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लाटीसंहिता
भक्षणेऽत्र सचित्तस्य नियमो न तु स्पर्शने । तत्स्वहस्तादिना कृत्वा प्राकं चात्र भोजयेत् ॥ १७ रात्रिभक्तपरित्यागलक्षणा प्रतिमाऽस्ति सा । विख्याता संख्यथा षष्ठी सद्यस्थभावकोचिता ॥१८ इतः पूर्व कदाचिद्वा पयःपानादि स्यान्निशि । इतः परं परित्यागः सर्वथा पयसोऽपि तत् ॥१९ यद्वा विद्यते नात्र गन्धमाल्यादिलेपनम् । नापि रोगोपशान्त्यर्थं तैलाभ्यङ्गादि कर्म तत् ॥२० किञ्च रात्रौ यथा भुक्तं वर्जनीयं हि सर्वदा । दिवा योषिद्व्रतं चापि षष्ठस्थानं परित्यजेत् ॥२१ अस्ति तस्यापि जन्माद्धं ब्रह्मचर्याधिवासितम् । तदर्द्ध सर्वसंन्याससनाथं फलवन्महत् ॥२२ नहि कालकाsपि काचित्तस्यास्ति निष्फला । मन्ये साधुः स एवास्ति कृतो सोऽपीह बुद्धिमान् २३ सप्तमी प्रतिमा चास्ति ब्रह्मचर्याह्वया पुनः । यत्रात्मयोषितश्चापि त्यागो निःशल्यचेतसः ॥ २४ कायेन मनसा वावा त्रिकालं वनितारतम् । कृतानुमननं चापि कारितं तत्र वर्जयेत् ॥२५ अस्ति हेतुवशादेष गृहस्थो मुनिरर्थतः । ब्रह्मचर्यव्रतं यस्माद् दुर्धरं व्रतसन्ततौ ॥२६
पहले अर्थात् चौथी प्रतिमातक कभी-कभी सचित्त पदार्थोंका भी भक्षण कर लेता था परन्तु अब इस प्रतिमाको स्वीकार करनेके बाद वह कभी भी सचित्त पदार्थका भक्षण नहीं करता है । यहाँ तक कि कच्चा जल भी कभी काममें नहीं लाता है ||१६|| इसमें भी इतना और समझ लेना चाहिये कि पांचवीं प्रतिमाको पालन करनेवाले श्रावकके सचित्त पदार्थोंके खानेका त्याग होता है सचित्त पदार्थोंके स्पर्श करनेका त्याग नहीं होता। पांचवीं प्रतिमाको पालन करनेवाला श्रावक जलादिक सचित्त पदार्थोंको अपने हाथसे प्रासुक करके खा-पी सकता है ||१७|| इस प्रकार पांचवीं प्रतिमाका निरूपण किया। अब आगे छठी प्रतिमाका वर्णन करते हैं । गृहस्थ व्रतियोंको पालन करने योग्य छठी प्रतिमाका नाम रात्रिभक्तत्यागप्रतिमा है ||१८|| इस प्रतिमाको स्वीकार करनेसे पहले अर्थात् पाँचवीं प्रतिभातक पालन करनेवाला श्रावक कदाचित् रात्रिमें पानी आदि पीता था परन्तु अब इस छठी प्रतिमाको स्वीकार कर लेनेपर वह श्रावक रात्रिमें पानी पीनेका भी सर्वथा त्याग कर देता है || १९|| इस छठी प्रतिमाको धारण करनेवाला श्रावक रात्रिमें गन्ध, पुष्पमाल आदिका सेवन नहीं कर सकता, न कोई लेप लगा सकता है तथा अपने किसी रोगको शान्त करनेके लिये रात्रिमें तेल लगाना या उबटन लगाना आदि कार्य भी नहीं कर सकता ||२०|| इस छठी प्रतिमाको पालन करनेवाला व्रती श्रावक जिस प्रकार रात्रिमें भोजनका सर्वथा त्याग कर देता है उसी प्रकार वह दिनमें स्त्रीसेवन करनेका भी सर्वथा त्याग कर देता है ||२१|| इस प्रकार जो श्रावक इस छठी प्रतिमाका पालन करता है उसका आधा जन्म तो ब्रह्मचर्य से व्यतीत होता है तथा आधा जन्म सब प्रकारके आहारके त्यागपूर्वक व्यतीत होता है अतएव संसारमें वही जन्म सफल और महत्त्वशालो गिना जाता है ||२२|| इस प्रकार उसका दिन और रात्रि दोनों ही त्यागपूर्वक व्यतीत होते हैं इस प्रकार उसका एक समय भी निष्फल व्यतीत नहीं होता इसलिये संसारमें वही साधु है, वही कृती है और वही बुद्धिमान् गिना जाता है ||२३|| इस प्रकार छठी प्रतिमाका वर्णन किया। सातवीं प्रतिमाका नाम ब्रह्मचर्यं प्रतिमा है। इस प्रतिमामें अपनी विवाहिता धर्मपत्नीका भी सर्वथा त्याग कर देना पड़ता है और अपना हृदय सर्वथा निःशल्य बना लेना पड़ता है ||२४|| इस ब्रह्मचर्य प्रतिमाको धारण करनेवाला श्रावक मनसे, वचनसे, कायसे और कृत-कारित अनुमोदनासे भूत-भविष्यत् वर्तमान तीनों काल सम्बन्धी समस्त स्त्रीमात्रके सेवन करनेका त्याग कर देता है ||२५|| इस सातवीं प्रतिमाको धारण करनेवाला श्रावक किसी कारण
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