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________________ प्रश्नोत्तरश्रावकाचार ४१७ तस्यैव शमने धोरैः शीलनीरं प्रकोतितम् । न चान्यद्भवने वामसेवनानिकमेव हि ॥८९ योषित्सेवादिभिर्योऽधीः कामाग्नि हन्तुमिच्छति । स मूढश्च महाज्वाला घृतेनैव कुबुद्धितः ॥९० 'इति मत्वा मनः कृत्वा निःशेषविषयच्युतम् । पालयध्वं बुधा ब्रह्मचर्य सद्यौवने सदा ॥९१ आलोक्य पलितं केशं स्वमूधिन योऽतिलोलुपः । कामसेवां त्यजेन्नैव वञ्चितो विधिना शठः ॥९२ वृद्धत्वे विषयासक्ता ये न मुञ्चन्ति दुधियः । मण्डला इव ते मृत्वा यान्ति पापात्कुदुर्गतिम् ॥९३ यो वृद्धो मृत्युपर्यन्तं भार्यासेवां करोति सः । यमेन नोयमानोऽतिदुःखी स्यादतिचौरवत् ॥९४ इति मत्वा गृहस्थैश्च ग्राह्य सङ्गतयौवने । पलिते ब्रह्मचर्य तत् स्वर्गमुक्तिसुखाप्तये ॥९५ सकलगुणनिधानं स्वर्गमोक्षकहेतुं भवजलनिधिपोतं दुःखसन्तापदूरम् । दुरितवनमहाग्नि धर्मरत्नादिगेहं भज दृढतरशक्त्या ब्रह्मचर्य स्वसिद्धये ॥९६ संसाराम्बुधितारकां सुखकरां स्वर्मोक्षसोपानतां श्वभ्रद्वारहढार्गलां शुभप्रदां सेव्यां जिनाधीश्वरैः। पूज्यां चेन्द्रपुरस्सरैः सुरगणैः सन्मानदानादिदां सारां सर्वगुणाकरां भज सदा त्वं ब्रह्मसद्देवताम् ॥९७ ब्रह्मचर्य समाख्याय प्रारम्भरहितां वराम् । अष्टमी प्रतिमा वक्ष्ये संवराविकहेतवे ॥९८ प्रगट होती है उस अग्निको बुझानेके लिये धीरवीर पुरुषोंने शीलरूपी पानी ही बतलाया है, स्त्रियोंके सेवन करने आदि अन्य कार्योंसे वह अग्नि कभी नहीं बुझ सकती ।।८८-८९॥ जो मुर्ख स्त्रियोंके सेवन करने आदि कार्योंसे कामरूपी अग्निको बुझाना चाहता है वह मूर्ख अपनी कुबुद्धिके कारण घीसे अग्निकी भारी ज्वालाको बुझाना चाहता है ॥९०॥ यही समझकर हे विद्वानो ! अपने मनमें समस्त विषयोंको त्यागकर यौवन अवस्थामें भी पूर्ण ब्रह्मचर्यका पालन करो ॥११॥ जो मनुष्य कामसेवनमें अत्यन्त लोलुपी होता हुआ अपने मस्तकपर सफेद बालोंको देखकर भी (बूढ़ा होकर भी) कामसेवनका त्याग नहीं करता वह मूर्ख अपने भाग्यसे ठगा जाता है ॥९२॥ दुर्बुद्धिको धारण करनेवाले जो मूर्ख वृद्धावस्था में भी विषयोंकी आसक्तता नहीं छोड़ते वे पापकर्मके उदयसे कुत्तेके समान मरकर अनेक दुर्गतियोंमें परिभ्रमण करते हैं ॥९३॥ जो बूढ़ा होकर भी मृत्युपर्यन्त स्त्रीका सेवन करता है वह जिस समय यमराजके द्वारा पकड़ा जाता हैमरता है उस समय वह महाचोरके समान अत्यन्त दुःखी होता है ॥९४|| यही समझकर गृहस्थोंको यौवन अवस्थामें स्त्रीको स्वीकार करना चाहिये और वृद्धावस्थामें बाल सफेद होनेपर स्वर्ग मोक्ष प्राप्त करनेके लिये अवश्य ही ब्रह्मचयंका पालन करना चाहिये ॥९५॥ यह ब्रह्मचर्य समस्त गुणोंकी निधि है, स्वर्ग मोक्षका अद्वितीय कारण है, संसाररूपी महासागरसे पार करनेके लिये जहाज है, दुःख और सन्तापको दूर करनेवाला है, पापरूपी वनको जलानेके लिये महा अग्नि है और धर्मरूपी रत्नोंका घर है इसलिये हे भव्य ! तू अपने आत्माको सिद्धिके लिये अत्यन्त सुदृढ़ शक्तिसे इस ब्रह्मचर्यका पालन कर ॥९६॥ यह ब्रह्मचर्य एक उत्तम देवता है, यह संसाररूपी महासागरसे पार कर देनेवाला है, नरकके द्वारको बन्द करनेके लिये अत्यन्त मजबूत अर्गल वा बेड़ा है, पुण्य बढ़ानेवाला है, श्री तीर्थंकर परमदेव भी इसकी सेवा करते हैं, इन्द्रादिक समस्त देव इसकी पूजा करते हैं यह अत्यन्त आदर सत्कार देनेवाला है, सबमें सार है और समस्त गुणोंकी खानि है। हे मित्र ! ऐसे इस ब्रह्मचर्यरूपी देवताको सदा आराधना कर ॥१७॥ इस प्रकार सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमाका निरूपण कर अब कर्मोका संवर वा निर्जरा करनेके लिये आरम्भ त्याग नामकी आठवीं प्रतिमाका निरूपण करते हैं ॥९८॥ जो पुरुष मन, वचन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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