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________________ दशवाँ परिच्छेद शीतलेशमहं वन्दे सद्धर्मामृतवारिदम् । जन्मदाहविनाशाय पापतापविनाशकम् ॥ १ गुणे प्रभावनाये यो विख्यातो मुनिपुंगवः । तस्य वज्रकुमारस्य कथां वक्ष्ये समासतः ॥२ हस्तिनागपुरे जातो धर्माधारपुरोहितः । गरुडो बलिराजस्य सोमदत्तस्तदात्मजः ॥३ पठित्वानेकशास्त्राणि चाहिछत्रपुरे शुभे । शिवभूतिमामपाश्र्वे गत्वा तेन प्रपूरितम् ॥४ माम दुर्मुखराजस्य त्वं मां दर्शय साम्प्रतम् । शास्त्रार्थपारगं तेन गवितेन न वशितः ॥५ ततः किञ्चिदुपायं स रचयित्वा प्रविश्य वै । सभां सिंहासनस्थं तं ददर्श पुण्ययोगतः ॥६ आशीर्वादादिकं दत्वा सत्कौशल्यं प्रकाश्य सः । सच्छास्त्रस्य परिप्राप्तो वरं मन्त्रिपदं शुभात् ॥७ तथाभूतं तमालोक्य मामेनापि धनान्वितम् । स्वपुत्री यज्ञदत्तास्मै दत्ता भोगाय तत्क्षणम् ॥८ एकदा खलु गुर्विण्यास्तस्या दोहलकोऽजनि । वर्षाकाले पतन्नीरे सदानफलभक्षणे ॥९ सोमदत्तेन तान्युच्चैरुद्यानवनसन्निधौ । अन्वेषयता यत्राम्रवृक्षे योगं चकार सः ॥१० आचार्योऽपि सुमित्राख्यस्तं दृष्ट्वा फलितं पुनः । गृहीत्वास्राणि सद्भृत्य हस्तेन प्रेषितानि वै ॥ ११ तमाचार्यं नमस्कृत्य श्रुत्वा धर्मं सुखाकरम् । स्वर्गमुक्तिकरं सारं वैराग्यं सोऽप्यगात्तदा ॥१२ जो धर्मरूपी अमृतकी वर्षा करनेके लिये बादलके समान हैं और पापरूप सन्तापको दूर करनेवाले हैं ऐसे श्री शीतलनाथ भगवान्को मैं अपने जन्ममरण रूप दाहको नाश करनेके लिये नमस्कार करता हूँ || १|| सम्यग्दर्शनके आठवें प्रभावना अंगमें मुनिराज वज्रकुमार प्रसिद्ध हुए हैं इसलिये अब संक्षेपसे उनकी कथा कहता हूँ ||२|| हस्तिनागपुरमें राजा बल राज्य करता था । उसके गरुड़ नामका एक धार्मिक पुरोहित था और उसके पुत्र का नाम सोमदत्त था ॥ ३ ॥ वह सोमदत्त अनेक शास्त्रोंका पारगामी था । वह किसी समय अहिछत्रपुर नगर में अपने शिवभूति मामा के पास गया । किसी एक दिन उसने अपने मामासे कहा कि हे मामा ! इस समय यहाँके राजा दुर्मुखसे मेरी भेंट करा दीजिये । उसका मामा भी अनेक शास्त्रोंका पारगामो था परन्तु वह अभिमानी था इसलिये उसने राजासे सोमदत्तकी भेंट नहीं कराई ||४-५|| तब सोमदत्तने स्वयं ही कुछ उपाय किया और पुण्यकर्मके उदयसे राजसभामें जाकर सिंहासनपर विराजमान हुए राजाके दर्शन किये || ६ || सोमदत्तने महाराजको आशीर्वाद दिया, अपने शास्त्रोंकी कुशलता प्रगट की और इस प्रकार राजाको प्रसन्न कर उसने सर्वोत्तम मंत्री पद स्वयं प्राप्त कर लिया ॥७॥ शिवभूति ने भी अपने भानजेको इस प्रकार विद्वान् और धनी देखकर उसे यज्ञदत्ता नामको अपनी पुत्री ब्याह दी ||८|| समयानुसार उसे गर्भ रहा । किसी एक दिन वर्षाकालके दिनों में जब कि पानी पड़ रहा था तब यज्ञदत्ताको आम खानेका दोहला उत्पन्न हुआ ||९|| वह समय आमोंका समय नहीं था इसलिये सोमदत्तने बहुत से उद्यान और वन ढूंढ़े परन्तु आम कहीं न मिले । अन्तमें वह एक वनमें गया वहाँ पर एक आम के वृक्षके नीचे सुमित्र नामके आचार्य मुनिराज विराजमान थे । तथा उस वृक्षपर बहुत से आमके फल लग रहे थे । सोमदत्तने आम तोड़कर सेवकके हाथ घर भेज दिये ||१०- ११ ॥ तदनन्तर उसने उन आचार्यको नमस्कार किया और उनसे सुख देनेवाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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