SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतोद्योतन-श्रावकाचार धर्मेण राज्यं विभवः कलत्रं धर्मेण सोल्यं धनधान्यवृद्धिः। धर्मेण पुत्राः सुहृवश्च मित्रा धर्मेण विद्यागमनं न विघ्नः ॥३४१ धर्मेण सप्तक्षणसौधभूमिधर्मेण तातो जननी समोहा। धर्मेण सैन्यं विभु चातुरङ्ग धर्मेण पञ्चाङ्गहरी प्रिया च ॥३४२ धर्मेण विज्ञानकला समना धर्मेणु भोगो विशदं च गोत्रम्।। धर्मेण भृत्या बलपूरिताङ्गा धर्मेण वस्त्राणि मनोहराणि ॥३४३ धर्मण गैहं वनराजिपूर्ण धर्मेण शय्यासनकामलीला।। धर्मेण विद्वज्जनसाधूगोष्ठी धर्मेण कोतिविशवा जगत्सु ॥३४४ धर्मेण रत्नानि सवर्णवन्ति धर्मेण नीरोगमयं वपश्च । धर्मेण पात्रोपरि दानचिन्ता धर्मेण शीलव्रतसत्यशौचम् ॥३४५ धर्मेण देवेन्द्रपदं गरिष्ठं धर्मेण कन्वर्पसमं च रूपम् । धर्मेण पूजा गुणगौरवं स्याद् धर्मेण लोकत्रितये विशुद्धिः ॥३४६ यानि यानि मनोज्ञानि वस्तूनि भुवनत्रये । दृश्यन्ते तानि तानोह सम्पद्यन्ते सुधर्मतः ॥३४७ पापेन गेहं बहुछिद्रजर्जरं पापेन रोगालपितं कलेवरम् । पापेन पुत्राश्चिरजन्मवैरिणो भवन्ति पापेन तथा कुटुम्बिनः ॥३४८ नित्यं दुःखसमाश्रयो न च सुखं चित्तक्षयो नेन्दिरा भार्या दोषशतान्विता कटुकवाग्वेश्येव दुश्चारिणी पुत्री त्यक्तपरा रिपोः परिभवो दैन्यं च दौर्भाग्यता दारिद्रयं मलसंचयो व्यसनिता संपद्यते पापतः॥३४९ धर्मसे राज्य-वैभव और सुन्दर स्त्री प्राप्त होती है, धर्मसे सौख्य, धन और धान्यकी वद्धि होती धर्मसे पुत्र, सुहृद् और मित्र प्राप्त होते हैं, धर्मसे विद्याओंका ज्ञान प्राप्त होता है और किसी भी कार्यमें विघ्न नहीं आता है ॥३४१॥ धर्मसे सात खण्ड वाले राजमहलोंमें निवास प्राप्त होता है। धर्मसे रक्षक पिता और ममतामयी जननी प्राप्त होती है। धर्मसे चतुरंग विशाल सेना मिलती है और धर्मसे पाँचों अंगोंको आनन्द देनेवाली प्रिया प्राप्त होती है ||३४२|| धर्मसे सम्पूर्ण विज्ञान कथाएँ प्राप्त होतो हैं, धर्मसे उत्तम भोग और विशाल एवं निर्मल गोत्र प्राप्त होता है। धर्मसे बलवीर्यसे भर-पूर अंग वाले नौकर मिलते हैं, और धर्मसे मनोहर वस्त्र प्राप्त होते हैं ॥३४३।। धर्मसे वनर र्ण गह प्राप्त होता है. धर्मसे शय्या और आसन और उनपर काम लीला प्राप्त होती है। धर्मसे विद्वज्जनों और साधुओंकी गोष्ठी मिलती है, धर्मसे संसारमें निर्मल कीत्ति फैलती है ।।३४४।। धर्मसे उत्तम वर्ण वाले रत्न प्राप्त होते हैं और धर्मसे रोग रहित नीरोग शरीर प्राप्त होता है। धर्मसे पात्रोंको दान देनेका विचार आता है, धर्मसे शील, व्रत, सत्य और शौच प्राप्त होते हैं॥३४५॥ धर्मसे गरिमामय देवेन्द्र पद प्राप्त होता है, धर्मसे कामदेवके समान सुन्दर रूप मिलता है, धर्मसे संसारमें पूजा प्राप्त होती है और गुणोंका गौरव होता है, तथा धर्मसें तीनों लोकोंमें विशुद्धि प्राप्त होती है ।।३४६।। तीनों लोकों में जो जो मनोज्ञ वस्तुएँ दिखाई देती हैं, वे सब इस लोकमें सुधर्मसे प्राप्त होती हैं ॥३४७॥ __ पापसे अनेक छिद्रोंसे जर्जरित गृह प्राप्त होता है, पापसे रोगग्रसित शरीर मिलता है, पापसे चिरकाल तक वैर रखनेवाले पुत्र होते हैं और पापसे कुटुम्बी वैरी होते हैं ॥३४८॥ पापके उदयसे सदा हो दुःख आते रहते हैं, क्षणभर भी सुख नहीं मिलता, चित्तका क्षय हो जाता है, लक्ष्मी नहीं मिलती है, स्त्री सैकड़ों दोषोंसे युक्त, कटुभाषिणी, और वेश्याके समान दुराचारिणी मिलती है, पुत्री पतिको छोड़नेवाली पैदा होती है, दीनता, दुर्भाग्यता, दरिद्रता, व्यसनिता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001553
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages574
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy