SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . प्रश्नोत्तरश्रावकाचार ३८५ शृणु त्वं भो महाभाग! कथयामि क्रयां तव । महापुण्यकरादानाज्जातां शान्तिभवाविजाम् ॥१३ धीषणो यो नपो ख्यातो दाने लोकत्रये भवेत् । कथां तस्य प्रवक्ष्यामि संक्षेपेण शुभप्रदाम् ॥१४ मलयाख्ये शुभे देशे रत्नसञ्चयसत्पुरे । नृपः श्रीषेणनामाभूखीरो दाता गुणकभूः॥१५ तस्य राज्ये शुभे सिंहनिन्दितानिन्दिते वरे । स्यातां पुण्यप्रभावेन हावभावविभूषिते ॥१६ तयोः पुत्रौ समुत्पन्नाविन्द्रोपेन्द्रौ सुलक्षणौ । दक्षौ शास्त्रविचारजौ दानपुण्यादिसंयुतौ ॥१७ सात्यकाख्यो भवेत्तत्र विप्रो जम्बूश्च ब्राह्मणी । सत्यभामा तयोः पुत्री जाता रूपगुणान्विता ॥१८ पुरे पाटलिपुत्राख्ये रुद्रभट्टो द्विजो वसन् । पापदान् द्विजपुत्राणां वेदान् पाठयति कमात् ॥१९ तदीयः चेटिकापुत्रः कपिलाख्यो मतेबलात् । शृण्वानः कर्णसंघातान् जातस्तत्पारगोऽचिरात् ॥२० रुद्रभट्टेन स तस्मात्पुरानिर्घाटितो हटात् । सोत्तरीयं च यज्ञोपवीतं वस्त्रादिकं वो ॥२१ विप्रवेषं समादाय स रत्नसनयाभिधे । पुरे कपटसंयुक्तो गतः कुज्ञानतत्परः ॥२२ दृष्ट्वाशु सात्यकिस्तं च सुरूपं वेदपापगम् । नीत्वा गृहमवातस्मै सत्यभामा सती शुभाम् ॥२३ रतिकाले समालोक्य विटचेष्टां कुकाकजाम् । विषादं विदघे सा न कुलजोऽयं भविष्यति ॥२४ एकदा रुद्रभट्टश्च तीर्थयात्रां परिभ्रमन् । समायातः पुरे तत्र यत्र स्यात्कपिलो द्विजः ॥२५ कपिलेन नमस्कारं कृत्वा नीतं स्वमन्दिरे। भोजनं कारयित्वा स दत्तं वस्त्रादि भूषणम् ॥२६ भार्यायांश्च लोकादीनामग्रेऽपि कथितं स्फुटम् । मदीयोऽयं पिता ख्यातस्तेन मूढेन तत्क्षणम् ॥२७ स्वामीकी महा पुण्य उत्पन्न करनेवाली कथा कहता हूँ ॥१३॥ आहारदान देने में राजा श्रीषेण तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध हुए हैं इसलिये मैं उनकी पुण्य उत्पन्न करनेवाली कथा संक्षेपसे कहता हूँ॥१४॥ मलय नामके शुभदेशमें रत्नसंचयपुर नामके नगरमें अनेक गुणोंका घर धीरवीर दाता ऐसा श्रीषेण नामका राजा राज्य करता था ॥१५|| उस राजा श्रीषेणके पुण्यके प्रभावसे सिंहनन्दिता और अनिन्दिता नामकी दो रानी थीं जो कि हाव भाव आदि समस्त गुणोंसे सुशोभित थीं ॥१६॥ उनके इन्द्र और उपेन्द्र नामके दो पुत्र थे जो अत्यन्त चतुर थे, शास्त्रोंके जानकार थे और दान पुण्य करने में निपुण थे ॥१७|| उसो नगरमें एक सात्यकी नामका ब्राह्मण रहता था उसकी ब्राह्मणीका नाम जम्बू था, उनके रूप और गुणोंसे सुशोभित सत्यभामा नामकी पुत्री थी॥१८॥ इधर पाटलिपुत्र नामके नगरमें रुद्रभट्ट नामका ब्राह्मण रहता था। वह विद्वान् था और ब्राह्मणोंके पुत्रोंको पढ़ाया करता था ।।१९।। उसके घरमें कपिल नामका उसकी दासीका पुत्र रहता था। वह उन पाठोंको सुनते-सुनते सब शास्त्रोंका पारगामी हो गया था ।।२०।। उन दासीपुत्रको शास्त्रोंका पारगामी होता देखकर रुद्रभट्टने अपने घरसे निकाल दिया। तब उसने यज्ञोपवीत और उत्तरीय (जनेऊ, दुपट्टा आदि) आदि वस्त्र पहिनकर ब्राह्मणका भेष धारण किया तथा मिथ्याज्ञानमें तत्पर रहनेवाला वह कपिल इस प्रकार कपट धारण कर रत्नसंचयपुरमें पहुँचा ॥२१-२२॥ वहाँपर उसे सात्यकी ब्राह्मणने देखा। उसे रूपवान् तथा वेदका पारगामी जानकर अपने घर ले आया और सत्यभामा नामकी शुभ और सती कन्या उसे ब्याह दी ॥२३॥ रात्रिके समय सत्यभामाने उसका अच्छा व्यवहार न देखकर हृदयमें खेद माना और एक प्रकारसे निश्चय सा कर लिया कि यह उत्तम कुलीन नहीं है ॥२४॥ किसी एक समय रुद्रभट्ट ब्राह्मण तीर्थयात्राके लिये परिभ्रमण करता हुआ उसी रत्नसंचयपुरमें आ पहुंचा जहां कि कपिल ब्राह्मण रहता था ॥२५।। कपिलने देखते ही उसे नमस्कार किया और अपने घर ले जाकर भोजन कराकर तथा वस्त्र आभूषण देकर उसका खूब ही आदर सत्कार किया ॥२६॥ उस मूर्ख कपिलने अपनी स्त्री और समस्त लोगोंके सामने उसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy