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________________ । १३ ) पर-पुरुष परित्याग करनेवाली स्त्री सीताके समान देवोंके द्वारा पूजी जाती है स्वदार-सन्तोष और स्वपति-सन्तोषरूप ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतिचारोंका निरूपण परिग्रहपरिमाणुव्रतका विस्तृत विवेचन परिग्रहसे होनेवाले दोष और उसके अतिचारोंका निरूपण परिग्रह परिमाणवती जयकुमारके समान पूजातिशयको प्राप्त होता है निरतिचार पंच अणवतोंका पालन करके निर्मलशीलसप्तकके पालनका फल ४६-६१ ४७-४८ पंचम अध्याय गुणवतोंका स्वरूप और संख्याका निर्देश दिग्वतका स्वरूप, उसकी महिमा और अतिचार अनर्थदण्डके भेदोंका स्वरूप बताकर उनके त्यागरूप अनर्थदण्डव्रतका स्वरूप और उसके अतिचार भोगोपभोग परिमाणका स्वरूप भोग और उपभोगका लक्षण । सर्वप्रकारके अभक्ष्योंके त्यागका उपदेश भोगोपभोग परिमाणके अतिचार पन्द्रह खटकर्मोके परित्यागका उपदेश शिक्षाक्तका स्वरूप देशावकाशिक शिक्षाव्रतका स्वरूप देशावकाशिक शिक्षावतके अतिचार सामायिक शिक्षाव्रतका स्वरूप और विस्तृत विवेचन सामायिक शिक्षावतके अतिचार प्रोषधोपवास शिक्षाव्रतका विस्तृत विवेचन प्रोषधोपवास शिक्षाव्रतके अतिचार अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रतका स्वरूप अतिथिका स्वरूप पात्रका स्वरूप और उसके भेद नवधाभक्तिका निरूपण दाताके सप्तगुण दाता, दान, देय और दानके फलका निरूपण अतिथि संविभागवतके अतिचार निर्मल शीलसप्तक पालनेवाला महाश्रावक है ५३ ५३-५४ ५५-५६ ५९-६० ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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