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________________ नवाँ परिच्छेद पुष्पदन्तमहं वन्दे कामदं कामघातकम् । प्रारब्धार्थप्रसिद्धयर्थं कुन्दाभं धर्मनायकम् ॥१ सद्विष्ण्वादिकुमारो यः सद्वात्सल्यगुणे मुनिः । विख्यातोऽहं कथां तस्य वक्ष्ये तद्गुणप्राप्तये ॥२ अवन्तीविषये रम्ये उज्जयिन्यामभूत्पतिः । नगर्यामपि श्रीवर्मा पूर्वोपाजितपुण्यतः ॥३ मन्त्रिणस्तस्य सञ्जाताश्चत्वारः प्रथमो बलिः । बृहस्पतिश्च प्रह्लादो नमुचो दुष्टमानसः ॥४ एकदाकम्पनो नाम्नाचार्योऽवधिसुवीक्षणः । तत्रागत्य स्थितो ज्ञेयो वने सह मुनीश्वरैः ॥५ धीरैः सप्तशतैर्दक्षः सज्ज्ञानाम्बुधिपारगैः । तपसा कृशसर्वाङ्गरकृशैर्गुणसंपदा ॥६ गुरुणा वारितः संघः कर्तव्यं नैव जल्पनम् । राजादिके समायाते ह्यन्यथा संघव्यत्ययः ॥७ होपरिस्थितेनैव राज्ञा पूजाकरान्वितम् । गच्छन्तं मन्त्रिणः पृष्टा आलोक्य नागरं जनम् ॥८ क्वायं लोकः प्रयात्यद्य यात्रां सत्पुण्यहेतवे । तैरुक्तं बहिरुद्याने प्रागता मुनयो ध्रुवम् ॥९ वन्दनार्थमयं तेषां लोको याति निरन्तरम् । गच्छामो वयमपीति भणित्वा निर्गतो नृपः ॥१० मन्त्रियुक्तेन भूपेन गत्वा सर्वे प्रवन्दिताः । आशीर्वादो न दत्तोऽस्य केनापि मुनिना पुनः ॥११ जो सब इच्छाओंको पूर्ण करनेवाले हैं, कामदेवको नष्ट करनेवाले हैं, कुंदके पुष्पके समान जिनका शरीर है और जो धर्मके स्वामी हैं ऐसे श्री पुष्पदन्त भगवान्को मैं अपने प्रारम्भ किये हुए कार्यको प्रसिद्ध करनेके लिये नमस्कार करता हूँ ॥१॥ मुनिराज श्री विष्णुकुमार सम्यग्दर्शनके वात्सल्य अंगमें प्रसिद्ध हुए हैं इसलिये उनके गुणोंकी प्राप्तिके लिये मैं उनकी कथा कहता हूँ॥२॥ इसी भरतक्षेत्रके मनोहर अवन्ती देशके अन्तर्गत उज्जयिनी नगरीमें अपने पुण्यकर्मके उदयसे श्रीवर्मा नामका राजा राज्य करता था ॥३॥ उसके चार मंत्री थे। बलि, बृहस्पति, प्रहलाद और नमुचि उनका नाम था। ये चारों ही मंत्री बड़े दुष्ट थे ॥४॥ किसी एक समय अवधिज्ञानी अकंपनाचार्य अनेक मुनियोंके साथ उस उज्जयिनी नगरीके बाहर वनमें आ बिराजे ॥५। उनके साथ सातसो मुनिराज थे, वे सब बुद्धि के पारगामी थे, तपश्चरणसे उनका शरीर कृश हो रहा था और वे अनेक गुणरूपी सम्पदाओंसे विभूषित थे ॥६॥ गुरुराज अकंपनाचार्यने अपने निमित्तज्ञानसे जानकर सब संघको आज्ञा दे दी थी कि राजा आदिके आनेपर भी कोई किसीसे कुछ भाषण न करे क्योंकि भाषण करनेपर संघपर किसी उपद्रवके होनेकी आशंका है ।।७।। मुनिराजको आये हुए जानकर नगरके लोग पूजाकी सामग्री लेकर आए। किसी कारणवश उस समय राजा अपने भवनकी ऊपरी छतपर था। वहाँसे उसने सब लोगोंको पूजाकी सामग्री लेकर जाते हुए देखा तब उसने मन्त्रियोंसे पूछा कि आज ये लोग पुण्य उपार्जन करनेके लिये किसकी यात्रा करने जा रहे हैं ? मन्त्रियोंने उत्तर दिया कि हे महाराज ! नगरके बाहर उद्यानमें मुनिराज पधारे हैं ।।८-९॥ उन्हींकी वंदना करनेके लिये ये लोग निरन्तर आ जा रहे हैं। मन्त्रियोंकी यह बात सुनकर राजाने भी कहा-हम भी उनकी वन्दना करनेके लिये चलेंगे। यह कहकर वह राजा उन मन्त्रियोंको साथ लेकर चल दिया। वहां जाकर उसने सब मुनियोंकी बंदना की परन्तु किसी मुनिने राजाको आशीर्वाद नहीं दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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