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________________ षष्ठ सर्ग द्वादशव्रतशुद्धस्य विशुद्धेश्चातिशायिनः । युक्तमुत्कृष्टाचरणमिच्छतस्तत्पदं मुदे ॥१ स्यात्सामायिक प्रतिमा नाम्ना चाप्यस्तिसंख्यया । तृतीया व्रतरूपा स्यात्कर्तव्या वेश्मशालिभिः ॥२ व्रतानां द्वादशं चात्र प्रतिपाल्यं यथोदितम् । विशेषादपि कर्तव्यं सम्यक् सामायिकव्रतम् ॥३ ननु व्रतप्रतिमायामेतत्सामायिकव्रतम् । तदेवात्र तृतीयायां प्रतिमायां तु कि पुनः ॥४ सत्यं किन्तु विशेषोऽस्ति प्रसिद्धः परमागमे । सातिचारं तु तत्र स्यादत्रातीचारविवर्जितम् ॥५ किञ्च तत्र त्रिकालस्य नियमो नास्ति देहिनाम् । अत्र त्रिकालनियमो मुनेर्मूलगुणादिवत् ||६ तत्र हेतुवशात् क्वापि कुर्यात्कुर्यान्न वा क्वचित् । सातिचारव्रतत्वाद्वा तथापि न व्रतक्षतिः ॥७ अत्रवश्यं त्रिकालेऽपि कार्यं सामायिकं जगत् । अन्यथा व्रतहानिः स्यादतीचारस्य का कथा ॥८ अन्यत्राप्येवमित्यादि यावदेकादशस्थितिः । व्रतान्येव विशिष्यन्ते नार्थादर्थान्तरं क्वचित् ॥९ जो श्रावक बारह व्रतोंके पालन करनेसे शुद्ध है तथा निर्मल सम्यग्दर्शनके प्रभाव से जिसकी विशुद्धि, जिसके आत्माकी निर्मलता अत्यन्त बढ़ती जा रही है और जो अपनी आत्माका कल्याण करनेके लिए उत्तम मुनिपदको धारण करनेकी इच्छा करता है ऐसे श्रावकको उत्कृष्ट आचरण धारण करना चाहिये || १|| तीसरी प्रतिमाका नाम सामायिक प्रतिमा है । व्रती श्रावकोंको दूसरी प्रतिमाके पालन करनेमें निपुण हो जानेपर तीसरी प्रतिमा पालन करनी चाहिये ||२|| इस तीसरी प्रतिमामें ऊपर कहे हुए बारह व्रतोंका तो पालन करना ही चाहिये किन्तु इतना और विशेष है कि इसमें सामायिक नामका व्रत बहुत अच्छी तरहसे विधिपूर्वक करना चाहिये || ३|| यहांपर शंकाकार शंका करता है कि यह सामायिक नामका व्रत व्रतप्रतिमामें कहा है तथा वही सामायिक नामका व्रत इस तीसरी प्रतिमामें बतलाया सो इसमें क्या विशेषता है || ४ || ग्रन्थकार उत्तर देते हुए कहते हैं कि आपका कहना सत्य है जो सामायिक व्रतप्रतिमामें है वही सामायिक तीसरी प्रतिमामें है परन्तु उन दोनोंमें जो विशेषता है वह शास्त्रोंमें प्रसिद्ध है और वह विशेषता यह है कि व्रतप्रतिमा में जो सामायिक है वह अतिचार सहित पालन किया जाता है तथा इस तीसरी प्रतिमामें जो सामायिक है वह अतिचार रहित पालन किया जाता है ||५|| इसके सिबाय भी इसमें इतनी और विशेषता है कि व्रतप्रतिमामें श्रावकों को तीनों समय सामायिक करनेका नियम नहीं है किन्तु इस तीसरी सामायिक प्रतिमामें मुनियोंके मूलगुण आदिके समान तीनों समय सामायिक करनेका नियम है || ६ || दूसरी प्रतिमाको धारण करनेवाला व्रती श्रावक सामायिक करता है और कभी किसी स्थानपर कारणवश नहीं भी करता है क्योंकि वहाँपर वह सामायिक व्रतको अतिचारसहित पालन करता है इसीलिये कभी किसी स्थानपर कारणवश सामायिक न करनेपर भी उसके व्रतकी हानि नहीं होती ||७|| परन्तु इस तीसरी सामायिक प्रतिमामें यह बात नहीं है । सामायिक प्रतिमाको धारण करनेवाले व्रती श्रावकको तीनों समय अवश्य सामायिक करना पड़ता है । यदि वह तीनों समयमेंसे एक समय में भी सामायिक न करे तो उसके व्रतोंकी हानि हो जाती है फिर भला अतिचारोंकी तो बात ही क्या है ॥८! | जो यह नियम तथा दूसरी प्रतिमाको धारण करनेवाले श्रावकोंके व्रतोंसे विशेषता इस सामायिकमें बतलायी है वही विशेषता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001553
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages574
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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