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प्रश्नोत्तरधावकाचार
२९९ चिचावृक्षं समारुह्य स पूत्कारं करोति वै । राजगृहसमीपे तु रात्रौ यामे च पश्चिमे ॥७७ एवं प्रतिदिनं कुर्वन् षण्मासात्स वणिग्वरः । स्थितः पूत्कृतिमाकण्यं सुराज्या भणितो नृपः ।।७८ नायं ना गृहिलो देव सादृश्यवचनात्सवा। राज्ञोक्तं सत्यघोषस्य किं चौयं हि प्रभाव्यते ॥७९ पुननिरूपितं रामदत्तया देव भाव्यते । ततोऽपि सिंहसेनेन प्रोक्तं त्वं हि परीक्षय ॥८० लब्ध्वादेशं प्रभाते स प्रणामार्थं समागतः । राज्या तया समाकार्य पृष्ठो दुष्टपुरोहितः॥८१ किमागतोऽपि भो मित्र वृहद्वेलामुवाच सः । आगतः श्यालको मेऽद्य तस्य भुक्त्यै गृहे स्थितः ।।८२ पुननिरूपितं राज्या क्षणैकं चात्र तिष्ठ भो। ममातिकौतुकं जातं द्यूतक्रोडादिहेतवे ॥८३ करोम्यद्य त्वया सार्द्धमक्षक्रीडामहं स्वयम् । तत्रागत्य नृपेणापि प्रोक्तः कुरु समोहितम् ॥८४ ततो छूते समं जाते प्रोक्तं कर्णे तदा तया। निपुणादिमतीनामविलासिन्याः प्रपश्चतः ॥८५ पुरोहितः स्थितः राज्ञोपार्श्वेऽहं तेन प्रेषिता। याचित्वा गृहिलस्यैव माणिक्यानि स्वकार्यतः ॥८६ तद्भार्यायै भणित्वेति शीघ्रं नीत्वापि तानि वै । आगच्छात्र ततः साऽगात्तद्गृहं रत्नहेतवे ।।८७ रत्नानि याचितान्येव विलासिन्या निषिद्धया : तद्भार्यया न दत्तानि तरां पूर्वववोऽनृतात् ॥८८ सागरदत्त सब तरहसे लाचार होकर रोता हुआ उसी नगर में घूमने लगा और चिल्ला चिल्लाकर कहने लगा कि सत्यघोषने मेरे पाँच माणिक्य मार लिये हैं ।।७६।। राजभवनके पास एक इमलीका वृक्ष था। उसीपर चढ़कर सवेरेके समय यही कह कहकर वह प्रतिदिन पुकार मचाने लगा ॥७७॥ इस प्रकार पुकार करते करते उसे छह महीने हो गये। तब एक दिन रानीने राजासे कहा कि हे देव ! यह पुरुष सदा एकसी पुकार करता है इसलिये यह पागल नहीं हो सकता। तब राजाने कहा कि क्या सत्यघोष ऐसी चोरो कर सकता है ? इसके उत्तरमें रानीने कहा कि हे देव ! सम्भव है ऐसा हो । रानीके इतना कहनेपर महाराजने आज्ञा दी कि तू ही इसकी परीक्षा कर ॥७८-८०॥ इस प्रकार रानीको परीक्षा करने की आज्ञा मिल चकी थी और प्रातःकाल ही वह पुरोहित महाराज के पास प्रणाम करने के लिये आया था। रानीने उस दुष्ट पुरोहितको देखते ही बुलाया और पूछा कि हे मित्र ! आज सवेरे ही कैसे आये ? पुरोहितने कहा कि आज मेरा साला आया है वह भोजन करने के लिये घर बैठा है इसीलिये मैं यहाँ चला आया ||८१-८२।। रानीने फिर कहा कि अच्छा आज कुछ देरतक यहाँ ही ठहरना । हे तात ! आज मुझे कुछ पाशा खेलनेकी इच्छा हुई है, में आज तुम्हारे ही साथ पासेसे खेलेंगी। रानीके इतना कहते ही वहाँपर महाराज आ पहुंचे और उन्होंने भी आज्ञा दे दी कि महारानीकी इच्छा पूरी करो ॥८३-८४।। इस प्रकार रानीने पुरोहित को तो रोक लिया और निपुगमती नामकी किसी चतुर वेश्याको बुलाकर और उसे एकान्तमें ले जाकर उसके कानमें सब बात समझाकर कह दी और कहा कि देख, तू पुरोहितके घर जा, पुरोहितानीसे कहना कि 'पुरोहितजी महारानीके पास बैठे हैं उन्होंने उस परदेशी पागलके माणिक मंगाये हैं उन माणिकोंसे उन्हें आवश्यक कार्य है मुझे इसीलिये आपके पास भेजा है।' इस प्रकार उसकी स्त्रीसे कहकर और उन माणिकोंको लेकर शीघ्र हो मेरे पास आ जा। यह सब समझ बूझकर वह पुरोहितानीके पास गई, उससे जाकर सब बात कही परन्तु उस पुरोहितानीको भी सदा झूठ बोलनेका अभ्यास था और पुरोहित न देनेके लिये कह रक्खा था इसलिये उसने वे माणिक दिये ही नहीं ।।८५-८८|| तब लाचार होकर वह वेश्या रानीके पास लोट आई और
१. अतिसंजाते।
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