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________________ ४१२ श्रावकाचार-संग्रह सव्येनाप्रतिचक्रेण फडिति प्रत्येकमक्षरम् । कोणषट्के विचक्राय स्वाहा बाह्येऽपसव्यतः ।। ४६ निवेश्य विधिना दक्षो मध्ये तस्य निवेशयेत् । भूतान्तं बिन्दुसंयुक्तं चिन्तयेच्च विशुद्धधीः ।। ४७ विधाय वलयं बाह्ये तस्य मध्ये विधानतः । गमो जिणाणमित्याद्यैः पूरयेत् प्रणवादिकः ॥ ४८ ॐ णमो जिणाणं १।ॐ नमो परमोहिजिणाणं २ । ॐ णमो सवोहिजिणाणं ३ । ॐ णमो अणंतोहिजिणाणं ४ । ॐ णमो कोदबुद्धीणं ५ । ॐ नमो बीजबुद्धीणं ६ । ॐ णमो पदाणुसारीणं ७ । ॐ णमो संभिण्णसोदराणं ८ । ॐ णमो उज्जुमदीणं ९ । ॐ णमो विउलमदोणं १० । ॐ णमो दसपुवीणं ११ । ॐ णमो चोदसपुवीणं १२ । ॐ णमो अटुंगणिमित्तकुसलाणं १३ । ॐ णमो विगुव्वणइड्ढिपत्ताणं १४ । ॐ णमो विज्जाहराणं १५ । ॐ णमो चारणाणं १६ । ॐ णमो पण्णसमणाणं १७ । ॐ णमो आगासगामीणं १८ । ॐ नमो छह कोणवाला चक्र बनाकर भीतरी छह कोण में बांई ओर से अप्रतिचक्रे फट इन अक्षरों को लिखे, तथा बाहिरी छह कोणों के मध्य में 'विचक्राय स्वाहा' इन अक्षरोंको दक्ष पुरुष विधिसे स्थापित करे । पुनः वह विशुद्ध बुद्धि ध्याता पुरुष मध्यवर्ती स्थान में रेफ बिन्दु संयुक्त अन्तिम अक्षर 'ह' का अर्थात् 'ह' पदका चिन्तवन करे । पुनः इसके बहिरी भागमें वलयाकार बनाकर और विधि पूर्वक उसके विभाग कर णमो जिणाणं' इत्यादि पदोंको प्रणवादि पदों के साथ अर्थात् 'ॐ ही अहँ, के साथ लिखे । अन्तमें 'ओं नौं झौं श्री ही ति कीति बुद्धि लक्ष्मी स्वाहा' इन पदों के द्वारा उक्त वलयको पूरित करे । इस यंत्र की आराधना करनेके पूर्व पांचों अंगुलियों पर पंचनमस्कार मंत्रको स्थापित करते हुए सकलीकरण करे । यथा-'ॐ णमो अरहंताणं -हाँ स्वाहा, यह मंत्र बोलकर अंगूठे की शुद्धि करे, 'ॐ णमो सिद्धाणं हीं स्वाहा' यह बोलकर तर्जनीकी शुद्धि करे, ॐ णमो आयरियाणं हूँ स्वाहा' यह बोलकर मध्यमाकी शुद्धि करे, ॐ णमो उवज्झाय णं हौं स्वाहा' यह बोलकर अनामिकाकी शुद्धि करे और 'ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं न्हः स्वाहा' यह मंत्र बोलकर कनिष्ठा अंगुलीकी शुद्धि करे । इस प्रकार तीन बार अंगुलियों पर मंत्र-विन्यास करके पुनः मस्तकके ऊपर तथा, पूर्व दक्षिण, पश्चिम और उत्तर वाले शरीर-भाग पर मंत्र विन्यास करके जप प्रारम्भ करे ।। ४६-४८ ।। उपर्युक्त यन्त्रकी रचना इस प्रकार हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001551
Book TitleShravakachar Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1988
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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