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________________ श्रावकाचार-संग्रह प्रोषधोपवासस्यात्र लक्षणं कथितं मया । इतः संख्योपभोगस्य परिभोगस्य चोच्यते ॥२११ निर्दिष्टं लक्षणं पूर्वं परिभोगोपभोगयोः । तयोः संख्या प्रकर्तव्या सागारैर्वतधारिभिः ॥ २१२ सन्ति तत्राप्यतीचाराः पञ्च सूत्रोदिता बुधैः । परिहार्याः प्रयत्नेन श्रावकैर्धर्मवेदिभिः ॥२१३ तत्सूत्रं यथा १३६ सचित्तसम्बन्धसम्मिश्राभिषवदुः पक्काहाराः ॥५९ चिकीर्षन्नपि तत्संख्यां सचित्तं यो न मुञ्चति । दोषः सचित्तसंज्ञोऽस्य भवेत् संख्याव्रतस्य सः ॥ २१४ तथाविधोऽपि यः कश्चिच्चेतनाधिष्ठितं च यत् । वस्तुसंख्यामकुर्वाणो भवेत्सम्बन्धदूषणम् ॥२१५ मिश्रितं च सचितेन वस्तुजातं च वस्तुना । स्वीकुर्वाणोऽप्यतीचारं सन्मिश्राख्यं च न त्यजेत् ॥ २१६ आहारं स्निग्धग्राहिश्च ? दुर्जरं जठराग्निना । असंख्यातवतस्तस्य दोषो दुष्पक्कसंज्ञकः ॥२१७ उक्तातिचारनिर्युक्तं परिभोगोपभोगयोः । संख्याव्रतं गृहस्थानां श्रेयसे भवति ध्रुवम् ॥२१८ रखना स्मृत्यनुपस्थान नामका पाँचवाँ अतिचार कहलाता है । इस अतिचारका यह लक्षण उपलक्षणरूपसे कहा है । मनके समान वचन और शरीरको भी चंचल रखना प्रोषधोपवासका अतिचार समझना चाहिये । इस प्रकार प्रोषधोपवासके पाँचों अतिचारोंका वर्णन किया । प्रोषधोपवासव्रत धारण करनेवाले व्रती श्रावकको इन पाँचों अतिचारोंका त्याग अवश्य कर देना चाहिये ||२१|| इस प्रकार प्रोषधोपवास व्रतका लक्षण बतलाया । अब आगे भोगोपभोगपरिमाणका लक्षण कहते हैं ।। २११ || उपभोग और परिभोग दोनोंका लक्षण पहले इसी अध्याय में कह चुके हैं । व्रत धारण करनेवाले गृहस्थोंको उपभोग और परिभोग दोनों प्रकारके पदार्थोंकी संख्या नियत कर लेनी चाहिये || २१२ || इस उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रतके भी पाँच अतिचार हैं जो सूत्रमें भी बतलाये हैं । धर्मके स्वरूपको जाननेवाले विद्वान् श्रावकोंको बड़े प्रयत्नसे इन अतिचारोंका त्याग कर देना चाहिये ॥२९३॥ उन अतिचारोंको कहनेवाला सूत्र यह है-सचित्त पदार्थोंका सेवन करना, सचित्तसे सम्बन्ध रखनेवाले पदार्थों का सेवन करना, सचित्तसे मिले हुए पदार्थों का सेवन करना, रसीले पौष्टिक आहारका सेवन करना और दुष्पक्व अर्थात् जो अच्छी तरह नहीं पका है अथवा जो आवश्यकता से अधिक पक गया है ऐसे पदार्थोंका सेवन करना ये पाँच उपभोग परिभोगपरिमाणके अतिचार हैं ॥५९॥ आगे इन्हींका वर्णन करते हैं । उपभोगपरिभोग पदार्थों का परिमाण करनेकी इच्छा करनेवाला अर्थात् उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रतको धारण करनेवाला श्रावक यदि सचित्त पदार्थोंका त्याग न करे तो उसके उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रतका सचित्त नामका अतिचार होता है ।। २१४॥ जो पदार्थ अचित्त हैं परन्तु उनका सम्बन्ध सचित्त पदार्थोंसे हो तो उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत करनेवाले श्रावकोंको ऐसे पदार्थों का भी त्याग कर देना चाहिए। यदि व्रती श्रावक ऐसे पदार्थोंका त्याग न करें तो उनको सचित्तसम्बन्ध नामका दूसरा अतिचार लगता है || २१५ || यदि उपभोगपरिभोगपरिमाणवत करनेवाला व्रती श्रावक सचित्तसे मिले हुए पदार्थों का त्याग न करे, सचित्तसे मिले हुए अचित्त पदार्थों का सेवन करे तो उसके सचित्तसन्मित्र नामका तीसरा अतिचार या दोष लगता है || २१६ ॥ जो पदार्थ चिकने और रसीले हैं तथा जो पेटकी अग्निसे पच नहीं सकते ऐसे पदार्थोंका त्याग न करना अभिषव नामका अतिचार है || २१७|| जो पदार्थ अग्निके द्वारा अच्छी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001553
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages574
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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