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________________ २५-२६ ( १२ ) सातों व्यसनोंके अतिचारोंका निरूपण स्वयं त्यागी वस्तुको दूसरोंके लिए प्रयोग करनेका निषेध स्त्रीको धर्मनिष्ठ बनानेका उपदेश स्त्रीकी उपेक्षा करना परम वैरका कारण है स्त्रीको पतिके अनुकूल चलनेका उपदेश स्वस्त्रीमें भी अति आसक्तिका निषेध सुपुत्र उत्पन्न करनेकी सयुक्तिक प्रेरणा दर्शन प्रतिमाका उपसंहार और व्रतप्रतिमा धारण करनेकी योग्यता चतुर्थ अध्याय व्रतप्रतिमाका स्वरूप व्रत-पालन शल्य-रहित होना चाहिए । शल्य-युक्त व्रतोंको धिक्कार श्रावकके १२ उत्तर गुणोंका निर्देश अणुव्रतोंका सामान्य स्वरूप और भेद स्थूल शब्दका अर्थ अहिंसाणुव्रतका स्वरूप और उसका विशद विवेचन सांकल्पिक और आरम्भिक हिंसाके त्यागका उपदेश अनावश्यक स्थावर-जीवघातके त्यागका उपदेश श्रावकको आरम्भी हिंसासे बचनेके लिए अल्पारम्भ-परिग्रही होना आवश्यक है अहिंसाणुव्रतके अतिचारोंका निर्देश अतिचारका लक्षण बताकर उनका विशद विवेचन हिंस्य, हिंसक, हिंसा और हिंसाफलका वर्णन अहिंसाव्रतकी रक्षार्थ रात्रिभोजनका त्याग आवश्यक है रात्रिभोजनसे उत्पन्न होनेवाले रोगादिका वर्णन दृष्टान्तपूर्वक रात्रिभोजनके महा दोषका उल्लेख रात्रिभोजन त्यागीकी महत्ताका निरूपण भोजनके अन्तराय बताकर उनके त्यागनेका उपदेश भोजनके समय मौन रखनेका महत्त्व किन-किन कार्योंको करते समय मौन रखना चाहिए ? सत्याणुव्रतका स्वरूप और असत्य परित्यागका उपदेश वचनके चार भेद और उनका स्वरूप बताकर असत्यासत्य वचनके सर्वथा परित्यागका उपदेश सत्याणुव्रतके अतिचारोंका निरूपण अचौर्याणुव्रतका स्वरूप और उसका विशद विवेचन अचौर्याणुव्रतके अतिचारोंका निरूपण स्वदार सन्तोषाणुव्रतका विस्तृत वर्णन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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