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________________ उन्नीसवाँ परिच्छेद मल्लिनाथं महामल्लं कामारातिनिपातने । वन्दे कर्मविनाशाय भव्यजीव प्रबोधकम् ॥ १ सामायिकं समाख्याय ततो वक्ष्ये गुणप्रदम् । शिक्षाव्रतं तृतीयं हि प्रोषधादिभवं नृणाम् ॥२ अष्टम्यां च चतुर्दश्यां कर्तव्यः श्रावकैः सदा । सत्प्रोषधोपवासोऽपि सर्वसावद्यवजितः ॥३ दिने धारणके चैकभक्तं यत् क्रियते नरैः । तथा पारण के प्रोषधोपवासः स उच्यते ॥४ सर्वाशनं च पानं च खाद्यं स्वाद्यं त्यजेद् बुधः । उपवासदिने मुक्त्यै कृत्स्नमाहारमञ्जसा ॥५ उपवासदिने धीरैः ग्राह्यं नीरं न खण्डकम् । उपवासस्य सारस्य कृत्वा प्राद्भुतसाहसम् ॥६ नोरादानेन हीयेत भागश्चैवाष्टमो नृणाम् । उष्णेनैवोपवासस्य तस्मानीरं त्यजेत्सुधीः ॥७ कषाय द्रव्यसन्मिश्रं जलं गृह्णाति यो नरः । उपवासं समादाय तेषां स हीयतेतराम् ॥८ तन्दुलादिकसम्मिश्रं ये पिबन्ति जलं शठाः । आदाय प्रोषधं तेषां सः स्याद्भग्नस्ततो ध्रुवम् ॥९ उपवासो जिनैरुक्तः पानाहारादिर्वाजितः । उत्कृष्टः सर्वसावद्य चिन्तादिकपराङ्मुखः ॥ १० उपवासदिने सारे सर्ववस्तुकदम्बकम् । विनैकं भूषणं स्नानं गन्धं पुष्पाणि कुङ्कुमम् ॥११ अञ्जनं मुखसंस्कारं चाङ्गोपाङ्गादिविक्रियाम् । शय्यादिकं त्यजेद्धीमान् वीतरागगुणाप्तये ॥१२ जो कर्मरूपी शत्रुको चूर चूर करनेके लिये महामल्ल हैं और भव्य जीवोंको धर्मोपदेश देनेवाले हैं ऐसे श्रीमल्लिनाथ भगवान्को मैं अपने कर्म नष्ट करनेके लिये नमस्कार करता हूँ ॥ १॥ इस प्रकार सामायिकका निरूपण कर अब आगे अनेक गुणोंको उत्पन्न करनेवाले प्रोषधोपवास नामके तीसरे शिक्षाव्रतको कहते हैं ||२|| श्रावकोंको अष्टमी और चतुर्दशी के दिन सब तरहके पापोंका त्यागकर सदा प्रोषधोपवास करना चाहिये ||३|| जिस दिन प्रोषधोपवास करना हो उसके एक दिन पहिले धारणा और उपवासके दूसरे दिन पारणा की जाती है । मनुष्योंको धारणा के दिन एकाशन करना चाहिये । और पारणाके दिन भी एकाशन करना चाहिये । इस प्रकार एक एकाशन, दूसरे दिन उपवास व तीसरे दिन एकाशन करनेको प्रोषधोपवास कहते हैं ॥४॥ बुद्धिमानों को मोक्ष प्राप्त करनेके लिये उपवासके दिन अन्न, पान, खाद्य, स्वाद्य इन चारों प्रकारके आहारका त्याग कर देना चाहिये ||५|| धीरवीर पुरुषोंको उपवासके दिन अद्भुत साहस प्रगट कर पानीको एक बूँद भी ग्रहण नहीं करनी चाहिये || ६ || उपवासके दिन उष्ण जलके पीनेसे उपवासके फलका आठवाँ भाग कम हो जाता है, अतः बुद्धिमानोंको उपवासके दिन जल पीनेका त्याग करना चाहिए ||७|| जो उपवास ग्रहण करके कषाय द्रव्योंसे मिले हुए जलको (किसो काढ़ेको वा शरबत आदिको) पीते हैं उनके उपवासमें अवश्य कमी होती है || ८ || जो प्रोषधोपवास ग्रहण करके भात मिले हुए जलको (चावलोंके मांडको जिसमें कुछ चावलोंका तत्त्व मिला रहता है) पीते हैं उन मूर्खोका प्रोषधोपवास अवश्य नष्ट हो जाता है ||९|| भगवान् जिनेन्द्रदेवने आहार पानी सबका त्याग करने व समस्त पाप और चिन्ताओंसे अलग रहनेको उत्कृष्ट उपवास कहा है ॥ १० ॥ उपवासके दिन वीतराग भगवान्के गुण प्राप्त करनेके लिये बुद्धिमानोंको एक वस्त्रको (धोतीको) छोड़कर अन्य सब वस्त्रोंका त्याग कर देना चाहिये तथा आभूषण, स्नान, गन्ध, पुष्प, कुंकुम, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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