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लाटीसंहिता प्रक्षालनं च वस्त्राणां प्रासुकेन जलाविना । कुर्याद्वा स्वस्य हस्ताम्यां कारयेद्वा समिणा ॥३७ बहुप्रलपितेनालमात्मार्थ वा परात्मने । यत्रारम्भस्य लेशोऽस्ति न कुर्यातामपि क्रियाम् ॥३८ नवमं प्रतिमास्थानं व्रतं चास्ति गृहाथमे । यत्र स्वर्णाविद्रव्यस्य सर्वतस्त्यजनं स्मृतम् ॥३९ इतः पूर्व सुवर्णादिसंख्यामात्रापकर्षणः । इतः प्रभृति वित्तस्य मूलादुन्मूलनं व्रतम् ॥४० अस्त्यात्मैकशरीराथं वस्त्रवेश्मादि स्वीकृतम् । धर्मसाधनमात्रं वा शेषं निःशेषणीयताम् ॥४१ स्यात्पुरस्तादितो यावत्स्वामित्वं समयोषिताम् । तत्सवं सर्वतस्त्याज्यं निःशल्यं जीवनावधि ॥४२ शेषो विधिस्तु सर्वोऽपि ज्ञातव्यः परमागमात् । सानुवृत्तं व्रतं यावत्सर्वत्रवेष निश्चयः ॥४३ वतं दशमस्थानस्थमननुमननाह्वयम् । यत्राहारादिनिष्पत्तौ देया नानुमतिः क्वचित् ।।४४ आदेशोनुमतिश्चाज्ञा सैवं कुर्वितिलक्षणा । यद्वा स्वतः कृतेनादौ प्रशंसानुमतिः स्मृता ॥४५ अयं भावः स्वतः सिद्धं यथालब्धं समाहरेत् । तपश्चेच्छानिरोधात्यं तस्यैव किल संवरः॥४६
बहुत
करनेवाला श्रावक व्रती होनेपर भी दशवी प्रतिमासे पहले पहले अपने घरका स्वामी बना रहता है इसीलिए वह दूसरेके घर भोजन करनेका नियम नहीं लेता ॥३६॥ वह अपने वस्त्रोंको प्रासुक जलसे अपने हाथसे धोता है, अथवा अन्य किसी साधर्मी भाईसे धुलवा लेता है ॥३७॥ वहुत कहने से क्या? थोड़ेसे में इतना समझ लेना चाहिये कि आठवी प्रतिमाको धारण करनेवाला व्रती श्रावक अपने लिए अथवा किसी दूसरेके लिए ऐसी कोई भी क्रिया नहीं करता जिसमें लेशमात्र भी आरम्भ हो ॥३८॥ इस प्रकार आठवीं प्रतिमाका स्वरूप कहा । व्रतो श्रावककी नौवीं प्रतिमा का नाम परिग्रहत्याग प्रतिमा है। इस नौवीं प्रतिमाको धारण करनेवाला श्रावक सोना चांदी रुपया पैसा आदि समस्त द्रव्यमात्रका त्याग कर देता है ।।३९।। इस नौवीं प्रतिमाको स्वीकार करने के पहले सोना चांदी आदि द्रव्योंका परिमाण कर रक्खा था तथा अपनी इच्छानुसार वह परिमाण
घटा रक्खा था अर्थात् बहुत थोड़े द्रव्यका परिमाण कर रक्खा था परन्तु अब इस प्रतिमाको धारण कर लेनेपर वह श्रःवक सोना चांदी आदि धनका त्याग सर्वथा कर देता है ॥४०॥ इस परिग्रहत्यागप्रतिमाको धारण करनेवाला श्रावक केवल अपने शरीरके लिए वस्त्र, घर आदि आवश्यक पदार्थों को स्वीकार करता है अथवा धर्मसाधनके लिए जिन जिन पदार्थोकी आवश्यकता पड़ती है उनको ग्रहण करता है। इसके सिवाय बाकीके समस्त पदार्थोंका-समस्त परिग्रहोंका वह त्याग कर देता है ।।४१।। इस नौवीं प्रतिमाको धारण करनेसे पहले वह घर और स्त्री आदिका स्वामी गिना जाता था, परन्तु इस नौवीं प्रतिमाको धारण कर लेनेपर उसे जन्मपर्यन्ततकके लिए पूर्णरीतिसे सबका त्याग कर देना पड़ता है और तब सब तरहसे शल्य-रहित हो जाता है ॥४२॥ इस प्रतिमाको धारण करनेवाले श्रावककी शेष विधि अन्य शास्त्रोंसे जान लेनी चाहिए क्योंकि यह निश्चय है कि व्रतोंका स्वरूप समस्त शास्त्रोंमें एक-सा ही वर्णन किया है ।।४३।। इस प्रकार नौंवी प्रतिमाका निरूपण किया। श्रावकोंकी दशवी प्रतिमाका नाम अनुमति त्याग प्रतिमा है। इस अनुमतित्याग प्रतिमाको धारण करनेवाला श्रावक आहार आदि बनानेके लिये भी कभी अपनी सम्मति नहीं देता ॥४४॥ किसी कामके लिये आदेश देना, सलाह देना, आज्ञा देना, अथवा 'ऐसा करो' इस प्रकार कहना अथवा जो कार्य किसीने पहलेसे कर रक्खा है उसकी प्रशंसा करना आदिको अनुमति कहते हैं ।।४५।। इसका भी अभिप्राय यह है कि दशवीं प्रतिमाको धारण करनेवाला श्रावक जैसा कुछ बना बनाया भोजन मिल जाता है उसीको ग्रहण
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