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________________ २६ ग्रन्थकारकी प्रशस्ति परिशिष्ट २२. चारित्र प्राभृत- गत श्रावक-धर्मका वर्णन २३. तत्त्वार्थसूत्र - गत श्रावक व्रतोंका निरूपण २४. रत्नमाला - गत श्रावकधर्मका निरूपण देव, शास्त्र और गुरूका स्वरूप - वर्णन श्रावकके बारह व्रतोंका निर्देश श्रावकाचार संग्रह वस्त्र-गालित जलको पीने और स्नानादिमें उपयोग करनेका उपदेश साधुजनोंको निर्दोष पुस्तक, पिच्छी आदिके देनेका उपदेश साधुओं की वैयावृत्त्य करने और जिनचैत्यालयादिके निर्माण करानेका उपदेश पंच अणुव्रतोंका संक्षेपसे स्वरूप-निरूपण तीन मकार और सप्त व्यसनोंके सेवनके त्यागका उपदेश -प्राप्ति के लिए नित्य नैमित्तिक शुभ क्रियाओंके करनेका उपदेश बौद्ध, चार्वाक आदिके सन्मान, पोषण आदिका निषेध दानसे ही पंच सूना - जनित पापकी शुद्धिका विधान विभिन्न प्रकारके प्रासुक जलकी काल-मर्यादा और उसके ग्रहणादिका विधान - निषेध व्रत -हानि और सम्यक्त्व -दूषण नहीं करनेवाली क्रियाओंके करनेका उपदेश चर्मपात्रगत घृत- तेलादिके त्यागका उपदेश २५. पद्मचरित - गत श्रावकाचार धर्मका स्वरूप और श्रावकके बारह व्रतोंका स्वरूप - निरूपण मद्य, मांस, मधु-भक्षण, द्यूत-सेवन, रात्रिभोजन और वेश्यागमनके त्यागका उपदेश २६. वराङ्गचरित-गत श्रावकाचार दयामय धर्मका निरूपण श्रावकके बारह व्रतोंका स्वरूप-निरूपण व्रत धारण करनेके फलका वर्णन Jain Education International ३९९ ४०२-५३३ ४०५ ४०६-४०९ ४१०-४१५ २७. हरिवंश पुराण- गत श्रावकाचार हिंसादि पंच पापोंके एकदेश त्यागसे अणुव्रत और सर्वथा त्यागसे महाव्रत होनेका निर्देश प्रत्येक व्रतकी पाँच-पाँच भावनाओंका वर्णन मैत्री आदि भावनाओंका वर्णन पंच अणुव्रतों का स्वरूप-निरूपण तीन गुणव्रतोंका स्वरूप-वर्णन चार शिक्षाव्रतोंका और सल्लेखनाका स्वरूप - निरूपण For Private & Personal Use Only सम्यक्त्व, बारह व्रत और सल्लेखनाके अतीचारोंका वर्णन पात्रोंको प्रासुक निर्दोष दान देनेका विधान ४१० ४११ "1 ܙܕ ४१२ " ४१३ 13 ४१४ 37 ४१५ "" ४१६-४१७ ४१६ ४१७ ४१८-४१९ ४१८ 11 11 ४१९ ४२०-४२६ ४.२० "" 33 ४२१ ४२२ ४२३ ४२६ www.jainelibrary.org
SR No.001553
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages574
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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