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( २७ ) मध्यम और जघन्य पात्रोंका स्वरूप-वर्णन
३६५ दान देने योग्य द्रव्यका स्वरूप, दाताके सप्तगुण और नवधा भक्तिका वर्णन ...। औषधि और ज्ञानदान देनेका उपदेश आहारदानकी विशेषताका वर्णन पात्र-दानके फलका वर्णन
३६७ औषधि और ज्ञानदानके फलका वर्णन
३६८ वसतिकाके दानका और अभयदानका फल
३६९ दयादानसे पापका संवर और कर्मकी निर्जरा होती है
३७१ पात्रदानके विना गृह श्मशानके समान है
३७१ कुपात्र-अपात्रका स्वरूप और उनको दान देनेके कुफलका विस्तृत वर्णन
३७२ सुक्षेत्रमें बोया बीज वट-वृक्षके समान महान् फल देता है
३७४ कुदानोंका और उनके दुष्फलोंका वर्णन
३७५ जिनबिम्ब और जिनालय निर्मापणका उपदेश और उनके निर्माणका फल-वर्णन
३७६ जिनबिम्ब प्रतिष्ठाके महान् फलका वर्णन
३७८ जिनपूजनके फलका वर्णन जिनालयमें घण्टादान, चंदोवा एवं अन्य उपकरणादिके दानका फल-वर्णन
३८० वापी, कूप, तालाब, आदिके बनानेके महापापका वर्णन कर व्रती पुरुषको उनके बनानेका निषेध
३८१ आहारादि दानोंकी और जिनप्रतिष्ठादिके करानेका फल
३८२ इक्कीसवाँ परिच्छेद
३८४-३९१ नमि जिनको नमस्कार कर अतिथि संविभाग व्रतके अतिचारोंका वर्णन और उनके त्यागका उपदेश
३८४ आहारदानमें प्रसिद्ध श्रीषेणकी कथा
३८५ औषधदानमें प्रसिद्ध वृषभसेनाकी कथा
३८७ शास्त्र (ज्ञान) दानमें प्रसिद्ध कौण्डेश की कथा वसतिका दानमें प्रसिद्ध सूकरकी कथा जिनपूजनके भावसे मरनेवाले मेंढककी कथा
३९५ मेंढकके पूर्व भवका वर्णन
३९७ बाईसवाँ परिच्छेद
३९९-४०९ नेमि जिनको नमस्कारकर सल्लेखनाका वर्णन
३९९ सबसे क्षमा-याचनादि करके अपने दोषोंकी निर्दोष आलोचना करनेका उपदेश .... ४०१ सर्व पापोंका यावज्जीवनके लिए त्यागकर महाव्रत धारण करने का उपदेश ." ४०१ क्रमशः चारों प्रकारके आहार त्यागनेका उपदेश
४०२ समाधिसरणका फल-वर्णन
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