाचार माना गया है-कुल परम्परासे चला आया जो आचरण उसे कुलाचार कहते हैं और उसी कुलाचारको कूलक्रिया भी कहते हैं। रात्रि-भोजनका त्याग करना इस पाक्षिक श्रावकका कुलाचार या कूलक्रिया है। इस कलाचार या कलक्रियाके बिना वह मनुष्य दर्शन प्रतिमाधारी अथवा पाक्षिक श्रावक नहीं हो सकता। और की तो क्या? इस रात्रि भोजन त्यागरूप कुलक्रियाके बिना नाम मात्रसे भी वह पाक्षिक श्रावक नहीं हो सकता ।।४४-४५।। जो मांस मात्रका त्यागी है और रात्रि भोजन नहीं करता है वह सबसे जघन्य व्रती कहलाता है तथा उससे जो नीच है अर्थात् जिसके मांस और रात्रि भोजनका भी त्याग नहीं है वहाँपर कोई भी क्रिया नहीं समझनी चाहिए ॥४६॥ - कदाचित् कोई यह कहे कि पाक्षिक श्रावक किसी व्रतको पालन नहीं करता इसीलिए वह अवती है । वह तो व्रत धारण करनेको केवल पक्ष रखता है-किसी व्रतको पालन नहीं करता अतएव वह रात्रि भोजनका त्याग भी नहीं कर सकता। परन्तु शंका करनेवालेको यह शंका करना ठीक नहीं है और इसका भी कारण यह है कि रात्रि भोजनका त्याग न करनेसे उसका पाक्षिकपना अथवा व्रतोंके धारण करनेके पक्षको स्वीकार करना भी सिद्ध नहीं होता, क्योंकि उसमें प्रत्यक्ष बाधा आ जाती है। जब गत्रि भोजनका त्याग करना कुलक्रिया है और उसके बिना दर्शन प्रतिमा या मूलगुण हो ही नहीं सकते फिर भला रात्रि भोजन करनेवालेके मूलगुणोंका अथवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001553
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages574
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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