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श्रावकाचार-संग्रह यमं वा नियमं कुर्यात्सुधीर्मोगादिवस्तुषु । स्वशक्ति प्रकटीकृत्य परलोकसुखाप्तये ॥१२२ भोजने षट्रसे पाने कुकुमादिविलेपने । पुष्पताम्बूलगीतेषु नृत्यादौ ब्रह्मचर्यके ॥१२३ स्नानभूषणवस्त्रादौ वाहने शयनासने । सचित्तवस्तुसंख्यादौ प्रमाणं भज प्रत्यहम् ॥१२४ भोगोपभोगवक्तूनां व्रतानां नियमं कुरु । मुहतदिनसद्रात्रिपक्षमासायनादिभिः ॥१२५ भोगादिसंख्यया यान्ति वशं चित्तेन्द्रियादयः । पुंसां नश्यति तृष्णा च क्रोधलोभादिविद्विषः ॥१२६ भोगसन्तोषतो नृणां सुखं सन्तोषजं भवेत् । ख्यातिपूजादिलाभं च बहुभोगादिसम्पदः ॥१२७ आनन्दश्च महाधर्म्यध्यानं स्वर्मुक्तिसाधनम् । इहामुत्र महत् ऋद्धिरिन्द्रचक्रयादिगोचरा ॥१२८ त्रैलोक्यक्षोभकं तीर्थकरत्वं चापि जायते । भोगादिसंख्यया लोके सदा संज्ञानचेतसाम् ॥१२९ तस्माद्धोगादिसंख्यानं कर्तव्यं विधिवद् बुधैः । व्रतशून्या न कर्तव्या चैकापि घटिका क्वचित् ॥१३० भोगसंख्यां न कुर्वन्ति येऽधमा नष्टबुद्धयः । पशवस्ते मता सद्धिः सर्वभक्षणतो भृशम् ॥१३१ नियमेन विना मूढा दारिद्रयादिसमन्विताः । तृष्णया पापमादाय दुर्गति यान्ति निश्चितम् ॥१३२
इच्छया येऽपि गृह्णन्ति धनाढया भोगसम्पदः ।
ते नियमाद्विना प्राप्य दारिद्रयं यान्ति दुर्गतिम् ॥१३३ त्यजन्ति भोगतृष्णां ये पीत्वा सन्तोषजामृतम् । गृहस्था मुनितुल्यास्ते कीर्तिताः श्रीजिनागमे ॥१३४
कर त्याग किया जाता है वह स्वर्गकी सम्पदा देनेवाला नियम कहलाता है ॥१२१॥ बुद्धिमान् लोगोंको परलोकके सुख प्राप्त करनेके लिये अपनी शक्तिको प्रगट कर समस्त भोगोपभोगके पदार्थों में यम नियम धारण करना चाहिये ॥१२२।। छहों रसोंसे परिपूर्ण भोजन, पान, कुंकुम, पुष्प, ताम्बूल, गीत, नृत्य, ब्रह्मचर्य स्नान, आभूषण, वस्त्र, वाहन, शयन, आसन और सचित्त . पदार्थों की संख्या नियतकर प्रतिदिन इन सबका प्रमाण नियतकर लेना चाहिये ॥१२३-१२४।। मुहूर्त, दिन रात्रि, पक्ष महीना छह महीना आदिका नियम लेकर भोगोपभोगोंकी मर्यादा नियत कर लेनी चाहिये ॥१२५॥ भोगोपभोगोंकी संख्या नियतकर लेनेसे मन और इन्द्रियां वशमें हो जाती हैं और मनुष्योंके तृष्णा, क्रोध, लोभ आदि सब विकार वा अन्तरङ्ग शत्रु नष्ट हो जाते हैं ॥१२६।। भोगोंमें सन्तोष धारण करनेसे मनुष्योंको सन्तोषजन्य सुख प्राप्त होता है, कीर्ति और प्रतिष्ठा बढ़ती है तथा भोगोपभोगोंकी अनेक सम्पदाएँ प्राप्त होती हैं ।।१२७।। ज्ञानी पुरुषोंको भोगोपभोगोंका परिमाण नियतकर लेनेसे इस संसारमें आनन्द प्राप्त होता है, स्वर्ग-मोक्षका साधन महा धर्मध्यान प्रगट होता है तथा परलोकमें इन्द्र चक्रवर्ती आदिकी ऋद्धियां और विभूतियां प्राप्त होती हैं और तीनों लोकोंको क्षोभ उत्पन्न करनेवाला तीर्थंकर पद प्राप्त होता हे ॥१२८-१२९।। इसलिये बुद्धिमानोंको विधिपूर्वक भोगोपभोग पदार्थोंकी संख्या नियतकर लेनी चाहिये । विना व्रतों के एक घड़ी भी कभी व्यतीत नहीं करनी चाहिये ॥१३०॥ जो नष्ट बुद्धिवाले नीच पुरुष भोगोपभोगोंकी संख्या नियत नहीं करते वे सदा समस्त पदार्थोंका भक्षण करते रहनेके कारण सज्जन लोगोंमें पशु माने जाते हैं ॥१३१।। विना यम नियमके मूर्ख लोग दरिद्री होते हैं और तृष्णासे अनेक पापोंको उत्पन्नकर दुर्गतियोंमें परिभ्रमण करते हैं ॥१३२॥ जो धनी पुरुष इच्छापूर्वक भोगोपभोग सम्पदाओंको अग करते हैं वे विना नियमके दरिद्री होकर दुर्गतिमें परिभ्रमण करते हैं ॥१३३|| जो गृहस्थ सन्तोषरूपी अमृतको पीकर भोगोंकी तृष्णाका त्याग कर देते हैं वे जैन शास्त्रोंमें मुनियोंके समान माने जाते हैं ।।१३४॥ समस्त भोगोपभोगोंका त्यागकर देनेसे गृहस्थ
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