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________________ श्रावकाचार-संग्रह इत्यं स्तुत्य मुनीशानं विविधिविराजितम् । पराभवं निजं राजी व्याहरत्सर्वमादितः ॥७२२ मा कृथास्त्वं वृथा शोकं करिष्यामि तवेप्सितम् । इत्युक्त्वा लब्धिसामर्थ्यात्स ययावमरावतीम् ॥७२३ तदागममथाकर्ण्य सर्वे विद्याधरेश्वराः। सादरं मुनिनाथस्य प्रणेमुः पादपङ्कजम् ।।७२४ धर्मोपदेशपीयूषैः पोषयित्वा खगान् यतिः । परोपकारव्यापारकरणप्रवणो जगौ ॥७२५ ये कुर्वन्ति स्वयं भक्त्या कारयन्ति च ये नराः। जिनप्रभावनां तेषां धन्यं जन्म च जीवितम् ॥७२६ अतो गत्वा वितन्वन्तु मथुरायां पुरि द्रुतम् । जिनप्रभावना राज्या उविलायाः सुखाप्तये ॥७२७ तस्यादेशात्समागत्य मथुरायां खगेश्वराः । कोपाबुद्धरथं भङ्क्त्वा चजिनरथोत्सवम् ॥७२८ वाद्यमानेषु वाद्येषु नृत्यन्तीष्वङ्गनासु च । स्तुवत्सु भट्टवृन्देषु चारणेषु पठत्स्वपि ॥७२९ सनाथं जिनबिम्बेन रथं निष्कास्य मन्दिरात् । पत्तने भ्रामयामासुः खेचरेन्द्रा महोत्सवैः ७३० जिनशासनमाहात्म्यमित्यालोक्य महीपतिः । बुद्धदासी तथाऽन्येऽपि बभूवुजिनवत्सलाः ॥७३१ वन्दारुसुन्दरसुरेन्द्रशिरःकिरीटरत्नप्रभाविकसिताघ्रिसरोरुहश्रीः । कृत्वा प्रभावनमगात्पदमव्ययं यः कुर्याच्छिवं स मम वज्रकुमारनाथः ॥७३२ इति प्रभावनाङ्ग वज्रकुमारकथा ॥८॥ अथ सम्यक्त्वस्याष्ट उक्तं च-संवेओ णिव्वेओ जिंदा गाहा य उवसमो भत्ती । वच्छल्लं अणुकंपा अट्ठगुणा होंति सम्मत्ते ॥७३३ सन्तापको शान्त करनेके लिए महामेघ, हे सधन अन्धकार विनाशक स्वामिन्, आप ही मेरे शरण हैं ।।७२१।। इस प्रकार अनेक ऋद्धियोंसे विराजित मुनिराजकी स्तुति करके रानीसे आदिसे लेकर अपने सर्व पराभवके वृत्तान्तको कहा ॥७२२॥ तब वज्रकुमार मुनिने कहा-तुम व्यर्थ शोक मत करो, मैं तुम्हारे अभीष्ट कार्यको करूंगा। ऐसा कहकर वे ऋद्धिकी सामर्थ्यसे अमरावती नगरी गये ॥७२३।। उनके आगमनको सुनकर विद्याधर राजाओंने आदरपूर्वक मुनिराजके चरणकमलोंको नमस्कार किया ॥७२४॥ धर्मोपदेशरूप अमृतसे सर्व विद्याधरोंको तृप्त करके परोपकार रूप व्यापार करने में प्रवीण मुनिराजने उनसे कहा ।।७२५।। जो मनुष्य भक्तिसे स्वयं जिनशासनकी प्रभावना करते हैं और कराते हैं उनका जन्म और जीवन धन्य है ॥७२६।। इसलिए तुम लोग शीघ्र मथुरापुरी जाकर उविला रानीके सुख प्राप्तिके लिए जिनशासनकी प्रभावना करो ॥७२७॥ वज्रकुमार मुनिराजके आदेशसे उन विद्याधर राजाओंने मथुरामें जाकर क्रोधसे बुद्ध देवके रथको तोड़फोड़कर जिनदेवके रथका उत्सव किया ॥७२८।। तब बाजोंके बजते हुए, स्त्रियोंके नृत्य गान करते हुए, भाट समूहोंके स्तुति करते हुए और चारणजनोंके विरुद-पाठ करते हुए जिन बिम्बके साथ रथ को जिन मन्दिरसे निकालकर उन विद्याधरेन्द्रोंने महान् उत्सवके साथ नगर में घुमाया ॥७२९७३०॥ जिनशासनका ऐसा माहात्म्य देखकर पूतिगन्ध राजा, बुद्धदासी रानी, तथा अन्य भी अनेक लोग जिनधर्मके प्रेमी हो गये ॥७३१॥ वन्दना करते हुए सुन्दर सुरेन्द्रके शिरके मुकुटमें लगे हुए रत्नोंकी प्रभासे विकासको प्राप्त हो रही है चरणकमलोंकी शोभा जिनकी, ऐसे जो वज्रकुमार स्वामी जैनशासनकी प्रभावना करके अव्यय पदको प्राप्त हुए, वे मुझे भी शिव पद प्रदान करें ॥७३२॥ यह प्रभावना अंगमें वज्रकुमार मुनिकी कथा है ॥८॥ अब सम्यक्त्वके आठ गुणोंका वर्णन करते हैं, कहा भी है-संवेग, निर्वेद, निन्दा, गर्दा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001553
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages574
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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