SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावकाचार-संग्रह, द्वितीय भाम विषय-सूची पृ० सं० १-५ - مه له لم لم س س س س س س सागारधर्मामृत प्रथम अध्याय मंगलाचरण और सागारधर्म-कथनकी प्रतिज्ञा सागारका स्वरूप और सम्यक्त्व-मिथ्यात्वका माहात्म्य मिथ्यात्वके उदाहरण सहित तीन भेद सम्यग्दर्शन-प्राप्तिकी कारण-सामग्री सद्-उपदेष्टाकी दुर्लभता और विरलता योग्य श्रोताओंके अभावमें भद्र पुरुषोंको उपदेशका विधान भद्र और अभद्रका स्वरूप सम्यक्त्व-हीन भी भद्र पुरुष सम्यक्त्वीके सान्निध्यसे प्रशंसाका पात्र होता है सागारधर्मके पालन करनेवाले गृहस्थका स्वरूप पूर्ण सागारधर्मका निरूपण अविरतसम्यक्त्वी जीव पापोंसे सन्तप्त नहीं होता धर्म, यश और सुख सेवनसे ही जीवनकी कृतार्थता कैसा पुरुष श्रावक हो सकता है दर्शनप्रतिमादि धारक श्रावककी प्रशंसा ग्यारह प्रतिमाओंके नाम कृषि-वाणिज्यादि करनेवाले श्रावकको नित्यपूजन, पात्र दानादि षट् आवश्यकोंके करनेका उपदेश पक्ष, चर्या और साधन या स्वरूप बताकर उनके धारक श्रावकोंके तीन भेदोंका निरूपण द्वितीय अध्याय गृहस्थ-धर्म पालन करनेवाले पात्रता श्रावकको आठ मूल गुण धारण करनेका उपदेश आठ मूल गुणोंका विभिन्न प्रकारोंसे निरूपण मद्य-पानमें दोष बताकर उसके त्यागका उपदेश . मांस-भक्षणकी हेयता बताकर उसके त्यागका उपदेश » » » Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy