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श्रावकाचार-संग्रह यथा वा यावदद्याह्नि भूयान्मेऽनशनं महत् । यद्वा तत्रापि रात्रौ च ब्रह्मचर्य ममास्तु तत् ॥१२५ यथा वा वर्षासमये चातुर्मासेऽथ योगिवत् । इतः स्थानान्न गच्छामि क्वापि देशान्तरे जवात् ।।१२६ परिपाटयानया योज्या वृत्तिः स्यादबहुविस्तरा । कर्तव्या च यथाशक्ति मातेव हितकारिणी ॥१२७ पञ्चातिचारसंज्ञाः स्युर्दोषाः सूत्रोविता बुधैः । देशविरतिरूपस्य व्रतस्यापि मलप्रदाः ॥१२८ सत्सूत्रं यथा
आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः ॥५२ वात्मसङ्कल्पिताद्देशाबहिः स्थितस्य वस्तुनः । आनयेतीङ्गितैः किञ्चिद् ज्ञापनानयनं मतम् १२९ उक्तं केनाप्यनुक्तेन स्वयं तच्चानयाम्यहम् । एवं कुविति नियोगो प्रेष्यप्रयोग उच्यते ॥१३० शब्दानुपातनामापि दोषोऽतीचारसंज्ञकः। संदेशकारणं दूरे तव्यापारकरान् प्रति ॥१३१ दोषो रूपानुपाताख्यो व्रतस्यामुष्य विद्यते । स्वाङ्गाङ्गदर्शनं यद्वा समस्या चक्षुरादिना ॥१३२ अथवा आज अबसे लेकर दिन भर तक मेरे चारों प्रकारके आहारका त्याग है और आजको रात्रिमें अपना पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करूंगा ॥१२५॥ अथवा वर्षा होनेके समयमें अथवा वर्षा ऋतुके चार महीनेमें में मुनिराजके समान इसी स्थान पर रहूँगा इतने दिन तक इस स्थानसे अन्य किसी भी देश या गांवमें कभी नहीं जाऊंगा ।।१२६।। इस क्रमके अनुसार, इस परिपाटीके अनुसार इस देशव्रतका पालन करना चाहिये। इस परिपाटीके अनुसार इसका विस्तार बहुत कुछ बढ़ सकता है । व्रती श्रावकोंको अपनी शक्तिके अनुसार इस व्रतका पालन अवश्य करना चाहिये क्योंकि यह व्रत माताके समान आत्माका कल्याण करनेवाला है ॥१२७।। इस देश विरति नामके व्रतको दूषित करनेवाले पांच अतिचार हैं जो सूत्रमें बतलाये हैं। व्रती श्रावकोंको उनका भी त्याग कर देना चाहिये ॥१२८॥
वह सूत्र यह है-नियत की हुई मर्यादाके बाहरसे किसीको बुलाना या कोई पदार्थ मंगाना, मर्यादाके बाहर किसीको भेजना या किसीके द्वारा काम कराना, मर्यादाके भीतर रहते हुए मर्यादाके बाहर अपने शब्दसे ही काम निकालना अथवा अपना रूप दिखाकर अथवा शरीरके किसी इशारेसे मर्यादाके बाहर काम निकालना तथा ढेले पत्थर फेंक कर मर्यादाके बाहर रहनेवालोंके लिये कुछ इशारा करना या काम निकालना ये पाँच देशव्रतके अतिचार हैं । आगे इन्हींका विशेष वर्णन करते हैं ॥५२॥
देशव्रतको धारणा करनेवाले व्रती पुरुषने उस देशव्रतकी जितनी मर्यादा नियत कर ली है उसके बाहर रक्खे हुए पदार्थको मंगानेके लिये किसी पुरुषको किसी भी इशारेसे बतला देना आनयननामका अतिचार है ।।१२९।। इसी प्रकार जिस किसी पुरुषको उस पदार्थको लानेके लिये आज्ञा नहीं दी है या कुछ भी इशारा नहीं किया है वह पुरुष यदि यह कहे कि मैं उस पदार्थको लाता हूँ उस पुरुषको 'तू ऐसा करना इस प्रकार करना' इस प्रकारकी आज्ञा न देनेको प्रेष्यप्रयोग कहते हैं ।।१३०।। अपनी नियत की हुई मर्यादाके बाहर जो कोई व्यापार करनेवाले हैं या अपना काम करनेवाले मुनीम गुमास्ते नौकर चाकर हैं उनको अपने शब्दके द्वारा कोई भी सन्देश पहुँचाना, कोई भी कार्य बता देना अथवा वे अपने काममें लगे रहें इसलिए खकार मठार कर अपनी देखरेख या उपस्थिति बतला देना शब्दानुपात नामका अतिचार है। यह भी व्रतको दूषित करनेवाला है इसलिये व्रती श्रावकको इसका भी त्याग कर देना चाहिये ॥१३१॥ मर्यादाके बाहर काम
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