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________________ ४५८ श्रावकाचार-संग्रह चतुर्दलस्य पद्यस्य कणिकायन्त्रमन्तरम् । पूर्वादिदिक्क्रमान्न्यस्य पदाधक्षरपञ्चकम् ॥१२६ तच्चाष्टपत्रपद्यानां तदेवाक्षरपञ्चकम् । पूर्ववन्न्यस्य दृग्ज्ञानचारित्रतपसामपि ॥१२७ विविधवाद्यक्षरं न्यस्य ध्यायेन्मूनि गले हृदि । नाभौ वकोऽथवा पूर्व ललाटे मूघ्नि वा परम् ॥१२८ चत्वारि यानि पद्मानि दक्षिणादिदिशास्वपि । विन्यस्य चिन्तयेन्नित्यं पापनाशनहेतवे ॥१२९ मध्येऽष्टपत्रपग्रस्य खं द्विरेफं सबिन्दुकम् । स्वरपञ्चपदावेष्टचं विन्यस्यास्य दलेषु तु ॥१३० भृत्वा वर्गाष्टकं पत्रं प्रान्ते न्यस्यादिमं पदम् । मायाबीजेन संवेष्टय ध्येयमेतत्सुशर्मदम् ॥१३१ है, ऐसा 'अहं' यह पद श्वेत प्रभासे युक्त ध्यान करना चाहिये । यह पद समस्त पापरूप अन्धकार का नाश करनेवाला है ॥१२५।। अथवा चार पत्रवाले और मध्यमें गोल आकारकी कर्णिकावाले कमलमें पंचपरमेष्ठीके वाचक पांचों पदोंके आद्य अक्षरोंको क्रमसे पूर्वादिदिशाओंमें स्थापित कर चिन्तवन करना भी पदस्थ ध्यान है ॥१२६।। अथवा आठ पत्र वाले कमलमें पूर्वके समान उन ही पंच परमेष्ठियोंके अक्षरोंको मध्यमें और पूर्वादि दिशाओंमें, तथा विदिशावाले पत्रोंपर सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप-वाचक अक्षरोंकी स्थापना कर उनका ध्यान करे। यह अष्टदल कमल मस्तकपर, गलेमें, हृदयमें, नाभिमें और मुखमें स्थापित करना चाहिये । अथवा इस अष्टदल कमलको ललाटपर या मस्तकपर स्थापित करे और चार अन्य कमलोंको दक्षिण आदि दिशाओंमें स्थापित करके पापोंका नाश करनेके लिये नित्य चिन्तवन करना चाहिये ॥१२७-१२९।। अथवा अष्ट पत्रवाले कमलके मध्य भागमें दो रेफ और बिन्दु सहित शून्य अक्षर 'ह' कारको अर्थात् "ह्र' पदको अकारादि स्वर और पंच नमस्कार पदोंसे वेष्टित करके उसके आठों दलोंपर क वर्गादि आठ वर्गोंसे भरकर और कोण भागमें आदिका ‘णमो अरहताणं' यह पद स्थापित कर इसे माया बीज 'ह्रीं'कारसे वेष्टित करके ध्यान करना चाहिये। यह उत्तम सुखका देनेवाला है ॥१३०-१३१।। उक्त रचना इस प्रकार करके ध्यान करे। है 102922/R पराजमा .णमार णमोअरहताण एस lala अहै आ अरईताणं) सा 3 . Blerie अा णमा अरहताण णमो अरहताणं बायरलव Golpta लल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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