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________________ । २८ ) समाधिमरण (सल्लेखना) के अतिचार और उनके त्यागनेका उपदेश ४०३ सामायिक और प्रोषधप्रतिमाका स्वरूप वर्णन ४०४ सचित्तत्याग प्रतिमाका स्वरूप वर्णन ४०५ रात्रिभुक्ति त्याग प्रतिमाका वर्णन ४०५ रात्रि भोजनके दोषोंका वर्णन ४०७ तेईसवाँ परिच्छेद ४१०-४२२ पार्श्व जिनको नमस्कारकर ब्रह्मचर्य प्रतिमाका वर्णन करनेको प्रतिज्ञा ४१० स्त्रीके मल-मूत्रादिसे भरे अंगोंका वर्णनकर स्त्री मात्रके परित्याग का उपदेश .... ब्रह्मचर्यके विना व्रत-तपश्चरणादि सर्व व्यर्थ हैं ४१२ शीलवतका माहात्म्य वर्णन ४१३ ब्रह्मचारीको गरिष्ठ एवं रस-पूरित आहार न करनेका उपदेश ४१४ ब्रह्मचारीको स्त्रियोंके साथ संलाप आदि न करनेका उपदेश ४१५ स्त्री सम्पर्कसे उत्पन्न होने वाले दोषोंका वर्णन ४१६ स्त्रीमात्रको त्यागकर पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत धारण करनेका उपदेश ४१७ आरम्भ त्याग प्रतिमाका वर्णन ४१८ परिग्रह त्याग प्रतिमाका वर्णन ४१९ परिग्रह वालोंके चित्त शुद्धि स्वप्नमें भी संभव नहीं, अतः चित्त शुद्धि और मुक्ति प्राप्तिके लिए परिग्रह त्यागका उपदेश चौबीसवाँ परिच्छेद ४२३-४३६ वीर जिनको नमस्कारकर अनुमति त्याग प्रतिमाका वर्णन ४२३ उद्दिष्ट त्याग प्रतिमामें सर्वप्रथम क्षुल्लकदीक्षा का वर्णन ४२४ क्षुल्लकके कर्तव्योंका विस्तृत वर्णन उद्दिष्ट एवं सदोष आहारको प्राणान्त होनेपर भी न खानेका उपदेश ४२९ ध्यान अध्ययनमें संलग्न रहनेका उपदेश ४२९ षड् आवश्यकोंके यथासमय विधिपूर्वक करनेका उपदेश प्रतिमा-पालनका फल वर्णन और ग्रन्यका उपसंहार ४३२ १३. गुणभूषण श्रावकाचार ४३७-४६१ प्रथम उद्देश ४३७-४४३ मंगलाचरण कर मनुष्यता, कुलीनता, विवेक और सद्धर्म प्राप्तिकी दुर्लभता ४३७ रत्नत्रयात्मक धर्म है, उसमें सर्वप्रथम सम्यक्त्वका वर्णन ४३७ सप्त तत्त्वोंका स्वरूप ४३८ सम्यक्त्वके २५ दोष ४३९ सम्यक्त्वके आठ अंगों का स्वरूप और उनमें प्रसिद्ध पुरुषोंके नामोंका उल्लेख .... ४२९ सराग और वीतराग सम्यक्त्वका स्वरूप ४४० ४२१ ४२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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