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अमितगतिकृतः श्रावकाचारः
ॐ ही कारद्वयान्तस्थो हंकारो रेफभूषितः । ध्यातव्योऽष्टदले पद्म कल्मषक्षपणक्षमः । ४१ सप्ताक्षरं महामन्त्रं ॐ वहीँ कारपदानतम् विदिग्दलगतं तत्र स्वाहान्तं विनिवेशयेत् ।। ४२ दिशिस्वाहान्तों हीं हॅ' नमो हो" हः पदोत्तमम् । तत्र स्वाहान्तों हीँ न्हेँ कणिकायां विनिक्षिपेत् ॥ ४३ तत्पद्मं त्रिगुणीभूतं मायाबीजेन वेष्टयेत् । विचिन्तयेच्छुचीभूतः स्वेष्ट कृत्यप्रसिद्धये ॥ ४४ पद्मस्योपरि यत्नेन हेयादेयोपलब्धये । मन्त्रेणानेन कर्तव्यो जपः पूर्वविधानतः ।। ४५
ॐ हीँ णमो अरहंताणं नमः ' इति मूलमन्त्रः । जाप्य १०००० । होम: १००० । तच्चे भूदे भब्वे भविस्से अक्खे पक्खे जिणपारस्से स्वाहा' । इस मंत्रका १२००० प्रमाण जाप करे और १२०० प्रमाण आहुति देवे ।। ३९ ।। नाभि, हृदय और मस्तक पर कमल चक्र से ऊपर मनोहर मालती के पुष्पों द्वारा उपर्युक्त मंत्र का जाप करने से उक्त विद्या स्वप्न में सर्व शुभ और अशुभ फल को उत्तम प्रकार से सूचित करती है ॥ ४० ॥
आठ पत्रवाले कमलमें ॐ हीं इन दोनोंके अन्तमें स्थित रेफ-युक्त अहं पद अर्थात् 'अहं' इस मन्त्रका ध्यान करना चाहिए। ॐ ह्रीं अईं यह मन्त्र सर्व पापों के क्षय करनेमें समर्थ है भावार्थ - कमलके प्रत्येक पत्र पर तथा कणिका के मध्य में 'ॐ हीँ अहं' इस मन्त्रका ध्यान करे ।। ४१ ।।
आठ दलवाले कमलके विदिशावाले पत्रों पर 'ॐ ही ' पदसे युक्त तथा अन्त में 'स्वाहा' पद - सहित णमो अरिहंताणं' इस सात अक्षर वाले मंत्र को स्थापित करे । पुनः दिशावाले पत्रों पर आदिमें 'ॐ' पद तथा अन्तमें 'स्वाहा' पदके साथ क्रमशः 'हीँ हूँ नहीँ -ह:' इन पदों से युक्त ' णमो अरहंताणं, इस मन्त्र को स्थापित करे। कणिका में 'ॐ ही अहे स्वाहा' यह मंत्र लिखे । इस कमलको 'ही' इस मायाबीज से तीन वार वेष्टित करे । इस प्रकारके यन्त्र को कमल के ऊपर लिखकर पवित्र होकर अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए, तथा हेय उपादेय की प्राप्ति के लिए 'ॐ' हों णमो अरिहंताणं न्हं नमः इस मंत्र का पूर्वोक्ति विधिसे जप करना चाहिए ।। ४२-४५ ।। उक्त कमलकी रचना इस प्रकार है
२. हीं ।
अरहंताणं स्वाहा,
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ملا
ela
ही णमो
3 अरहंताणं स्वाहा
ॐ ह्री अर्ह
स्वाहा
अरहंताणं स्वाहा,
ॐ ही णमो
हीं णमो
ॐ ह्रीं णमो
अरहंताणं स्वाहा
ॐ हीं णमो अरहंताणं स्वाहा
of Falle
'ॐ ह्रीँ णमो अरहंताणं नमः' यह मूल मंत्र है । इसका जाप १० हजार करे और एक हजार होम करे ।
१.
मु० हैं ।
४११
३. मु० ॐ हीं हैं नमो हैं णमो अरहेताणं हीं नमः ।
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