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________________ प्रश्नोत्तरश्रावकाचार कालान्तरेऽपि परिप्राप्य देवभूति महद्धिकाम् । भुक्त्वा नृदेवजं शर्म स द्वादशभवे शुभे ॥४२ क्रमाच्छ्रीशान्तिनाथोऽयं जातस्तीर्थकराह्वयः । पात्रदानसुपुण्येन कामदेवश्च चक्रभूत् ॥४३ दानेनैव सुकेत्वाख्यो देवानां दुर्जयोऽप्यभूत् । अनेक ऋद्धिसंयुक्तो विख्यातो यो जगत्त्रये ॥४४ मुक्तिराम करे प्राप्तः सदृश्य कुलमण्डनः । तस्य ज्ञेया कथा दक्षैः शास्त्रे पुण्यात्रवाभिधे ॥४५ यो धन्यादिकुमारोऽत्र वैश्यपुत्रो गुणैकभूः । विविर्धाद्धसमायुक्तः सञ्जातो निधिसंयुतः ॥४६ भोगोपभोगसम्पन्नो दानपुण्यफलोदयात् । तस्य धीरस्य संज्ञेया कथा शास्त्रे प्ररूपिता ॥४७ यो नाम नृपो जातो विख्यातो भुवनत्रये । वृषभाय जिनेन्द्राय स्वब्दैकोपोषिताय यः ॥४८ दत्वा दानं च सम्प्राप्य रत्नवृष्टयादिकं सुरैः । मुक्तिभर्तुः कथा तस्य ज्ञेया शास्त्रे वृषेशिनः ॥४९ वज्रजङ्घो नृपो दत्वा चारणाभ्यां सुभावतः । अन्नदानं क्रमादासीदादिनाथोऽपि यो जिनः ॥५० कथा तस्य बुधैर्ज्ञेया विख्याता भुवि कोर्तिता । आदिनाथपुराणेऽपि धर्मसंवेगकारणे ॥५१ अन्ये ये बहवः प्राप्ताः पशवश्च नराः सुखम् । दानतोऽमुत्र कस्तेषां कथां सङ्गदितुं क्षमः ॥५२ त्रिभुवनपतिपूज्यो धर्मतीर्थस्य कर्ता सकलगुणवराब्धिः शान्तिनाथो जिनेशः । शिवगति सुखहेतुर्येन दानेन जातः कुरु बुध ! सुखबीजं पात्रदानं सदा त्वम् ॥५३ अन्नदानभवां सारां कथां व्याख्याय ते पुनः । वक्ष्ये वृषभसेनायाः कथामौषधदानजाम् ॥५४ के जीवने अनेक महा ऋद्धियोंसे सुशोभित देवोंकी विभूति पाई और इस प्रकार देव और मनुष्योंके उत्तम उत्तम सुख भोगकर अपने उस भवसे बारहवें शुभ भवमें शान्तिनाथ तीर्थंकर चक्रवर्ती और कामदेवका पद प्राप्त था ॥ ४२-४३॥ इस दानके ही प्रभावसे वैश्यकुलको सुशोभित करनेवाला सुकेतु देवोंसे भी अजेय हुआ था अर्थात् उसे देव भी नहीं जीत सकते थे तथा उसने अनेक ऋद्धियोंसे सुशोभित होनेवाले तथा तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध ऐसे देवोंके सुख भोगे । तदनन्तर उसने मुक्तिरूपी वधू अपने वशमें की, उसकी कथा चतुर पुरुषोंको पुण्यास्रव पुराणसे जान लेनी चाहिये ||४४-४५॥ इसी प्रकार अत्यन्त गुणवान् वैश्यपुत्र धन्यकुमारको दानसे उत्पन्न होनेवाले पुण्यके फलसे अनेक प्रकारको ऋद्धियाँ प्राप्त हुई थीं, निधियाँ प्राप्त हुई थीं और अनेक प्रकारके भोगोपभोग प्राप्त हुए थे, उस धीरवीरकी कथा भी शास्त्रोंसे जान लेनी चाहिये ।। ४६-४७॥ राजा श्रेयांसने भी एक वर्षके उपवासे श्री वृषभदेव तीर्थंकरको दान दिया था इसलिये वे तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध हुए थे । देवोंने उनके घर रत्नवृष्टि आदि पञ्चाश्चर्य किये थे और अन्त में उन्हें मोक्ष पद प्राप्त हुआ था, उनकी कथा आदिपुराणसे जान लेनी चाहिये ||४८-४९ || राजा वज्रजंधने भी चारण मुनियोंको आहार दान दिया था इसलिये वे अनुक्रमसे श्री वृषभदेव तीर्थंकर हुए थे । उनकी कथा धर्म और संवेगको प्रगट करनेवाले आदिनाथपुराण में प्रसिद्ध है, वहाँसे जान लेनी चाहिये || ५०-५१ ।। इस दानके प्रभावसे अन्य भी कितने ही मनुष्योंने तथा कितने ही पशुओंने सुख पाया है उन सबकी कथा कौन कह सकता है ||५२|| देखो इस दानके ही प्रभावसे भगवान् शान्तिनाथ तीनों लोकोंके स्वामी व तीनों लोकों में पूज्य हुए थे, धर्म तीर्थ के कर्ता हुए थे, समस्त गुणोंके समुद्र और मोक्षके अनुपम सुख प्राप्त करनेवाले हुए थे । यह पात्र दान अनेक सुखोंका कारण है इसलिये हे मित्र ! तू सदा पात्रदान कर ॥५३॥ ३८७ इस प्रकार आहारदान में प्रसिद्ध होनेवाले श्रीषेणकी कथा कहकर अब औषधि दानमें प्रसिद्ध होनेवाली वृषभसेनाकी कथा कहते हैं ॥ ५४ ॥ जनपद नामके देशके कावेरी नगरमें पूर्वोपार्जित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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