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________________ प्रश्नोत्तरश्रावकाचार अमृताख्या महादेवी षष्ठं च नरकं गता। या शीलेन विना भुक्त्वा दुःखं कुष्ठादिसम्भवम् ॥१२८ तस्याः कथा जनै या वैराग्यादिकरा वरा । यशोधरमहीपालचरित्रे शोलहेतवे ॥१२९ एकादश गता रुद्रा दशपूर्वाङ्गपारगाः । जिनमुद्राधराः श्वभ्रं शीलभङ्गाघपाकतः ॥१३० अन्ये ये बहवो जाताः प्राघूर्णा दुर्नतेः भुवि । वासुदेवादयः ख्यातास्ते शीलवतवर्जनात् ॥१३१ अशुभसकलपूर्णां दुर्मति दुःखतप्तांमतिकुपथगतत्वाद दुष्ट आरक्षकोऽत्र । विषयपरवशाद्वा सङ्गतः पापपाकात् नृपकृतमपि तीवं दुःखभारं च भुक्त्वा ॥१३२ इति श्रीभट्टारक सकलकीतिविरचिते प्रश्नोत्तरोपासकाचारे स्थूलब्रह्मचर्याव्रते नील्यारक्षककथाप्ररूपको नाम पञ्चदशमः परिच्छेदः ॥१५।। नामकी महा पट्टरानी इस शोलव्रतके अभावसे ही अनेक प्रकारके कष्ट और दुःखोंको सहकर छठवें नरकमें पहुँची ॥१२८॥ वैराग्यको बढ़ानेवाली उसकी कथा महाराज यशोधरके जीवनचरित्रसे (यशोधरचरित्र अथवा यशस्तिलकचम्पूसे) जान लेना चाहिये ॥१२९।। ग्यारह रुद्र दशपूर्वोके जानकार थे और जिनमुद्राको धारण करनेवाले थे तथापि केवल शीलभंगके पापसे उन्हें नरकके दुःख भोगने पड़े थे ॥१३०।। वासुदेव आदि और भी अनेक पुरुष हुए हैं जिन्हें दुर्गतियोंके घोर दुःख भोगने पड़े हैं वे सब शीलवतके खण्डन करनेसे ही भोगने पड़े हैं ॥१३१॥ देखो ! यमदंड कोतवाल विषयोंके वश होकर कुमार्गगामी हुआ था इसलिये उस पापके फलसे उसे राजाके द्वारा दिये हुए अत्यन्त तीव्र दुःख भोगने पड़े और फिर समस्त दुःखोंसे परिपूर्ण दुर्गतियोंके दुःख भोगने पड़े। इसलिये ऐसे पापोंसे बचना ही कल्याणकारक है ॥१३२॥ इस प्रकार भट्टारक सकलकीतिविरचित प्रश्नोत्तरश्रावकाचारमें ब्रह्मचर्य अणुव्रतका स्वरूप, नीलीबाई और कोतवालकी कथाको कहनेवाला यह पन्द्रहवां परिच्छेद समाप्त हुआ ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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