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सम्यग्दर्शनके विना पालन किये गये व्रतादिसे न तो पुण्य ही होता है और न मोक्ष ही प्राप्त होता है।
___... २०८ किन्तु सम्यग्दर्शनके साथ व्रत-पालनादि पुण्य विशेषकी भी
प्राप्ति कराते हैं और मोक्षकी भी प्राप्ति कराते हैं इसलिए हे भव्य, तू निर्मल सम्यक्त्वको धारण कर
२०९ तीसरा परिच्छेद
.... २११-२२४ सम्भवजिनको नमस्कारकर सम्यग्दर्शनको प्राप्तिके कारणभूत देव, धर्म
और गुरुका विस्तृत वर्णन और कुदेव, कुधर्म और कुगुरुओंका निराकरण
.... २११-२२४ चौथा परिच्छेद
२२५-२३० अभिनन्दन जिनको नमस्कारकर सम्यग्दर्शनके कारण और भेदोंका स्वरूप वर्णन २२५ मिथ्यात्वका विस्तृत विवेचन
२२६ सम्यग्दर्शनके आठों अंगोंका विवेचन
२७-२३० पांचवां परिच्छेद
२३१-२३५ सुमति जिनको नमस्कारकर निःशंकित अंगमें प्रसिद्ध अंजनचोरकी कथा .... २३४ निःशंकित अंग पालक विभीषण, वसुदेव आदिका उल्लेख
२३५ छठा परिच्छेद
२३७-२४० पद्मप्रभ जिनको नमस्कारकर निःकांक्षित अंगमें प्रसिद्ध अनन्तमतीकी कथा .... २३७-२४० निःकांक्षित धर्मपालन करनेवाली सोतादिका उल्लेख
२४० सातवां परिच्छेद
२४१-२४६ सुपार्श्व जिनको नमस्कार कर निर्विचिकित्सा अंगमें प्रसिद्ध उद्दायनका कथानक
..." २४१-२४२ अमूढदृष्टि अंगमें प्रसिद्ध रेवती रानीका कथानक आठवां परिच्छेद
२४७-२५२ उपगृहन अंगमें प्रसिद्ध जिनेन्द्र भक्त सेठका कथानक
"'" २४७-२४८ स्थितिकरण अंगमें प्रसिद्ध वारिषेणका कथानक
.." २४९-२५२ नवाँ परिच्छेद पुष्पदन्त जिनको नमस्कार कर वात्सल्य अंगमें प्रसिद्ध विष्णुकुमार मुनिका कथानक
.... २५३-२५८ दशवा परिच्छेद शीतल जिनको नमस्कार कर प्रभावना अंगमें प्रसिद्ध वज्रकुमार मुनिका कथानक
.... २५९-२६४
...... २४२-२४५
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