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१.६
श्रावकाचार-संग्रह अन्तरायाश्च सन्स्यत्र बावकाचारगोचराः । अवश्यं पालनीयास्ते वसहिंसानिवृत्तये ॥२३९ बसनपर्धनान्म नसि स्वरणादपि भवणाद गन्धनान्चापि रसनावन्तरायकाः ॥२ दर्शनातद्यया सा- मांसमक्षं वसाऽजिनम् । अत्यादि भोजनस्यादौ सद्यो दृष्ट्वा न भोजयेत् ॥२४१ शुष्कर्मास्थिलोमादिस्पर्शनान्नैव भोजयेत् । मूषकादिपशुस्पर्शात्यजेदाहारमअसा ॥२४२ गन्धनान्मद्यगन्धेव पूतिगन्धेव तत्समे । आगते घ्राणमागं च नान्नं भुञ्जीत दोषवित् ।।२४३
प्राक परिसंख्यया त्यक्तं वस्तुजातं रसादिकम् ।
भ्रान्त्या विस्मृतमादाय त्यजेद् भोज्यमसंशयम् ॥२४४ बामगोरसतंपृक्तं द्विदलानं परित्यजेत् । लालायाः स्पर्शमाओण त्वरितं बहुमर्छनात् ॥२४५ भोज्यमध्यादशेषांश्च दृष्ट्वा त्रसकलेवरान् । यद्वा समूलतो रोम दृष्ट्वा सद्यो न भोजयेत् ॥२४६ चर्मतोयादिसम्मिश्रात्सदोषमशनादिकम् । परिज्ञायेङ्गितैः सूक्ष्मैः कुर्यादाहारवर्जनम् ॥२४७ जानेवाले जीव दृष्टिगोचर हो रहे हों वहांपर भी भोजन नहीं करना चाहिये ॥२३८।। अणुव्रती श्रावकोंके लिए श्रावकाचारोंमें भोजनके अन्तराय बतलाये हैं। श्रावकोंको बस जीवोंकी हिंसाका त्याग करनेके लिए उन अन्तरायोंको भी सदा बचाते रहना चाहिये ॥२३९।। श्रावकोंके लिए भोजनके अन्तराय कई प्रकारके होते हैं। कितने ही अन्तराय देखनेसे होते हैं, कितने ही छूनेसे वा स्पर्श कर लेनेसे होते हैं, कितने ही मनमें स्मरण कर लेने मात्रसे होते हैं, कितने ही सुननेसे होते हैं, कितने ही संघनेसे होते हैं और कितने ही अन्तराय चखने वा स्वाद लेनेसे अथवा खाने मात्रसे होते हैं ॥२४०।। सबसे पहले देखनेके अन्तराय दिखलाते हैं । गीला मांस, मद्य, चर्बी, गीला चमड़ा, गीली हड्डी, रुधिर, पीव आदि पदार्थ यदि भोजन करनेसे पहले दिखाई पड़ जाय तो उसी समय भोजन नहीं करना चाहिये। यदि भोजन करते समय ये पदार्थ दिखाई पड़ जायें तो उसी समय भोजन नहीं करना चाहिए। यदि भोजन करते समय ये पदार्थ दिखाई पड़ जायें तो भोजन छोड़ देना चाहिये। मुख शुद्धि कर उठ माना चाहिये। ये देखनेके अन्तराय हैं ।।२४१।। सूखी हड्डी, सूखा चमड़ा, बाल आदिका स्पर्श हो जानेपर भोजन नहीं करना चाहिये। इसी प्रकार चूहा, कुत्ता, बिल्ली आदि घातक पशुओंका स्पर्श हो जानेपर शीघ्र ही भोजनका त्याग कर देना चाहिये। ये स्पर्श करनेके अन्तराय हैं ॥२४२।। भोजनके अन्तराय और दोषोंको जाननेवाले श्रावकोंको माकी दुर्गन्ध आनेपर वा मद्यकी दुर्गन्धके समान दुर्गन्ध आनेपर अथवा और भी अनेक प्रकारको दुर्गन्धोंके आनेपर भोजनका त्याग कर देना चाहिये । ये सूंघनेके अन्तराय हैं ॥२४३॥ भोगोपभोग पदार्थों का परिमाण करते समय जिन पदार्थोंका त्याग कर दिया है अथवा जिन रसों का त्याग कर दिया है उनको भूल जानेके कारण अथवा किसी अन्य पदार्थका भ्रम हो जानेके कारण ग्रहण कर ले तथा फिर उसी समय स्मरण मा जाय, अथवा किसी भी तरह मालूम हो जाय तो बिना किसी सन्देहके उस समय भोजन छोड़ देना चाहिये ॥२४४॥ कच्चे दूध दही आदि गोरसमें मिले हुए चना, उड़द, मंग, रमास आदि जिनके बराबर दो भाग हो जाते हैं (जिनकी दाल बन जाती है) ऐसे अन्नका त्याग कर देना चाहिये, क्योंकि कच्चे गोरसमें मिले हुए चना, उड़द, मूग आदि अन्नोंके खानेसे मुँहकी लारका स्पर्श होते ही उसमें उसी समय अनेक सम्मूच्र्छन जीव उत्पन्न हो जाते हैं ।।२४५॥ यदि बने हुए भोजनमें किसी भी प्रकारके त्रस जीवोंका कलेवर दिखाई पड़े तो उसे देखते ही भोजन छोड़ देना चाहिये, इसी प्रकार यदि भोजनमें जड़ सहित बाल दिखाई दे तो भी भोजन छोड़ देना चाहिये ॥२४६॥ "यह भोजन चमड़ेके पानीसे बना है
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