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________________ ४४० ४४२ ४४२ ४४४-४४७ ४४५ ४४८-४६१ ४४८ ४४८ ४४९ ( २९ ) सम्यक्त्वके अनुमापक गुणोंका निर्देश और स्वरूप सम्यक्त्वके भेद और उनका स्वरूप सम्यक्त्वकी उत्पत्तिके कारणोंका निर्देश सम्यक्त्वको महिमा दूसरा उद्देशसम्यग्ज्ञानका स्वरूप और उसके मतिश्रुत भेदोंका वर्णन चारों अनुयोगोंका स्वरूप अवधिज्ञानका भेद-प्रभेदोंके साथ स्वरूप निरूपण मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञानका स्वरूप तीसरा उद्देश चारित्रका स्वरूप और श्रावकके ११ भेदोंका निर्देश दार्शनिक श्रावकको तीन मकार, पंच उदुम्बर फलोंका और सप्त व्यसनोंका ___ त्यागी होना आवश्यक है एक-एक व्यसनसे महा दुःख पाने वालोंके नामोंका निर्देश दार्शनिक श्रावकको सभी अभक्ष्य पदार्थ, रात्रि भोजन, अगालित जलका भी त्याग करने का उपदेश व्रत प्रतिमाके अन्तर्गत पाँच अणुव्रत और तीन गुणवतका स्वरूप भोग संख्यान, उपभोग संख्यान, पात्र सत्कार (दान) और सल्लेखना इन चार शिक्षाव्रतोंका निर्देश दानके दाता, पात्र, विधि, देय और दानफल इन पांच अधिकारोंका विस्तृत वर्णन सल्लेखनाका वर्णन सामायिक प्रतिमाका वर्णन प्रोषध प्रतिमाका वर्णन सचित्त त्याग प्रतिमाका वर्णन दिवा मैथुन त्याग और ब्रह्मचर्यरूप छठी-सातवी प्रतिमाका स्वरूप आरम्भ विरत प्रतिमाका स्वरूप परिग्रह और अनुमति विरतका स्वरूप उद्दिष्ट विरतका विस्तृत स्वरूप वर्णन विनय और वैयावृत्त्य आदि कर्तव्योंके उपदेशका वर्णन कर उन्हें नामादि छह प्रकार का पूजन करनेका उपदेश पिण्डस्थ और पदस्थ ध्यानका विस्तृत स्वरूप और यथाशक्ति करनेका निर्देश रूपस्थ और रूपातीत ध्यानका वर्णन सम्यग्दर्शनादि तीनों के पालनसे ही इष्ट सिद्धिका उपदेश ग्रन्थकारकी प्रशस्ति ४५१ ४५१ ४५२ ४५२ ४५३ ४५३ ४५३ ४५३ ४५४ ४५६ ४५७ ४५९ ४६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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