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श्रावकाचार-संग्रह उदीयं त्वमुत्साहं च स्ववीयं च तपोऽनघम् । द्विषड्भेदं स्वसिद्धयर्थं तपोनं कुरु शर्मदम् ॥२७ प्रशान्तं स्वमनः कार्य सिद्धान्तामृतपानकैः । बृहदाराधनाग्रन्यैस्तत्त्ववैराग्यतन्त्रकैः ॥२८ आहारं प्रावमोदर्य तपसा सन्त्यजेद्बुधः । क्रमाद्दिनं प्रति स्तोकं स्तोकेन सर्वमेव हि ॥२९ सर्वाहारं ततस्त्यक्त्वा ग्राह्यं दुग्धादिपानकम् । ततो दुग्धं परित्यज्य ग्राह्यं तवं समाधये ॥३० त्यक्त्वा तनं क्रमान्नीरमादेयं ध्यानसिद्धये । परिहाप्य जलं कार्याः केवलाः प्रोषधाः शुभाः ॥३१ निर्यापकं महाचार्य सर्वसिद्धान्तपारगम् । विधाय प्रोषधाः कार्या यावज्जीवं प्रयत्नतः ॥३२ अन्तकाले जपेन्मन्त्रं गुरुपञ्चकनामजम् । एकचित्तेन मुक्त्यर्थं संन्यासस्थितमानवः ॥३३ यदि सर्व महामन्त्रं जपितुं न क्षमो भवेत् । क्षीणदेहे जपेदेकं पदं तीर्थेशगोचरम् ॥३४ वचसा जपितुं मन्त्रं न समर्थो भवेद्यदि । जपेत्स्वमनसा धीमान यावज्जीवं स्वभावतः ॥३५ संन्यासयुक्तसत्पुंसो हीनकण्ठस्य प्रत्यहम् । कर्णे जपन्तु मन्त्रेशं अन्ये प्रोत्तरसाधकाः ॥३६ इति सर्वप्रयत्नेन त्याज्या प्राणा विवेकिभिः । जिनमुद्रां समादाय संन्यासं च विमुक्तये ॥३७ यदि स्याच्चरमं देहं संन्यासे न बुधोत्तमः । हत्वा कर्माष्टकं गच्छेन्मोक्षं सौख्याकरं ध्रुवम् ॥३८
हे मित्र ! तू अपने आत्माकी सिद्धिके लिये अपना उत्साह प्रगट कर और अपनी शक्तिको प्रगट कर सुख देनेवाले बारह प्रकारके घोर तपश्चरणको धारण कर ॥२७॥ इसी प्रकार सिद्धान्त ग्रन्थोंका अमत पान कर तथा महा आराधना ग्रन्थोंको पढ़कर और तत्त्व व वैराग्यको निरूपण करनेवाले ग्रन्थोंको पढ़कर तू अपना मन अत्यन्त शान्त कर ||२८|| बुद्धिमानोंको अवमोदर्य तपश्चरणके द्वारा अपना आहार प्रतिदिन थोड़ा थोड़ा घटाना चाहिये और इस प्रकार अनुक्रमसे थोड़ा थोड़ा घटाते घटाते समस्त आहारका त्याग कर देना चाहिये ॥२९॥ आराधकको इस प्रकार समस्त आहारका त्याग कर दूधका सेवन करना चाहिये और फिर समाधि धारण करने के लिये दूधका भी त्यागकर तक्र व छाछका सेवन करना चाहिये ॥३०॥ फिर ध्यानकी सिद्धिके लिये अनुक्रमसे छाछका भी त्यागकर गर्म जल लेना चाहिये और फिर गर्म जलका भी त्यागकर केवल शुभ उपवास करना चाहिये ।।३१।। समस्त सिद्धान्त शास्त्रोंके पारगामी निर्यापक (समाधिमरण करानेवाले) महाचार्यको निवेदन कर उनकी आज्ञानुसार जन्मपर्यन्ततकके लिये उपवास धारण करना चाहिये और उसका निर्वाह बड़े प्रयत्नसे करना चाहिये ॥३२।। समाधिमरण धारण करनेवाले आराधकको मोक्ष प्राप्त करनेके लिये अन्तसमयमें एकचित्त होकर पांचों परमेष्ठियोंके नाम को प्रगट करनेवाले मन्त्रोंका जप करना चाहिये ॥३३।। यदि उसका शरीर क्षीण हो गया हो और वह पाँचों परमेष्ठियोंके वाचक मन्त्रोंका जप करने में असमर्थ हो तो उसे श्री तीर्थंकरके वाचक 'णमो अरहंताणं' इस एक पदका ही जप करना चाहिये ।।३४ । यदि वह अत्यन्त क्षीण हो गया हो और उस मन्त्रको वचनसे न जप सकता हो तो उसे अपने स्वभावसे ही जीवन पर्यन्त अपने मनमें ही उन मन्त्रोंका जप करना चाहिये ॥३५।। यदि संन्यास धारण करनेवालेका कण्ठ सर्वथा क्षीण हो गया हो और वह अपने मनमें भी उन मन्त्रोंका जप न कर सकता हो तो फिर उसकी उत्तरसाधना करनेवाले यावत्य करनेवाले अन्य लोगोंको प्रतिदिन उसके कान में मन्त्रराजका (पंचनमस्कारमन्त्रका) जप करना चाहिये अर्थात् उसके कानमें सुनाना चाहिये ।।३६।। इस प्रकार विवेकी आराधकको मोक्ष प्राप्त करनेके लिये समाधिमरण धारण कर और अन्तमें जिन मुद्रा धारणकर बड़े प्रयत्नके साथ आणोंका त्याग करना चाहिये ।।३।। यदि समाधिमरण धारण करने
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