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श्रावकाचार-संग्रह गर्वादेरग्रतो भूत्वा मूर्धापरिकरभ्रमी । द्वात्रिशदिति मोक्तव्या दोषा बन्दनकारिणाम ॥ ८६ क्रियमाणा प्रयत्नेन क्षिप्रं कृषिरिप्सितम् । निराकृतमला इत्ते वन्दना फलमुल्वणम् ।। ८७ स्तब्धीकृतकपावस्य स्थानमश्वपतेरिव । चलनं बातधूताया लताया इव सर्वतः ॥ ८८ श्रयणं स्तम्भकुड्यादेः पट्टिकाधुपरि स्थितिः । मालमालम्बनं कृत्वा शिरसाऽवस्थितिः कृता ।। ८९ निगडेनेव बद्धस्य विकटा रवस्थितिः । कराभ्यां जघनाच्छादः किरातयुवतेरिव ॥९० शिरसो नमनं कृत्वा विधायोन्नमनं स्थितिः । उन्नमय्य स्थितिर्वक्षः शिशोर्धाच्या इव स्तनम् ॥ ९१ काकस्येव चलाक्षस्य सर्वत: पावंवीक्षणम् । ऊधि:कम्पनं मून: खलीनातहरेरिव ॥ ९२ स्कन्धारूढगजस्येव कृतग्रीवानतोन्नती । सकपित्थकरस्येव मुष्टिबन्धनकारिणः ।। १३ कुर्वत: शिरस: कम्पं मुफसञ्जाविधायिनः । अप्रैलीगणनादीनि भ्रूनत्यादिविकल्पनम् ॥ ९४ मदिराकुलितस्येव घूर्णनं दिगवेक्षणम् । ग्रीवोलनयनं भूरि ग्रीवाधोनयनादिकम् ॥ ९५ ३श वन्दना करते हए अन्त भागको जल्दी-जल्दी वोलकर, या क्रम भल जाने पर मध्यके भागको छोडकर अन्तिम भागको बोलते हुए वन्दना करना उत्तरचलिक दोष है ३२॥ वन्दना करनेवालोंको ये बत्तीस दोष छोडना चाहिए। क्योंकि प्रयत्न पूर्वक दोषरहित की गई वन्दना खेतीके समान शीघ्र ही अभीष्ट उत्तम फलको देती है ।।७६.८७॥
___ अब कायोत्सर्गके बत्तीस दोष कहते है-घोडेके समान एक पाँव उठाकर कायोत्सर्ग करना घोटक दोष है ११ वायुसे कम्पित लताके समान शरीरके ऊपरी भागको सर्व ओर घुमाते हुए कायोत्सर्ग करना लता दोष हैं २। स्तम्भ भित्ति आदिका आश्रय लेकर कायोत्सर्ग करना स्तम्भकुड्य दोष है ३। पाटे आदिके ऊपर खडे होकर कायोत्सुर्ग करना पट्टिकादोष है ४। शिरसे मालाका आलंबन लेकर खडे रहना मालादोष हैं ५। बेडीसे बंधे हुए पुरुषके समान टेढे पैर रखकर कायोत्सर्ग करना निगडदोष हैं ६। दोनों हाथोंसे भीलनीके समान जघन भागको ढंककर खडे हो कायोत्सर्ग करना किरात युवति दोष है ७। शिरको बहुत नीचे झुकाकर कायोत्सर्ग करना शिरोनमन दोष हैं ८1 शिरको बहुत ऊँचा उठा कर कायोत्सर्ग करना उन्नमन दोष है ९। जैसे धाय बालकको दूध पिलानेके लिए अपने स्तनको ऊँचा उठाती है, उसी प्रकार अपने वक्षःस्थल ऊँचा उठाकर कायोत्सर्ग करना धात्री दोष हैं १०। काकके समान चंचल नेत्रके द्वारा सर्व ओर पार्श्वभागमें देखते हुए कायोत्सर्ग करना वायस दोष है ११। खलीन (लगाम) से पीडित घोडेके समान शिरको कभी ऊँचे और कभी नीचे कँपाते हुए कायोत्सर्ग करना खलोन दोष हैं १० जिसके कंधे पर महावत बैठा है, ऐसे हाथीके समान ग्रीवाको ऊँत्री नीची व रते हुए कायोत्सर्ग करना गज दोष हैं। किसी किसी प्रतिमें गजके स्थान पर 'युग' पाठ पाया जाता हैं । तदनुसार जिसके कंधे पर रथका जूवा रखा हुआ है, उस गजके समान ग्रीवाको ऊँचे नीचे करते हुए कायोत्सर्ग करनेको युगदोष जानना चाहिए १३। हाथमें कपित्थ (कथा) लिये हुएके समान मुट्टी बाँधकर कायोत्सर्ग करना कपित्थ दोष हैं १४१ शिरको कपाते हुए कायोत्सर्ग करना शिरःकम्पित दोष हे १५। गूंगे पुरुषके समान अंगोंसे संकेत करते हुए कायोत्सर्ग करता मूकदोष हैं ६। अंगली गिनते हुए कायोत्सर्ग करना अंगुलीदोष हैं १७। भ्रकुटी नचाते हुए कायोत्सर्ग करना भ्रदोष है १८ मदिरा पानसे व्याकुल पुरुषके समान घूमते हुए कायोत्सर्ग करना मदिरापायी दोष हैं १९। दिशाओंको देखते हुए कायोत्सर्ग करना दिगवेक्षण दोष हैं २०। ग्रीवाको अधिक ऊँची करके कायोत्सर्ग करना ग्रीवोनयन दोष हैं २१। ग्रीवाको अधिक नीची करके
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