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प्रश्नोत्तरश्रावकाचार
धनदेवो नृपादीनां स्वजनानां वणिक्विदाम् । वदत्येव स्फुटं सत्यं सत्यवतप्रतिष्ठितम् ॥५२ ततो राज्ञा तयोर्दत्तं द्रव्यं वह्निसमुद्भवम् । धनदेवोऽतिशुद्वोऽभूदग्निना नेतरोऽनृतात् ॥५३ अतो हि धनदेवस्य धनं सर्वं समर्पितम् । राज्ञानुपूजितः साधुः कारितो भूतले शुभात् ॥५४ तथा सर्वजनैर्लोकैः संस्तुतोऽर्थ्यांचतो नुतः । धनदेवोति विख्यातो जातः सत्यप्रभावतः ॥५५ अमलगुणनिधानो वैश्यपुत्रो धनाढ्यो, नृपतिजनगणैश्च लोकमध्ये स पूज्यः ।
विमलवचनसत्यात् प्राप्त एवात्र ख्याति स जयतु घनदेवः सत्यवादी वरिष्ठः ॥५६
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गुणं सत्यवच जातं श्रुत्वा शिष्यः प्रपृच्छति । भगवन् सत्यवाक्त्यागात्प्राप्तं दुःखं च केन भो ॥५७ शृणु शिष्य प्रवक्ष्येऽहं कृत्वा स्वं निश्चलं मनः । कथां ते सत्यघोषस्य सत्यहीनस्य भीतिदाम् ॥५८ जम्बूद्वीपे प्रसिद्धेऽस्मिन् क्षेत्रे सद्भारताभिधे । जातः सिंहपुरे राजा सिंहसेनो नृपाग्रणीः ॥५९ सदूराज्ञी रामदत्ताख्या जाता तस्य सुखप्रदा । आसोत् क्षुद्रः पुरोधाच श्रीभूतिः कपटान्वितः ॥६० स बद्धा कतिकां तीक्ष्णां ब्रह्मसूत्रे परिभ्रमन् । वदत्येवानृतं किंचिद् ब्रवीमि यदि लोभतः ॥ ६१ तदा कर्तिकया जिह्वाच्छेदं स्वस्य करोम्यहम् । एवं स वर्तते लोके कपटेनैव प्रत्यहम् ॥६२ सत्यघोषाह्वयं तस्य जातं नाम द्वितीयकम् । विश्रुतौ बहवो लोकाः पार्श्वे तस्य घरन्ति स्वम् ॥६३
देना नहीं कहा था इसलिये मैं इसे उचित द्रव्यके सिवाय और कुछ अधिक नहीं दे सकता ||५०-५१ ॥ धनदेव अपने सत्यव्रत में निश्चल था इसलिये उसने राजा, कुटुम्बी और वैश्योंके सामने परस्पर में तय हुए आधे आधे द्रव्यकी ही बात कही || ५२|| तब राजाने वह सब धन दोनोंसे लेकर जलती हुई अग्निमें रख दिया और कह दिया कि जो सत्यवादी हो वही अग्निमें जाकर ले आवे । धनदेव सत्यवादी और शुद्ध था इसलिये वह झट अग्निमें जाकर द्रव्यको ले आया तथा झूठ बोलने के कारण जिनदत्त उस द्रव्यको न ला सका || ५३ || इसलिये वह सब धन राजाने धनदेवको ही सौंप दिया तथा राजाने व अन्य लोगोंने उनका यथेष्ट आदरसत्कार किया और संसारमें वह बहुत ही श्रेष्ठ और धन्य गिना गया || ५४ || यह बात देखकर अन्य लोगोंने भी उसकी स्तुति की, पूजा की ओर उसे नमस्कार किया। इस प्रकार धनदेव सत्य के प्रभावसे संसारभर में प्रसिद्ध हुआ ॥५५॥ देखो - वैश्यपुत्र धनदेव निर्मल सत्यवचनोंके ही प्रभावसे अनेक निर्मल गुणोंका निधि हो गया था, धनाढ्य हो गया था, राजाके द्वारा और अन्य संसारी लोगोंके द्वारा पूज्य हो गया था और संसार में उसकी निर्मल कीर्ति फैल गई, ऐसा सत्यवादी धनदेव सदा जयशील हो || ५६|| इस प्रकार सत्यवचनोंके गुणोंको सुनकर शिष्य फिर पूछने लगा कि हे भगवन् ! सत्य वचनोंके त्याग करनेसे किसीको दुःख पहुँचा है उसको कथा और सुना दीजिये ||१७|| इसके उत्तर में आचार्य कहने लगे कि हे शिष्य ! तू चित्त लगाकर सुन, अब में झूठ बोलनेवाले सत्यघोष की भय उत्पन्न करनेवाली कथा कहता हूँ ||१८|| इसी जम्बूद्वीपके प्रसिद्ध भरत क्षेत्रमें एक सिंहपुर नगर है । उसमें राजा सिंहसेन राज्य करता था || ५९ ॥ उसको सुख देनेवाली उसकी रानीका नाम रामदत्ता था । उसी राजाके एक श्रीभूति नामका अत्यन्त कपटी पुरोहित था ॥ ६० ॥ वह अपने जनेऊ में एक कैंची बांधे फिरता था और लोगोंसे कहता फिरता था कि यदि कभी लोभसे मेरे मुंहसे कुछ झूठ निकल जाता है तो में इस कैंचीसे उसी समय अपनी जीभ काट डालता हूँ । इस प्रकार वह प्रतिदिन अपना सब व्यवहार कपटपूर्वक ही करता था ॥ ३१-६२।। परन्तु उसका यह कपट किसीको मालूम नहीं हुआ था इसलिये उसका दूसरा नाम सत्यघोष पड़ गया था। तब
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