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________________ ६२-६८ ( १४ ) षष्ठ अध्याय ब्राह्ममुहूर्तमें उठकर पंचपरमेष्ठीको नमस्कार कर आत्म-चिन्तन करे शरीर-शुद्धि करके घरके चैत्यालयमें अष्टद्रव्योंसे जिनपूजन करे, शान्तिपाठके अन्तमें यथाशक्ति प्रत्याख्यान करके भाव शुद्धिको बढ़ाता हुआ जिनालय जावे पाद-प्रक्षालन करके 'निःसही' बोलता हुआ जिनालयमें प्रवेश कर स्तुतिपाठ कर भगवान्को तीन प्रदक्षिणा करे जिन-पूजन करके गुरुके सम्मुख प्रत्याख्यात प्रकट करे जिनालयस्थ सार्मिक जनोंका अभिवादनकर स्वाध्याय करे जिनालयमें हास्यादि करनेका निषेध जिनालयसे कुल समय तक अपना व्यापार आदि करे तत्पश्चात् माधुकरी वृत्तिकी भावना करता हुआ भोजनके लिए घर जावे रात्रिमें पकाये गये भोजन और उद्यान-भोजनादिके त्यागका उपदेश पुनः स्नानादि करके मध्याह्न-पूजा करनेका उपदेश पुनः पात्र-दान देकर और आश्रितोंको खिला-पिलाकर स्वयं भोजन करे पुनः कुछ समय विधान करके गुरुजनादिके साथ जिनागमके रहस्योंका विचार करे तत्पश्चात् स्कन्धकालीन आवश्यक करके शयन करे निद्रा-विच्छेद हो जानेपर क्या चिन्तन करे, इसका बहुत सुन्दर उपदेश कब साधु बनकर तृण-कांचनको समान मानकर सुख-दुःखमें समभावी बनकर विचरण करू इत्यादि विचार करता हुआ रात्रि व्यतीत करे सप्तम अध्याय सामायिक प्रतिभाका वर्णन प्रोषधप्रतिमाका वर्णन सचित्तत्याग प्रतिमाका वर्णन रात्रिभक्त प्रतिमाका वर्णन ब्रह्मचर्य प्रतिमाका वर्णन ब्रह्मचर्यको महिमा और ब्रह्मचारियोंके भेद आरम्भत्याग प्रतिमाका वर्णन परिग्रहत्याग प्रतिमाका वर्णन करते हुए पुत्रपर साधर्मीजनोंके समक्ष गृहभार समर्पणका सुन्दर निरूपण अनुमतित्याग प्रतिमाका विशद वर्णन उद्दिष्टत्याग प्रतिमाका वर्णन प्रथमोत्कृष्ट अनुद्दिष्टभोजीका स्वरूप द्वितीयोत्कृष्ट अनुद्दिष्टभोजीका स्वरूप ७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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